कल्पेश्वर मंदिर

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जानकारी

केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर से प्रारम्भ होने वाली पंच केदार की यात्रा कल्पेश्वर मंदिर में संपन्न होती है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के उर्गम गांव में स्थित है। प्राचीन होने के नाते इस मंदिर का इतिहास द्वापर युग का बताया जाता है, जिसका निर्माण पांडवो द्वारा किया गया था। पांचो केदारो में से कल्पेश्वर अकेला ऐसा केदार है जो साल भर यात्रियों के लिए खुला रहता है, जहाँ आप सड़क मार्ग से आ सकते है। इसके लिए टैक्सी तथा जीप की सुविधा उपलब्ध है, उर्गम गांव पहुंचने के बाद मंदिर का लगभग 2 किमी का रास्ता आप पैदल चलकर पूरा कर सकते है। मंदिर मार्ग में आपको अलकनन्दा और कल्पगंगा नदियों के संगम के साथ खूबसूरत हरे भरे पहाड़ और प्रकृति का विहंगम सौंदर्य देखने को मिलेगा।

पत्थरों से निर्मित कल्पेश्वर मंदिर का रास्ता एक छोटी सी गुफा से होकर जाता है। मंदिर के अंदर आप केश (जटा) रूप में शिव की पूजा अर्चना कर सकते है। घने जंगलो के बीच स्थित इस उर्गम गांव में सेब के बगीचे और सीढ़ी नुमा खेतो की संख्या अधिक है, जहाँ ज्यादातर आलू की फसल उगाई जाती है। शहर के आधुनिकरण से कोसो दूर यह क्षेत्र आपको शांति की अनुभूति करवाने में सक्षम है, जिसमे आप स्वयं के साथ एक अच्छा समय व्यतीत कर सकते है।

द्वापर युग में निर्मित कल्पेश्वर मंदिर की लोक कथा बेहद ही रोचक है। कहा जाता है की महाभारत के युद्ध पश्चात पांडव अपने सगे सम्बन्धियों और गुरुजनो के मारे जाने से व्यथित थे। इसके लिए उन्हें भगवान शिव की शरण में जाकर अपने किये गए पापो का प्रायश्चित मांगना ही उचित समझा। अपना राजपाठ त्याग उसे परिजनों को सुपुर्द करके पांचो पांडव भगवान शिव की नगरी काशी को प्रस्थान कर दिए। उधर कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार और मृत्य देखकर भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे। पांडवो को काशी आता देख भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण कर लिया जिससे पांडव उन्हें पहचान न सके और उस स्थान से चले गए।

शिव को काशी में न पाकर पांडव उन्हें हर स्थान में खोजने लगे। शिव की खोज में पांडव गुप्तकाशी जा पहुंचे। खोज के दौरान भीम की नजर अनायास ही पास में घास चार रहे एक बैल पर पड़ी। बैल को देखकर भीम तुरंत भांप गए की बैल के रूप में और कोई नहीं अपितु भगवान शिव ही है। जैसे ही भीम ने बैल की पूँछ और पाव पकड़ने चाहे, उतनी देर में बैल रूप धारण किये भगवान शिव धरती में अंतर्ध्यान हो गए। अंतर्ध्यान होने के कुछ समय पश्चात भगवान शिव ने पांडवो को अपने असल रूप के पांच बिम्ब, पांच अलग स्थानों से दिखाए।

इन पांच बिम्ब में भगवान शिव की केदारनाथ में कमर, तुंगनाथ में हाथ, रुद्रनाथ में मुख, मदमहेश्वर में नाभि और कल्पेश्वर में जटाएँ रूप में दिखाई दिए। शिव के इन रूप को देखकर पांडव धन्य हो गए और उनसे अपने द्वारा किये गए पापो की माफ़ी मांगी। इन पांचो स्थानों में पांडवो द्वारा शिव की पूजा आराधना की गई और शिव की प्रदर्शित छवि अनुसार मंदिर का निर्माण किया गया।

पांडवो की भक्ति को देखकर शिव प्रसन्न हुए और उनके द्वारा किये गए पापो से उन्हें मुक्त कर दिया। पौराणिक कथा अनुसार इन पांचो केदारो में शिव की प्राथना करने के बाद पांडव बद्रीनाथ पहुंचे। भगवान विष्णु की पूजा करके मोक्ष की कामना लिए पांडव जोशीमठ से आगे स्वर्गारोहिणी पर्वत की ओर प्रस्थान करने लगे, मध्य में सभी पांडव धर्मराज युधिस्ठर का साथ छोड़ते चले गए और अंत में युधिस्ठर के साथ केवल एक कुत्ता ही साथ चलता रहा और स्वर्ग की प्राप्ति की।

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