उत्तराखंड का प्रत्येक जिला अपने आप में एक खास पहचान समेटे हुए है, लेकिन उन सबमे चमोली जिला कुछ खास है। इसके दूर तक फैले ऊँचे और हरे भरे पहाड़, खूबसूरत वादियां, सफ़ेद चादर में लिपटे हिमालय के शिखर और प्रकृति का अद्भुत नजारा यहाँ से देखने को मिलता है। उत्तराखंड के 13 जिलों में से चमोली जिले का महत्व काफी हम माना जाता है। यहाँ उपस्थित धार्मिक स्थल और उनकी मान्यताओं के चलते चमोली जिले को "भगवान का घर" भी कहा जाता है। देहरादून से लगभग 254 किमी दूर इस जिले में सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ आपको मोक्ष का द्वार कहे जाने वाले बद्रीनाथ से लेकर भविष्य के बद्री तक कई देवताओ का निवास मिलेगा।
अन्य राज्य में साहस के शौकीनों के लिए ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग जैसी सुविधा उपलब्ध है लेकिन यहाँ आपको उसके साथ-साथ स्कीइंग जैसे खेलो का मजा देने वाले औली जैसे स्थान भी है। चमोली अपनी सुंदरता, खूबसूरती, से किसी भी व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर सकता है, जहाँ से आपको बेहद ही आकर्षक नज़ारे देखने को मिलेंगे। वर्ष 1960 में निर्मित चमोली पहले पौड़ी का भाग था। जिला बनने के पश्चात इसको 12 तहसील, 9 सब डिवीज़न कार्यालय, 607 ग्राम पंचायत और 39 न्याय पंचायत के साथ चमोली वर्ग के हिसाब से राज्य का सबसे बड़ा जिला है। वैसे तो यहाँ कई प्रमुख स्थाक है लेकिन बद्रीनाथ और ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण प्रमुख है। करीब 800 से 8,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चमोली का मौसम अमूमन ठंडा रहता है।
इसके अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में काफी मात्रा में बर्फ़बारी देखी जाती है, जिसके चलते पहाड़ सफ़ेद बर्फ की चादर से ढक जाते है। धार्मिक और पर्यटक स्थलों के चलते काफी संख्या में श्रद्धालु और यात्री इस स्थान पर आते है। चारधाम यात्रा के दौरान, जिले में तीर्थयात्रियों और यात्रियों की भारी आमद होती है। भगवान के निवास के रूप में पहचाने जाने वाले, चमोली का एक समृद्ध धार्मिक इतिहास है जो इसे दूसरों जिलों से अलग बनाता है। किंवदंतियों द्वारा बताया जाता है की भगवान गणेश द्वारा वेद के पहली लिपि जिस व्यास गुफा में लिखी गई थी, वह बद्रीनाथ से एक किमी की दूरी पर माणा गांव में स्थित है। इतना ही नहीं आदि पुराण में उल्लेखित वेद व्यास जी द्वारा इसी गुफा में महाभारत की कथा भी लिखी गई थी।
यहाँ आपको प्रसिद्ध ऋषि अत्रि मुनि जी का आश्रम अनुसूया में और ऋषि कश्यप जी का आश्रम बद्रीनाथ के निकट गंधमादन पर्वत पर स्थित है। इसके साथ ही केदार खंड पुराण में इस स्थान को भोलेनाथ का स्थान बताया गया है। चमोली का इतिहास 6वी शताब्दी का बताया जाता है लेकिन यहाँ मौजूद साक्ष्यों के अनुसार इसका इतिहास उससे भी पुराना दर्शाता है। उन साक्ष्यों में गोपीनाथ मंदिर के प्रांगढ़ में गधा त्रिशूल और पांडुकेश्वर में स्थित ललितपुर जैसे स्थान एहम है। माना जाता है की आर्य वंश की शुरुआत चमोली जिले से ही हुई थी। बताया जाता है की चमोली का इतिहास 6वी शताब्दी पुराना है लेकिन यहाँ मौजूद कुछ साक्ष्य जैसे की गोपीनाथ मंदिर के प्रांगढ़ में स्थित त्रिशूल और पांडुकेश्वर स्थित ललितपुर दर्शाते है की इसका इतिहास और अधिक पुराना है। कहते है की आर्य वंश की शुरुआत चमोली जिले से ही हुई थी। पूरे ग़ढवाल के साथ चमोली में भी कई शासकों का राज रहा है।
300 बी.सी के दौरान चमोली में खसा का राज था जिनका शासन कश्मीर, नेपाल और कुमाऊं तक फैला था। लेकिन उनका शाशन ज्यादा समय तक न चला और उनको क्षतिया (कत्यूरी वंश के निर्माता) के हाथो पराजय का सामना करना पड़ा। उनको परास्त करने के बाद कत्यूरी वंश ने कई वर्षो तक इस स्थान पर शासन किया। इस दौरान आदि शंकराचार्य जी द्वारा चमोली में ज्योतिर्मठ का निर्माण किया गया। 1800 के शुरुआती वर्ष में गोर्खा द्वारा चमोली पर कब्ज़ा किया गया हालाँकि उनका शासन ज्यादा समय तक न चला सका। पंवार वंश के राजा, राजा सुदर्शन साह ने अंग्रेजो के साथ मिलकर गोर्खा को परास्त किया और पूर्वी गढ़वाल को श्रीनगर के साथ विलय करवाया, जिसको ब्रिटिश गढ़वाल के नाम दिया गया।
नए क्षेत्र के निर्माण के उपरांत अंग्रेजो द्वारा इसकी राजधानी को श्रीनगर के स्थान पर टिहरी कर दिया गया। अन्य स्थानों के साथ चमोली का भी एक समृद्ध इतिहास रहा है जो अपने सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहारों के लिए विख्यात है। स्थायी निवासियों द्वारा सभी त्योहारो को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है, इस दौरान वह अपनी पारम्परिक पौषक पहन कर ढोल दमौ की धुनों पर नृत्य करते है। साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार चमोली की जनसँख्या करीब 7 लाख की है, जिनमे से अधिकांश व्यक्ति हिन्दू समाज के है। यहाँ के लोग आमतौर पर गढ़वाली भाषा का इस्तेमाल करते है।