भगवान शिव को समर्पित, गोपीनाथ मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के गोपेश्वर में स्थित है। पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आने वाले इस मंदिर का निर्माण 9वी शताब्दी के दौरान कत्यूरी वंश द्वारा किया गया था,जो इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाता है। पंच केदारो में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी इसी गोपीनाथ मंदिर में है, जो अपनी शानदार वास्तुकला और शैली के लिए विख्यात है। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू जो की अपने आप प्रकट हुआ शिवलिंग है। मंदिर प्रांगढ़ में टूटी मुर्तिया इस मंदिर की पौराणिकता को दर्शाती है। मंदिर
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भगवान शिव को समर्पित, गोपीनाथ मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के गोपेश्वर में स्थित है। पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आने वाले इस मंदिर का निर्माण 9वी शताब्दी के दौरान कत्यूरी वंश द्वारा किया गया था,जो इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाता है। पंच केदारो में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ की शीतकालीन गद्दी इसी गोपीनाथ मंदिर में है, जो अपनी शानदार वास्तुकला और शैली के लिए विख्यात है। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू जो की अपने आप प्रकट हुआ शिवलिंग है। मंदिर प्रांगढ़ में टूटी मुर्तिया इस मंदिर की पौराणिकता को दर्शाती है। मंदिर प्रांगढ़ में आपको हनुमान, माँ दुर्गा, श्री गणेश व अन्य देवी देवताओ की मूर्ति देखने की मिलेंगी। मंदिर प्रांगढ़ में स्थित त्रिशूल की अपनी एक मान्यता है। पौराणिक कथा अनुसार जब भगवान शिव इस स्थान पर अपनी तपस्या में लीन थे, उस दौरान ताड़कासुर नाम के राक्षस ने तीनो लोको में हाहाकार मचा रखा था। पराजय झेल चुके सभी देवता मदद मांगने ब्रह्म देव के पास पहुंचे। ब्रह्म देव ने कहा की ताड़कासुर का वध
केवल शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकता है। लेकिन उधर घोर तपस्या में लीन शिव को उनकी तपस्या से जगाना नामुमकिन था। इसके लिए इंद्र देव ने कामदेव को शिव की तपस्या को भंग करने के लिए आमंत्रित किया, जिससे भगवान शिव माता पार्वती से शादी करके उनके द्वारा उत्पन्न पुत्र से ताड़कासुर का वध हो सके। काफी मशक्कत के बाद कामदेव भगवान शिव की तपस्या को भंग करने में सफल हुए। तपस्या भंग होने से भगवान शिव क्रोधित हो उठे और अपने त्रिशूल से कामदेव को मारने हेतु अपने त्रिशूल फेंका। कहा जाता है की मंदिर प्रांगढ़ में स्थित त्रिशूल वही है, जिसे भगवान शिव ने कामदेव को मरने हेतु फेंका था। यह त्रिशूल किस धातु का बना है इसका पता नहीं लगा सका है, हालाँकि शिव भक्तो का मानना है की यह त्रिशूल अष्ट धातु से निर्मित है, जिससे इस त्रिशूल पर किसी भी मौसम का प्रभाव नहीं होता। मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित रती कुंड का भी काफी महत्व है, कहा जाता है की इस कुंड में कामदेव की पत्नी रती मछली के
रूप में विराजमान है। इस कुंड के जल से ही भगवान शिव का अभिषेक भी किया जाता है। केदारनाथ मार्ग पर स्थित इस मंदिर में काफी संख्या में भक्त पधारते है और भगवान शिव से अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु प्राथना करते है। मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 5,009 फिट है इस मंदिर में आपको और भी अलग मान्यता देखने को मिल जाएगी जो आपको मंदिर समिति के लोगो से भी वार्ता कर सकते हो मंदिर में घूमने के लिए आप कभी भी आ सकते हो यहाँ पर लेकिन जुलाई और अगस्त के महीनो में थोड़ा सावधानी के साथ आये क्योंकि उस दौरान बारिश काफी देखने को मिल सकती है और यहाँ पहुँचने के लिए आपको नजदीक रेलवे स्टेशन जो हरिद्वार रेलवे स्टेशन जिसकी दुरी लगभग 234 की मी व एयर पोर्ट जॉली ग्रांट जो 220 किलोमीटर पर है इन जगहों पर पहुँच कर आगे जाने के लिए पहाड़ो की वादियाँ से होते हुए कार टैक्सी अन्य वाहनों की सुविधा भी मिल जाएगी