उत्तराखण्ड के साथ भारत के चार धामों में प्रसिद्ध श्री बद्रीनाथ धाम का मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। अलकनंदा नदी के तट पर स्थित इस तीर्थ स्थल की काफी मान्यता है, जहाँ हर साल लाखो की संख्या में भक्त दर्शन करने हेतु पधारते है। नर और नारायण पर्वत के मध्य स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसे हिन्दू धर्म के लोगो का मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है। बद्रीनाथ धाम के अलावा गुजरात स्थित द्वारिका धाम, तमिलनाडु स्थित रामेश्वर धाम, और ओडिशा स्थित जगन्नाथ धाम जो की भारत के चार धामों से विख्यात है, मोक्ष द्वार के नाम से प्रसिद्ध है।
समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ धाम का तापमान पूरे वर्ष ठंडा रहता है। अत्यधिक बर्फ़बारी के चलते बद्रीनाथ धाम के कपाट अक्टूबर/नवंबर माह में बंद कर दिए जाते है, जिसे मार्च/अप्रैल माह में अक्षय तृत्य के शुभ दिवस पर खोले जाते है। कपाट बंद करते समय मंदिर में घी की अखंड ज्योत जलाई जाती है, जो कपाट खुलने तक जलती रहती है। इस अखंड ज्योत के दर्शन करने हेतु कपाट खुलने पर काफी संख्या में श्रद्धालु अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते है।
कपाट बंद करने के बाद बद्रीनाथ की डोली को ज्योतिर्मठ स्थित नरसिंह मंदिर ले जाया जाता है, जहाँ पूरे विधि विधान से उनकी पूजा की जाती है। रावल कहे जाने वाले धाम के मुख्य पुजारी केरला के नम्बूदिरी ब्रह्मिन समाज से सम्बन्ध रखते है। कहा जाता है की मंदिर के मुख्य पुजारी के चुनाव की प्रक्रिया महान विद्वान् आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई थी, जिसे आज के समय भी अपनाया जाता है। आदि शकराचार्य द्वारा निर्मित बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण 9वी शताब्दी का बताया जाता है। तीन भागो में संरचित बद्रीनाथ के मंदिर में, मुख्य गर्भग्रह, दर्शन मंडप, और सभा मंडप है।
भगवान विष्णु की प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में शालिग्राम के रूप में स्थापित है, जिनके एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र है एवं उनके अन्य दो हाथ योगध्यान की मुद्रा में है। बद्री वृक्ष के निचे स्थापित इस शालिग्राम की ऊंचाई लगभग एक फ़ीट की है, जिसके ऊपर सोने का छत्र चढ़ाया हुआ है।
पारौणिक कथा अनुसार जब भगवान विष्णु गहरी तपस्या में लीन थे तो उनको धुप, बारिश और सर्दी से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने अपने आप को एक वृक्ष (जिसे बद्री वृक्ष से जाना जाता है) के रूप में परिवर्तित कर लिया, जिसके फलस्वरूप मंदिर को बद्री विशाल के नाम से जाना जाता है। मंदिर प्रांगढ़ में भक्त अन्य देवी देवता के दर्शन भी कर सकते है, जहाँ मुख्य रूप से कुबेर, नारद ऋषि, नर और नारायण के साथ अन्य 15 देवी देवताओ की मुर्तिया शामिल है।
पारौणिक मान्यता प्राप्त इस मंदिर के निकट ही आपको कुदरत का एक अनूठा करिश्मा देखने को मिलेगा। मंदिर के निकट स्थित तप्त कुंड की एक अपनी एक खासियत है जो लोगो को अचंभित करती है। अत्यधिक ठंडा रहने वाला बद्रीनाथ के तापमान में इस कुंड का पानी 55 डिग्री तक रहता है।
कहते है की इस कुंड में साक्षात् अग्नि देव का वास है, जिसके चलते इस कुंड का पानी बारह माह तक गर्म ही रहता है। इसके पानी को छूने पर ऐसा प्रतीत होता है ये आपके शरीर को जला देगा लेकिन इसमें प्रवेश करते ही आपको इसके अत्यधिक तापमान का एहसास भी नहीं होगा।
मंदिर में प्रवेश पूर्व भक्त इस कुंड में जरूर से स्नान करते है। विष्णु पुराण के तहत, यम के जुड़वाँ पुत्र नर और नारायण धर्म के प्रचार हेतु एक स्थान की तलाश कर रहे थे। अपनी खोज के दौरान उनका सामना हुआ योग ध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्धा बद्री, और आदि बद्री से अन्तः उन्होंने अलकनंदा नदी के तट पर बद्री विशाल की खोज की। आगे चलकर इन सभी स्थानों को पंच बद्री के नाम से पहचाने जाने लगा। मंदिर के निकट ही समिति द्वारा माता मूर्ति के मंदिर में एक मेले का भव्य आयोजन किया जाता है, जो की नर और नारायण की माता को समर्पित है।