तुंगनाथ विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित देवाधि देव महादेव का मंदिर, भारत देश के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। समुद्र तल से लगभग 12,052 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर पूरे विश्व में शिव के सभी मंदिरो में से सबसे अधिक ऊंचाई पर है। सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय स्मारक इस मंदिर का इतिहास 8वी शताब्दी का है, जिसका निर्माण पाण्डव (अर्जुन) द्वारा किया गया था। पंच केदारो में से एक यह मंदिर अपनी धार्मिक, मान्यता और यहाँ से दिखने वाली बर्फ से ढकी पहाड़ियों के लिए विख्यात है। मंदिर में पहुँच कर आपको सुबह और शाम के समय का अदबुद्ध नज़ारा पहाड़ो पर पड़ती सूर्ये की पहली किरण जिसके दृश्य से यात्रीगण मंत्रमुग्द हो जाते है क्योंकि उस समय फर्फिले पहाड़ का रंग केसरिया देखने को मिलता है यह दृश्य देखने के लिए यात्री दूर दूर से आते है आपको बहुत ही कम जगहों पर देखने को मिलेगी मंदिर में हर साल काफी संख्या में लोग दर्शन करने एवं प्रकृति की सुंदरता को देखने आते है। हालाँकि इतनी ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में आना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण है। बर्फ से ढके रहना वाले इस स्थान पर यात्रियों को अत्यधिक ठण्ड वा ऑक्सीजन की कमी का एहसास कराता है, जिसे पार पाना
हर किसी के बस में नहीं है। पंच केदारो में से यह अकेला मंदिर है जिसके पुजारी दक्षिण भारत से न होकर उत्तर भारत के है। मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य पास ही स्थित मक्कूमठ गांव के मैथानी वंश के पुरोहित करते है। तुंगनाथ के दरवाजे भक्तो के लिए साल भर खुले रहते है लेकिन अधिक बर्फ़बारी के चलते सर्दियों के समय मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है, जिसके चलते मंदिर से भगवान की प्रतिमा और पुजारी जी को मक्कूमठ स्थित मारकंडेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है, जो की इस स्थान से 29 किमी दूर स्थित है। मंदिर मार्ग में खूबसूरत नजारो के साथ बेहद ही आकर्षक बुरांस के फूल दिखाई देंगे, जिनके फूलो से निकला हुआ रस शरीर को ठंडक और ताजगी देने के लिए मशहूर है। तुंगनाथ के मंदिर का इतिहास द्वापर युग का बताया जाता है, पारौणिक कथा अनुसार जब पांडवो ने महाभारत के युद्ध में विजय
प्राप्त की उसके बाद वह अपना राज पाठ अपने परिजन को सुपुर्द करके शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने एवं उनके द्वारा किये गए ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए प्रायश्चित मांगने गए थे। कहा जाता है की जब वह उनको ढूंढ़ते हुए गढ़वाल के गुप्तकाशी में पहुंचे तो थक हार एक जगह पर बैठ थे। तभी भीम को उस स्थान पर एक बैल घास चरते हुए दिखाई दिया। भीम तुरंत समझ गए थे की बैल के रूप में भगवान शिव है जो बैल का रूप धारण करके उनसे भाग रहे है, जैसे ही भीम ने बैल की पूँछ और पैर पकडे इतने में बैल रूप में शिव धरती में अंतर्ध्यान हो गए। अंतर्ध्यान होने के पश्चात बैल रूप में शिव पांच अलग जगह पर प्रकट हुए, जिसमे उनकी कमर केदारनाथ में, हाथ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और केश कल्पेश्वर में दिखाई दिए। शिव के इन पांच रूप को देखकर पांडव अति प्रसन्न हुए, जिसके बाद उन्होंने इन पांच जगहों पर शिव के मंदिर का निर्माण करके पूजा अर्चना की, जिसे एक हम सब पंच केदार के नाम से जानते है। पांडवो की भक्ति देखकर शिव ने उन्हें सारे पापो से मुक्त कर दिया। तुंगनाथ से 2 किमी की दूरी पर स्थित चंद्रशिला भी काफी विख्यात है, कहा जाता है की इस शिला इस शिला पर भगवान राम ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।