रुद्रनाथ मंदिर

Sep 17, 2024
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जानकारी

भगवान शिव को समर्पित रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह मंदिर पंच केदारो का चौथा केदार माना जाता है जिसकी यात्रा उन सभी में से सबसे कठिन मानी जाती है। विद्वान द्वारा बताया है है की इस मंदिर का इतिहास द्वापर काल का है, जिसकी खोज हिन्दुओ के प्रसिद्ध गुरु आदि शंकराचार्य जी द्वारा 8वी शताब्दी के दौरान की गई थी। मंदिर में भगवान शिव केवल मुख रूप में विराजमान है, जबकि उनके पूरे शरीर के दर्शन नेपाल के पशुपतिनाथ में किये जा सकते है। चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थित इस धार्मिक स्थल पर आप सड़क मार्ग से आ सकते है, जिसकी देहरादून से कुल दूरी 270 किमी की है।

हालाँकि भक्तो को सड़क मार्ग से करीब 20 किमी की यात्रा पैदल चलकर पूरी करनी होगी। यह धार्मिक स्थल न केवल शिव भक्तो में बल्कि ट्रैकिंग के शौक़ीन व्यक्तियों के लिए भी खास मानी जाती है। वर्ष में काफी संख्या में यहाँ आपको लोग ट्रैकिंग करते हुए दिखाई दे जाएंगे। मंदिर में भक्त दो ट्रेक के माध्यम से पहुँच सकते है। जहा पहला ट्रेक गोपेश्वर से तीन किमी दूर सागर से शुरू होता है वही दूसरा ट्रेक गोपेश्वर से 12 किमी मण्डल से शुरू होता है, जिसके मार्ग में भक्त माँ अनसूया के भी दर्शन कर सकते है। मंडल वाले ट्रेक की दूरी लगभग 24 किमी की है, जिसे बेहद ही कठिन माना जाता है।

खूबसूरत वादियों के बीच स्थित यह मंदिर बेहद ही मनमोहक दृश्य और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। बुरांस के फूलो से घिरा यह स्थान बेहद ही आकर्षक छवि पैदा करता है, जो पहली नजर में भक्तो को लुभाता है। साफ़ मौसम में आप यहाँ से नंदा देवी के साथ त्रिशूल पर्वत, हाथी पर्वत, देवस्थान और नंदा घुंटी जैसे पर्वतो के भी दर्शन कर सकते है। मंदिर के निकट बहने वाली रुद्रगंगा में पिंड दान करना काफी शुभ माना जाता है, इसी वजह से इस नदी को मोक्ष की नदी भी कहा जाता है। प्राचीन होने के साथ इस मंदिर की कथा बेहद ही रोचक है।

पारौणिक कथा अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात अपने भाइयो (कौरव) एवं ब्रह्म हत्या (अपने गुरु) की आत्मग्लानि से व्यथित पांडव भगवान शिव की शरण में पहुंचे। लेकिन पांडव से नाराज शिव ने उन्हें दर्शन न देकर उनसे छुपकर एक बैल का रूप धारण कर लिया। शिव को ढूंढ़ते हुए पांडव गढ़वाल क्षेत्र के गुप्तकाशी तक जा पहुंचे। बैल का रूप धारण किये भगवान शिव को पाण्डु पुत्र भीम ने पहचान लिया और जैसे ही भीम ने बैल के पैर और पूँछ पकड़नी चाही उतने में ही भगवान शिव उस स्थान से अंतर्ध्यान हो गए। धरती में समाने के बाद भगवान शिव ने पांडवो को पांच अलग अलग स्थानों पर दर्शन दिए जहाँ उनके शरीर के पांच अंग प्रकट हुए।

भगवान शिव के इस दिव्य दर्शन को देखकर पांडव नतमस्तक हो गए और अपनी गुनाह की माफ़ी मांगी। जिन स्थानों पर भगवान शिव के ये अंग प्रकट हुए उन्हें पंच केदार के रूप में पहचाने जाने लगा। भगवान शिव की कमर केदारनाथ में, हाथ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और केश कल्पेश्वर के रूप में प्रकट हुए। इसके पश्चात पांडवो ने पूजा अर्चना करके इन स्थानों पर शिव के पांचो अंगो के मंदिर का निर्माण किया। उनकी भक्ति भाव देखकर शिव जी ने पांडवो को उनके द्वारा किये गए पापो से मुक्ति दी।

मंदिर के कपाट सर्दी के समय भक्तो के लिए बंद कर दिए जाते है इस दौरान उनकी डोली को गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में पूजा अर्चना के लिए लाया जाता है। प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में पूर्णिमा के दिवस (विशेषकर रक्षाबंधन) को यहाँ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमे काफी संख्या में गांव के लोग हिस्सा लेते है। मंदिर के निकट अनेक प्रकार के कुंड भी है जिनमे सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, तारा कुंड, और माना कुंड प्रमुख है।

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गोपीनाथ मंदिर

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