मदमहेश्वर मंदिर
जानकारी
भगवान शिव को समर्पित मधमहेश्वर का मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। पंच केदार में द्वितीय स्थान प्राप्त इस मंदिर से पहले भक्त केदारनाथ के दर्शन करते है। मद्महेश्वर में दर्शन उपरांत भक्त यहाँ से, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर में जाकर अपनी पंच केदार की यात्रा संपन्न करते है। ऐसा माना जाता है की भगवान शिव यहाँ मध्य भाग (नाभि) के रूप में उत्पन्न हुए थे, जिससे यहाँ उनके मध्य भाग की पूजा होती है। द्वापर युग में बने इस मंदिर का इतिहास हजारो वर्ष पुराना है, जिसका निर्माण पांडव पुत्र भीम द्वारा किया गया।
घास के मैदान, ऊँचे हरे भरे पहाड़, बर्फीली चट्टानें, और शांत वातावरण प्रस्तुत करता यह स्थान किसी को भी लुभाने के लिए काफी है। देहरादून से इस मंदिर की दूरी लगभग 260 किमी की है, जहाँ आप सड़क मार्ग से आ सकते है। हालाँकि ध्यान देने वाली बात यह है की गाडी से आप रांसी गांव तक ही आ सकते है, आगे का मार्ग आपको चलकर पूरा करना होगा।
मंदिर तक पहुंचने का रास्ता थोड़ा दुर्गम है लेकिन मार्ग में दिखने वाले हरे भरे बुग्याल, राज्य फूल ब्रह्मकमल, लुप्त होने की कगार पर कड़ी कस्तूरी मृग, विशेष प्रजाति के पक्षी, सुन्दर गांव आपको मंदिर तक पहुंचने के लिए आनंदित करते रहेंगे। मंदिर प्रांगढ़ में स्थित दो अन्य मंदिर है, जिनमे एक शिव परिवार और दूसरे में भगवान शिव की अर्धनारीश्वर स्वरुप की प्रतिमा है। इसके साथ ही मंदिर के अंदर माता सरस्वती के भी दर्शन कर सकते है। मंदिर से दो किमी की दूरी पर स्थित बूढ़ा मदमहेश्वर के मंदिर से आप चौखम्बा पर्वत को निहार सकते हो।
अत्यधिक ठण्ड और बर्फ़बारी के चलते सर्दियों में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते है। अतः भगवान शिव की पूजा अर्चना हेतु शिव की प्रतिमा को उखीमठ ले जाया जाता है। मंदिर में पूजा अर्चना दक्षिण राज्य कर्नाटक से आए जंगम समुदाय के पुजारी द्वारा की जाती है। पांडवो द्वारा निर्मित सभी पंच केदार एक ही कथा से जुड़े हुए है।
कहा जाता है की कुरुक्षेत्र के युद्ध पश्चात जब अपने भाइयो और गुरुओ की हत्या से पांडव व्यथित थे। शोक में व्याकुल पांडव अपना राज पाठ त्याग कर उसे अपने परिजनों को सुपुर्द करके भगवान शिव की खोज में काशी जा पहुंचे। लेकिन पांडवो से नाराज भगवान शिव ने उनकी प्राथना को अनसुना कर दिया और उनसे बचने के लिए एक बैल का रूप धारण कर लिया। थके हारे पांडव शिव जी को खोजते हुए गुप्तकाशी जा पहुंचे। एक स्थान पर बैठे ही थे की भीम की नजर निकट ही घास चर रहे एक बैल पर जा पड़ी। भीम ने तुरंत भांप लिया की भगवान शिव बैल का रूप धारण किये हुए है, जैसे ही भीम ने बैल का पैर और पूँछ पकड़नी चाही, बैल रूप में भगवान शिव धरती में अंतर्ध्यान हो गए।
अंतर्ध्यान होने के पश्चात भगवान शिव ने अपने असल रूप में पांच अलग स्थान पर अपने पांच अंग से दर्शन दिए। भगवान शिव के दर्शन पाकर पांडव मंत्रमुग्ध हो गए और अपने किये गए पापो का प्रायश्चित मांगने लगे। इन पांचो स्थल पर पांडवो ने पूजा अर्चना के बाद भगवान शिव की आराधना हेतु मंदिर का निर्माण किया। उनकी इस भक्ति भाव को देखकर भगवान शिव ने उन्हें क्षमा कर दिया।
यहां कैसे पहुंचे
देहरादून से लगभग 260 किमी दूर स्थित यह मंदिर उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इस धार्मिक स्थल पर आप सड़क मार्ग से होकर आ सकते है, जिसके लिए जीप, टैक्सी, और बस की सेवा देहरादून बस अड्डे और टैक्सी स्टैंड में उपलब्ध है। हालाँकि गाडी आप केवल रांसी तक ही लेकर आ सकते है, उसके आगे का मार्ग आपको पैदल चलकर पूरा करना होगा। रांसी से मद्महेश्वर मंदिर तक की पैदल यात्रा करीब 14 किमी की है। इसके निकटतम रेलवे स्टेशन 225 किमी दूर हरिद्वार में स्थित है, जो देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों को जोड़ता है, जबकि हवाई अड्डा 205 किमी दूर देहरादून में स्थित है।
यात्रा का सबसे अच्छा समय
यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से जून तथा सितम्बर से अक्टूबर का काफी अच्छा माना जाता है। अमूमन इन महीनो में मौसम एक दम साफ़ और सुहावना होता है, जिससे यात्रा करने में अधिक परेशानी नहीं आती है। बरसात और सर्दियों के समय इस स्थान पर आना उचित नहीं है, क्यूंकि इस दौरान यात्रियों को वर्षा, अत्यधिक ठण्ड, और बर्फ के कारण अनेक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
समुद्र तल से ऊँचाई
समुद्र तल से इस स्थान की ऊँचाई लगभग 3,497 मीटर (11,473 फ़ीट) है।