चंद्रबदनी मंदिर
जानकारी
टिहरी जिले के चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित माता चन्द्रबदनी का मंदिर एक पवित्र हिन्दू स्थल है। माता सती को समर्पित यह मंदिर माता सती के 51 शक्ति पीठो में से एक है, जिसे चंद्रबदनी सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है। अपने दिव्य स्वरुप के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर के द्वारा वर्ष भर खुले रहते है, जहाँ श्रद्धालु विभिन्न स्थानों से अपनी मनोकामना लिए मंदिर में पधारते है। देवप्रयाग से लगभग 33 किमी दूर इस मंदिर में सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। मंदिर में अनेक पर्व जैसे की नवरात्री और अप्रैल में आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में काफी भीड़ देखी जाती है।
समुद्र तल से 1,353 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर से श्रद्धालु सुरकंडा पर्वत, बद्रीनाथ और केदारनाथ की बर्फ से ढकी चोंटियो को भी निहार सकते है। श्रद्धालुओं के साथ मंदिर प्रकृति प्रेमियों को भी आकर्षित करता है, जहाँ से वह प्रकृति के अद्भुत और विहंगम नज़ारे को देख सकते है। इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के चलते मंदिर से सूर्योदय और सूर्यास्त का भी एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है, जिसे देखने काफी संख्या में लोग एकत्रित होते है।
शक्ति पीठ
माता सती को समर्पित चंद्रबदनी का यह मंदिर कुंजापुरी और सुरकंडा मंदिर के पश्चात टिहरी का तीसरा शक्ति पीठ है। मंदिर के गर्भ गृह में माता की मूर्ति के स्थान पर एक श्री यन्त्र है, जिसे कपडे के छत्र के नीचे रखा गया है। मंदिर के पुजारी और सभी श्रद्धालु इस यंत्र की उपासना एवं पूजा करके माँ से आशीर्वाद मांगते है। इस यंत्र के अतिरिक्त मंदिर में अन्य देवी देवताओ क मूर्ति भी स्थापित की गई है।
इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के चलते मंदिर से नजदीकी क्षेत्रों का बेहद ही विहंगम नजारा दिखाई पड़ता है। दूर केदारनाथ और बद्रीनाथ पर्वत की डर्फ से ढकी चोंटिया बेहद ही उम्दा और आकर्षक दिखाई पड़ती है। टिहरी के जामनीखाल गांव में स्थित यह मंदिर श्रीनगर से 52 किमी और टिहरी से लगभग 57 किमी की दूरी पर है। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता एक किमी के ट्रेक से गुजरता है। पुराणों के अनुसार जब माता सती का धड़ इस थान पर गिरा था उस दौरान माता के कुछ त्रिशूल और मुर्तिया भी गिरी थी, जिसके चलते यहाँ आज भी त्रिशूल और माता की मुर्तिया मंदिर के आस पास देखी जाती है।
चंद्रबदनी मंदिर ट्रेक
चंद्रबदनी मंदिर की धार्मिक शुरुआत 1 किमी लम्बे पैदल मार्ग से चलकर होती है। यह एक किमी की चढाई एक दम खड़ी है, जिसके लिए शारीरिक क्षमता बेहद आवश्यक है। हालाँकि ट्रेक मार्ग की खूबसूरती, गगन चुम्बी पहाड़ और चारो तरफ हरियाली इस पैदल मांग को सुगम बनाने में सहायता करते है। मंदिर ट्रेक मार्ग पक्का है, जिसमे किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता और वर्ष से बचाव हेतु टीन शेड भी डाली गई है।
वार्षिक मेला
अप्रैल माह में मंदिर में एक वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। माँ के भक्त मेले के इस आयोजन का हिस्सा बनने बड़ी ही दूर दूर से पधारते है। इस दौरान, मंदिर में स्थापित माता के श्री यंत्र को पूरे धार्मिक मंत्रोचार के साथ एक नए कपडे के छत्र के साथ बाँधा जाता है। केदारखंड के अनुसार इस स्थान पर माता सती के धड़ का हिस्सा गिरा था, जिसके चलते कपडा बदलने की प्रक्रिया के दौरान मंदिर के पुजारी की आँखों पर कपडा बाँधा जाता है।
मंदिर का समय
मंदिर रोजाना भक्तो के लिए सुबह 6 बजे खुलता है और शाम को 7 बजे बंद हो जाता है।
ठहरने की व्यवस्था
मंदिर के निकट ठहरने की उचित व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। अतः रात्रि विश्राम के लिए यात्रियों को होमस्टेस और होटल की सुविधा देवप्रयाग में मिल जाएगी।
इतिहास
चंद्रबदनी मंदिर के इतिहास की जानकारी केदारखंड के 141 अध्याय में लिखी गई है। अध्याय के अनुसार जब माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमे उन्होंने सभी को निमंत्रण भेजा लेकिन द्वेष भावना के चलते अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। जब सती को यज्ञ के बारे में सुचना मिली तो उन्होंने भगवान शिव से चलने का आग्रह किया। लेकिन भगवान शिव ने निमंत्रण न मिलने के चलते सती का या आग्रह ठुकरा दिया। सती के बार-बार आग्रह करने पर भी जब शिव चलने को राजी नहीं हुए तो क्रोध में आकर सती यज्ञ की प्रज्जवलित ज्वाला में कूद पड़ी। जैसे ही शिवा को सती की मृत्यु की सूचना प्राप्त हुई तो क्रोधित शिव राजा दक्ष के यज्ञ स्थल पर पहुंचे और सती के जले हुए देह को देखकर उनके रौद्र रूप ने राजा दक्ष के सर को धड़ से अलग कर दिया।
क्रोध और पीड़ा से व्याकुल शिव ने माता सती के जले हुए शरीर को लेकर यहाँ वहाँ भटकने लगे। उनके इस रूप को देखकर सभी देवगण चिंतित हो गए और शिव को शांत करने हेतु भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती को टुकड़ो में काट दिया। जिस भी स्थान पर माता सती के शरीर के वह टुकड़े गिरे उन्हें आज शक्ति पीठ के रूप में पूजा और पहचाना जाता है। इन सभी शक्ति पीठो पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है, जिसकी पूजा अर्चना करके श्रद्धालु माता का आशीर्वाद प्राप्त करते है। ऐसा कहते है की माता सती के शरीर का धड़ उस स्थान पर गिरा था, जहाँ पर वर्तमान में चंद्रबदनी का मंदिर निर्मित है।
यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
- मंदिर जाने हेतु सीधे तौर पर सार्वजानिक वाहन की सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसलिए टैक्सी या स्वयं की गाडी से जाने की सलाह दी जाती है।
- पैदल मार्ग पर चलने हेतु यात्री आरामदायक जूते अवश्य से पहने।
- मंदिर के पैदल मार्ग वाले स्थान पर सड़क किनारे गाडी खड़ी करने की उचित व्यवस्था है जो एकदम निशुल्क है।
- पूजा और प्रसाद की सुविधा मंदिर प्रांगढ़ और रास्ते पर उपलब्ध है।
- यात्रा मार्ग पर चलते हुए अपने साथ पीने का पानी अवश्य से रखे।
- मंदिर के गर्भ गृह में फोटो और वीडियो बनाना वर्जित है।
- सूर्य ढलने से पहले मंदिर से प्रस्थान अवश्य कर ले क्यूंकि अँधेरे में कई तरह की परेशानी हो सकती है।
- नवरात्री एवं अन्य त्योहारों के समय मंदिर में भक्तो को अधिक भीड़ का सामना करना पड़ सकता है।
- अपनी गाडी में तेल के मात्रा की जांच अवश्य से कर ले क्यूंकि निकटतम पेट्रोल यहाँ से 33 किमी दूर देवप्रयाग में है।
- मंदिर के स्थान पर मोबाइल नेटवर्क सिमित है। अतः अपने पास उचित मात्रा में रूपए कैश में रखे।
- मानसून के दौरान यात्रा करने से बचे, जिससे विभिन्न तरह की हानी बनी रहती है।
नजदीकी आकर्षण
- चंद्रबदनी माता के भव्य दर्शन एवं आशीर्वाद पश्चात आप इसके निकटतम अन्य आकर्षण केंद्र पर भी जा सकते है : -
- देवप्रयाग।
- बूढ़ा केदार।
- टिहरी झील।
- डोबरा चांटी पुल।
यहां कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से : - माता चंद्रबदनी का मंदिर देहरादून आईएसबीटी से लगभग 146 किमी और ऋषिकेश बस स्टैंड से करीब 106 किमी की दूरी पर स्थित है। टिहरी गढ़वाल में स्थित इस मंदिर में आप सड़क मार्ग से बस, टैक्सी, या निजी वाहन से आ सकते है। हालाँकि मंदिर तक जाने के लिए सीधे तौर पर यूनियन टैक्सी और बस की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
रेल मार्ग से : - मंदिर के निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का योग नगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जिसकी दूरी मंदिर से लगभग 105 किमी की है। रेलवे स्टेशन से मंदिर जाने के लिए टैक्सी की उचित व्यवस्था है।
हवाई मार्ग से : - इसके निकटतम हवाई अड्डा देहरादून के जॉली ग्रांट में है जो मंदिर से करीब 140 किमी की दूरी पर है। यात्री एयरपोर्ट से ऋषिकेश से टैक्सी की सेवा लेकर मंदिर जा सकते है।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम
वर्ष भर खुले रहने वाले इस मंदिर में श्रद्धालु कभी भी जा सकते है लेकिन उम्दा अनुभव के लिए सबसे उपयुक्त समय मार्च से जून एवं सितम्बर से दिसंबर का माना जाता है। बरसात और सर्दियों का समय यात्रा में कुछ परेशनी बन सकता है, जिससे यात्रियों को परेशानी हो सकती है।
समुद्र तल से ऊँचाई
चंद्रबदनी सिद्ध पीठ समुद्र तल से 1,353 मीटर की ऊंचाई (4,438 फ़ीट) पर स्थित है।