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कल्पेश्वर मंदिर

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जानकारी

भगवान शिव को समर्पित कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के उर्गम गांव में स्थित है। पंच केदारो के अन्य केदार की भांति ही इस मंदिर का इतिहास भी द्वापर युग का बताया जाता है, जिसका निर्माण पांडवो द्वारा किया गया था। पंच केदारो में कल्पेश्वर ही एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। वर्ष भर खुले रहने वाले इस मंदिर में श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान शिव के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आते है। प्रकृति की सुंदरता और अपने शांत वातावरण के चलते मंदिर एक अलौकिक शक्ति की अनुभूति करवाता है। भगवान शिव के पांच दिव्य स्वरुप के लिए प्रसिद्ध पंच केदार के इस अंतिम कल्पेश्वर केदार में भगवान शिव को उनकी जटाओ के रूप में पूजा जाता है। मंदिर मार्ग में आपको अलकनन्दा और कल्पगंगा नदियों के संगम के साथ खूबसूरत हरे भरे पहाड़ और प्रकृति का विहंगम सौंदर्य देखने को मिलेगा।
 

अंतिम केदार

केदारनाथ से प्रारम्भ होने वाली पंच केदार की धार्मिक यात्रा कल्पेश्वर मंदिर में आकर संपन्न होती है, जिसके मध्य श्रद्धालु मदमहेश्वर, तुंगनाथ और रुद्रनाथ की यात्रा पर जाते है। सभी केदारो में से कल्पेश्वर ही एकमात्र ऐसा केदार है जो साल भर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। पत्थरों से निर्मित कल्पेश्वर मंदिर का रास्ता एक छोटी सी गुफा से होकर जाता है, जिसके मार्ग में आपको आपको झरने और विहंगम नज़ारे देखने को मिलेंगे।
 

मंदिर के अंदर आप केश (जटा) रूप में शिव की पूजा अर्चना कर सकते है। शहर के आधुनिकरण से कोसो दूर यह क्षेत्र आपको शांति की अनुभूति करवाने में सक्षम है, जिसमे आप स्वयं के साथ एक अच्छा समय व्यतीत कर सकते है। मंदिर के मुख्य पुजारी दशनामी और गोसाई संप्रदाय से हैं, जो आदि शंकराचार्य के शिष्य हैं। मूल रूप से ये पुजारी दक्षिण भारत से आते हैं, जिनकी नियुक्ति की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी, जो आज तक चली आ रही है।
 

कल्पेश्वर ट्रेक

अन्य पंच केदार मंदिर के अतिरिक्त, कल्पेश्वर महादेव मंदिर में जाने हेतु ट्रेक की आवश्यकता नहीं है। सड़क मार्ग के निकट स्थित मंदिर में जाने के लिए यात्रियों को केवल 300 से 500 मीटर ही चलकर जाना होता है। हालाँकि कुछ वर्ष पूर्व मंदिर तक पहुंचने का रास्ता ना होने के चलते यात्रियों को निकटतम गांव हेलंग से ट्रेक करना होता है। हेलंग से कल्पेश्वर मंदिर के ट्रेक की दूरी केवल दस किमी की है, जिसे आसानी से पूरा किया जा सकता है। कल्पेश्वर ट्रेक मार्ग पर यात्रियों को प्रकृति के विहंगम दृश्य और अद्भुत नजरो के साथ विशेष प्रकार की शांति की अनुभूति का एहसास होता है। हालाँकि आज भी ट्रैकिंग के कुछ शौक़ीन उस विशेष अनुभूति के लिए सड़क मार्ग का उपयोग न करके हेलंग से पैदल यात्रा करके मंदिर जाते है।
 

इतिहास

द्वापर युग में निर्मित कल्पेश्वर मंदिर की लोक कथा बेहद ही रोचक है। कहा जाता है की महाभारत के युद्ध पश्चात पांडव अपने सगे सम्बन्धियों और गुरुजनो के मारे जाने से व्यथित थे। इसके लिए उन्हें भगवान शिव की शरण में जाकर अपने किये गए पापो का प्रायश्चित मांगना ही उचित समझा। अपना राजपाठ त्याग उसे परिजनों को सुपुर्द करके पांचो पांडव भगवान शिव की नगरी काशी को प्रस्थान कर दिए। उधर कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार और मृत्य देखकर भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे। पांडवो को काशी आता देख भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण कर लिया जिससे पांडव उन्हें पहचान न सके और उस स्थान से चले गए।
 

शिव को काशी में न पाकर पांडव उन्हें हर स्थान में खोजने लगे। शिव की खोज में पांडव गुप्तकाशी जा पहुंचे। खोज के दौरान भीम की नजर अनायास ही पास में घास चार रहे एक बैल पर पड़ी। बैल को देखकर भीम तुरंत भांप गए की बैल के रूप में और कोई नहीं अपितु भगवान शिव ही है। जैसे ही भीम ने बैल की पूँछ और पाव पकड़ने चाहे, उतनी देर में बैल रूप धारण किये भगवान शिव धरती में अंतर्ध्यान हो गए। अंतर्ध्यान होने के कुछ समय पश्चात भगवान शिव ने पांडवो को अपने असल रूप के पांच बिम्ब, पांच अलग स्थानों से दिखाए।
 

इन पांच बिम्ब में भगवान शिव की कमर केदारनाथ में, हाथ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और जटाएँ कल्पेश्वर में दिखाई दिए। शिव के इन रूप को देखकर पांडव धन्य हो गए और उनसे अपने द्वारा किये गए पापो की माफ़ी मांगी। इन पांचो स्थानों में पांडवो द्वारा शिव की पूजा आराधना की गई और शिव की प्रदर्शित छवि अनुसार मंदिर का निर्माण किया, जिन्हे आज पांच केदार के रूप में जाना जाता है।
 

पांडवो की भक्ति को देखकर शिव प्रसन्न हुए और उनके द्वारा किये गए पापो से उन्हें मुक्त कर दिया। पौराणिक कथा अनुसार इन पांचो केदारो में शिव की प्राथना करने के बाद पांडव बद्रीनाथ पहुंचे। भगवान विष्णु की पूजा करके मोक्ष की कामना लिए पांडव बद्रीनाथ से आगे स्वर्गारोहिणी पर्वत की ओर प्रस्थान करने लगे, मध्य में सभी पांडव धर्मराज युधिस्ठर का साथ छोड़ते चले गए और कहा जाता है की अंत में धर्मराज युधिस्ठर के साथ केवल एक कुत्ता ही साथ चलता रहा और स्वर्ग की प्राप्ति की।
 

रहने की सुविधा

धर्मशाला के अतिरिक्त मंदिर के निकट यात्रियों के ठहरने हेतु विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं है। हालाँकि यात्री मंदिर के निकट स्वयं का टेंट स्थापित करके रात्रि विश्राम का इंतजाम कर सकते है। इसके अलावा यात्रियों के ठहरने हेतु होमस्टेस की विशेष सुविधा उर्गम में भी उपलब्ध है।
 

यात्रियों के लिए मत्वपूर्ण सुझाव

  • यात्रा पूर्व मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी अवश्य प्राप्त करे।
  • सार्वजानिक परिवहन सेवा सीधे तौर पर उपलब्ध न होने के चलते, यात्रा स्वयं या टैक्सी के माध्यम से करने की सलाह दी जाती है।
  • यात्रा के लिए किसी भी प्रकार के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।
  • सभी तीर्थयात्रियों के लिए प्रवेश निशुल्क है।
  • वर्ष भर मौसम ठंडा होने के चलते, अपने साथ गर्म कपडे अवश्य रखे।
  • यात्रा के दौरान अपने पास मेडिकल किट, खाने पीने का सामान, वाहन के लिए आवश्यक टूल किट, रेनकोट, और नगदी अवश्य रखे।
  • सभी व्यक्ति अपना एक पहचान पत्र साथ जरूर से रखे।
  • बरसात के दौरान यात्रा करने से बचे।
  • मंदिर के गर्भ गृह में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी वर्जित है।

निकटतम पर्यटक स्थल

कल्पेश्वर मंदिर के निकट कुछ प्रसिद्ध स्थान : -

यहां कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग से : - रुद्रप्रयाग के देवग्राम गांव में स्थित कल्पेश्वर मंदिर देहरादून आईएसबीटी से लगभग 288 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से जुड़े होने के चलते यात्री मंदिर बस, टैक्सी और निजी कैब के माध्यम से पहुँच सकते है। बस और टैक्सी की सुविधा यात्रियों को देहरादून आईएसबीटी, ऋषिकेश बस स्टैंड के साथ हरिद्वार बस स्टैंड से भी प्राप्त हो जाएगी। हालाँकि यह सेवा यात्रियों को सीधा परिवहन प्रदान नहीं करती हैं।
 

रेल मार्ग से : - इसके निकटतम रेलवे स्टेशन योग नगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 249 किमी की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचने के टैक्सी की सुविधा आसानी से प्राप्त हो जाएगी। 
 

हवाई मार्ग से : - देहरादून स्थित जोली ग्रांट हवाई अड्डा मंदिर के सबसे निकटतम है, जो 264 किमी की दूरी पर स्थित है। यात्री हवाई अड्डे से टैक्सी की सहायता से मंदिर पहुँच सकते है, इसके अतिरिक्त यात्रियों को टैक्सी की सुविधा ऋषिकेश से भी प्राप्त हो जाएगी, जो एयरपोर्ट से 16 किमी की दूर पर स्थित है।

यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम

श्रद्धालुओं के लिए मंदिर वर्ष भर खुला रहता है, लेकिन यात्रा के लिए सबसे उत्तम समय मार्च से जून तथा सितम्बर से नवंबर के मध्य माना जाता है।

समुद्र तल से ऊँचाई

समुद्र तल से कल्पेश्वर मंदिर की ऊंचाई लगभग 2,200 मीटर जो की करीब 7,217 फ़ीट है।

मौसम का पूर्वानुमान

स्थान

निकट के घूमने के स्थान

KM

जानिए यात्रियों का अनुभव