भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक, केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तर में स्थित उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसकी दूरी उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून से 254 किमी की है। मंदिर में आप सड़क मार्ग से होते हुए गौरीकुंड तक आ सकते है, जिसके आगे की यात्रा आप पैदल मार्ग द्वारा पूरी कर सकते है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का इतिहास 8वी सदी से है जहाँ लाखो की संख्या में भक्त हर साल पधारते है। मंदिर का निर्माण किसने करवाया इसके बारे में ज्ञानियों
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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक, केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तर में स्थित उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसकी दूरी उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून से 254 किमी की है। मंदिर में आप सड़क मार्ग से होते हुए गौरीकुंड तक आ सकते है, जिसके आगे की यात्रा आप पैदल मार्ग द्वारा पूरी कर सकते है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का इतिहास 8वी सदी से है जहाँ लाखो की संख्या में भक्त हर साल पधारते है। मंदिर का निर्माण किसने करवाया इसके बारे में ज्ञानियों के अलग अलग विचार है, कई विद्वान बताते है की मंदिर का निर्माण अदि शंकराचार्य द्वारा किया गया, वही कुछ कहते है की इसक निर्माण पांडवो ने किया था। पत्थरो से बने कत्यूरी शैली में निर्मित इस मंदिर की संरचना बेहद ही खूबसूरत वा आकर्षित करने वाली है। चारो तरफ बर्फ से ढके ऊँचे पहाड़ो से घिरा यह मंदिर बेहद ही मनमोहक और दर्शनीय लगता है। कहा जाता है की महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव अपने सगे सम्बन्धियों की हत्या के
पाप से मुक्ति के लिए भगवान् सही से आशीर्वाद और प्राथना करने आये थे। पंच केदारो में से केदारनाथ को पहला स्थान प्राप्त है। कहा जाता है की भगवान शिव बैल के रूप में जब केदारनाथ से अंतर्ध्यान हुए थे तब उनके कमर का हिस्सा केदारनाथ मेंबी रह गया था, वही उनके हाथ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, पेट माध्महेस्वर में और उनकी जटाएं कल्पेश्वर में दिखाई दी। इन सभी पांचो स्थानों को अब पंच केदार के रूप में जाना जाता है। यहाँ बताया जाता है की इन पंच केदार की यात्रा करने के बाद भक्त बद्रीनाथ में भगवन विष्णु से मोक्ष की कामना हेतु जाते है। विद्वानों द्वारा यहाँ भी बताया जाता है की अंतर्ध्यान होते समय भगवान् शिव के बेल रूप का ऊपरी भाग नेपाल के पशुपतिनाथ में अवतरित हुआ, जहाँ भक्त काफी संख्या में दर्शन करने हेतु हर साल जाते है। केदारनाथ की यात्रा साल के 6 महीने की जाती है और 6 महीने मंदिर बंद रहता है नवम्बर से लेकर अप्रैल तक मंदिर बंद रहता है और मई से लेकर नवम्बर तक खुले रहते है लेकिन मानसून के सयम आपको थोड़ा सावधानी पूर्वक बरतनी पड़ेगा चारो धामों में से केदारनाथ मंदिर बहुत पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक माना जाना है और
साल में यहाँ लाखो की तागाद श्रद्धालु आते है देश-विदेश से केदारनाथ मंदिर के चारो तरफ आपको बर्फीले पर्वत देखने को मिलेंगे जो मंदिर को आकर्षित भरा बनाता है अगर मंदिर की बात करें पुरे भारत वर्ष में आपको अलग अलग राज्यों की मान्यता के साथ मंदिरो की बनावट आपको अलग देखने को मिलेंगे 12 ज्योतिर्लिंग के जीतने भी मंदिर है सबकी बनावट आपको अलग ही देखने को मिलेगी और अगर उत्तराखण्ड की बात करें उत्तराखण्ड में जीतने भी मंदिर है उनकी स्थापना अधिकांश आदि शंकराचार्ये ने करवाई है और पाण्डवकालीन बताया जाते है ऐसी पौराणिक मान्यताएं है केदारनाथ में मंदिर की बनावट देखोगे उसका पीछे की बनावट पत्थर के ढांचे से बनाई गई है और यही ही नहीं पंच केदार के पाँचो मंदिर और मोक्ष का द्वार कह जाने वाले बद्रीनाथ धाम , जोगेश्वर ,लाखामंडल ,हनोल महासू ,उत्तराखण्ड के जीतने मंदिर है सबकी बनावट एक जैसी बनाई गई है जब आप किसी भी मंदिर में प्रवेश करोगे उत्तराखण्ड के
आपको एक अलग ही महसूस होगा जानो तो मंदिर या उसके इर्द गिर्द की वस्तुए आपसे कुछ कहना चाहती है बस उसको महसूस ही किया जा सकता है बाकि आपको इन सभी बारे में अलग-अलग हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में देखने को मिल जायगा केदारनाथ के नजदीकी अन्य पर्यटक और धार्मिक स्थल जहाँ अक्सर श्रद्धालु जाते है उनमे रूद्र ध्यान गुफा, चोराबरी झील, मयाली पास, सुमेरु पर्वत, आदि शंकराचार्य समाधी, केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, केदारनाथ पर्वत और केदार डोम जैसे स्थल शामिल है। मंदिर में आने के लिए आपको सबसे पहले ऋषिकेश आना पड़ेगा यहाँ से आपको धाम जाने के लिए अन्य वाहन की सुविधा मिल जाएगी या हेलीपेड के माध्यम से भी जा सकते है हेलीपेड से भी आप तीन रास्तो से जा सकते हो पहला फाटा दूसरा गुप्तकाशी व सिरसी या जो यात्री पैदल मार्ग से जाना चाहता है गौरीकुंड से जा सकता है पैदल यात्रा 21 किलोमीटर की है पैदल यात्रा का भी एक अलग ही अनुभव है क्योंकि रास्ते में आपको प्रकृति के विहंगम नज़ारे जिससे आपके आँखे मंत्रमुग्द हो जायगी
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