सुरकंडा देवी मंदिर
जानकारी
टिहरी जिले के मसूरी चम्बा रोड पर स्थित माँ सुरकंडा देवी का मंदिर उत्तराखंड के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। माता सती को समर्पित यह मंदिर प्रकृति की सुंदरता का उत्कृष्ट उदहारण जो समुद्र तल से 9,000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। मसूरी से मात्र दो घंटे की यात्रा दूर यह मंदिर कद्दूखाल के उन्नियाल गांव में स्थित है। इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के चलते मंदिर से दूर हिमालय की चोंटिया भी छोटी प्रतीत होती है। मसूरी धनोल्टी मार्ग से होते हुए प्रकृति के विहंगम नजरो का मजा लेते हुए श्रद्धालु इस मंदिर में सड़क मार्ग से पहुँच सकते है। पहाड़ की चोंटी पर स्थित होने के चलते मंदिर से देहरादून, चन्द्रबदनी, चकराता और प्रताप नगर जैसे क्षेत्रों का बड़ा ही सुन्दर और भव्य नजारा देखने का मिलता है।
अपनी मनोकामना लिए और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में पधारते है। प्रत्येक दिवस मंदिर में श्रद्धालुओं को तांता लगा रहता है, जो भक्तो की माँ के प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है। श्रद्धालुओं के साथ यहाँ ट्रैकिंग और प्रकृति प्रेमी भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते है, जहाँ से वह प्रकृति के बीच शांत वातावरण में कुछ पल बिताना चाहते है। मंदिर की भव्यता और यहाँ से दिखने वाले नज़ारे इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते है। सर्दियों के दौरान पड़ने वाली बर्फ़बारी से मंदिर की खूबसूरती अत्यधिक बढ़ जाती है जो किसी स्वर्ग से कम नहीं लगती।
शक्ति पीठ
51 शक्ति पीठो में एक माँ सुरकंडा का नाम संस्कृत शब्द से लिया गया है, इसमें 'सर' यानि सिर और 'खंड' का मतलब है टुकड़े। पुराणों के अनुसार यह वही स्थान है जहाँ माता सती का सर गिरा था जब उनके शरीर को भगवान विष्णु द्वारा 51 अंगो में विभाजित किया था। माता सती का यह शक्ति पीठ श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जिसका बड़ा ही धार्मिक महत्व है। इस पवित्र स्थल की महत्ता आस पास के ग्रामीणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। टिहरी जिले में स्थित माँ सुरकंडा देवी का यह मंदिर तीसरा शक्ति पीठ है, इसके अतिरिक्त जिले में माँ कुंजापुरी देवी और माता चन्द्रबदनी देवी की गिनती भी शक्ति पीठो में की जाती है।
रोपवे
सुरकंडा मंदिर में दर्शन हेतु श्रद्धालुओं को पहले 2 किमी की खड़ी चढाई चलकर जाना होता है, जिसके चलते कई श्रद्धालु जो चलने में असहाय है माता के दर्शन करने से वंचित रह जाते थे। श्रद्धालुओं को दर्शन करवाने हेतु राज्य सरकार द्वारा मंदिर में रोपवे की सुविधा प्रदान की गई, जिसके चलते अब श्रद्धालु रोपवे की सहायता से मंदिर तक बिना चले पहुँच सकते है।
रोपवे सेवा का लाभ लेने हेतु सभी यात्रियों को 205 रूपए प्रति व्यक्ति का शुल्क अदा करना होता है। यह शुल्क चार वर्ष से ऊपर सभी व्यक्ति और बच्चो पर लागु होता है। रोपवे सेवा शुरू होने के बाद मंदिर का वैकल्पिक पैदल मार्ग पहले की तरह खुला है, इसका प्रयोग कई श्रद्धालुओं द्वारा अभी भी किया जाता है। रोपवे की यात्रा के दौरान प्रकृति के विहंगम नज़ारे और हवा में केबल की सहायता से जाना एक अलग ही आनंद पैदा करता है।
मंदिर का समय
गर्मियों में | सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे तक |
सर्दियों में | सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक |
ठहरने की सुविधा
सुरकुण्डा देवी के दर्शन आए श्रद्धालु और अन्य के लिए यहाँ मौजूद होमस्टेस और रिसोर्ट में ठहरने की उचित व्यवस्था उपलब्ध है। हालाँकि इनकी संख्या सिमित होने के चलते यात्रियों को रात्रि ठहरने हेतु समस्या का भी सामना करना पड़ता है। हालाँकि यहाँ से 16 किमी दूर धनोल्टी और 30 किमी दूर चम्बा में रहने के कई विकल्प मौजूद है।
इतिहास
कहते है की भगवान शिव के साथ विवाह करने पर देवी सती के पिता राजा दक्ष काफी नाखुश थे। शिव को अपमान करने के लिए, राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में शामिल होने हेतु राजा दक्ष ने सभी को आमंत्रण भेजा सिवाय उनकी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को। आमंत्रण ना मिलने के बावजूद पिता मोह के चलते सती ने बिना भगवान शिव के बिना यज्ञ में हिस्सा लिया। सती को यज्ञ में शामिल देखकर राजा दक्ष ने सभी मेहमानो के समक्ष शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। अपने पिता के मुख से इन शब्दों को सुनकर आहत सती ने यज्ञ की जलती ज्वाला में अपने प्राणो की आहुति दे दी। यह सब देखकर क्रोधित शिवा ने देवी सती के जलते हुए शरीर को यज्ञ से उठाकर चल दिए।
शोक में व्याकुल शिव अपनी अर्धांगनी के जले हुए देह को लेकर यहाँ वहाँ भटकने लगे। शिव के इस रूप को देखकर सभी देवगण चिंतित हो गए और उन्हें शांत करने के लिए भगवान विष्णु से याचना की। भगवान विष्णु के आग्रह करने पर भी जब शिव शांत नहीं हुए तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को 51 अंगो में विभाजित कर दिया। सती के यह विभाजित अंग धरती के अलग अलग स्थानों में गिरे, जिन्हे आज 51 शक्ति पीठो के नाम से पहचाना और पूजा जाता है। कहते है माता सुरकंडा के इस मंदिर में देवी सती का सर गिरा था, जिसके चलते इस स्थान को सुरखंडा के नाम से जाने जाना लगा। आगे चलकर इस स्थान पर देवी की पूजा अर्चना हेतु मंदिर का निर्माण किया गया, जिसे पहले सिरखंडा नाम दिया गया, लेकिन बदलते समय के साथ इसका नाम सुरकंडा कर दिया गया।
यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
- सार्वजानिक वाहन जैसे बस की संख्या सिमित होने के चलते श्रद्धालुओं को टैक्सी बुक करके, दू पहिया वाहन या स्वयं के वाहन से यहाँ आने की सलाह दी जाती है।
- मंदिर के निकट ठहरने की सुविधा सिमित है, श्रद्धालु अपने ठहरने की व्यवस्था धनोल्टी या चम्बा में भी देख सकते है।
- सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करने की सुविधा निशुल्क है।
- रोपवे सेवा का टिकट सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक ही जारी किया जाएगा।
- मंदिर के पैदल मार्ग पर मौजूद बन्दर से बच कर चले और अपने प्रसाद और खाने पीने की वस्तुओ को बैग में ही रखे।
- उन चट्टान के सहारे वाहन खड़ा न करे जहाँ से मलबा गिरने की संभावना हो जो आपकी गाडी को नुकसान पहुंचा सकते है।
- गाडी को खाई के तरफ खड़ा करने से बचे, इससे गाडी का नीचे गिरने का खतरा बना रहता है।
- मंदिर के प्रवेश द्वारा के बाहर श्रद्धालुओं के लिए जूते रखने की उचित व्यवस्था है।
- मंदिर में चढाने हेतु प्रसाद की सुविधा नीचे कद्दूखाल में उचित मात्रा में उपलब्ध है।
- नवरात्री, सप्ताहांत या अन्य महत्वपूर्ण दिवस पर श्रद्धालुओं को भारी भीड़ और ट्रैफिक की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
- यदि पैदल मार्ग से मंदिर जा रहे है तो आरामदायक जूते अवश्य पहने।
- अपने साथ पीने का पानी अवश्य से रखे।
- सर्दियों के दौरान मार्ग में पाले की वजह से फिसलन का सामना करना पड़ सकता है।
- मंदिर के निकट मोबाइल सिग्नल की समस्या बनी रहती है, इसलिए अपने साथ कुछ रूपए अवश्य से रखे।
- मंदिर के गर्भगृह में किसी भी प्रकार की फोटो और वीडियो लेना प्रतिबंधित है।
- गाडी में तेल की जांच अवश्य कर ले क्यूंकि मंदिर के सबसे नजदीक पेट्रोल पंप 15 किमी दूर धनोल्टी में स्थित है।
- मानसून के दौरान यात्रा करने से बचे क्यूंकि रास्ते में आपको भूस्खलन और सड़क धसने जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
- मंदिर के पैदल मार्ग उबड़ खाबड़ और पथरीले पथरो से भरा है अतः अपने कदम ध्यान से रख कर आगे बढे।
नजदीकी आकर्षण
- मंदिर में माता के दर्शन करने के बाद आप निकटतम अन्य स्थलों पर घूमने का प्लान बना सकते है; जैसे की : -
- कनाताल।
- धनोल्टी।
- ईको पार्क।
- टिहरी झील।
- टिहरी डैम।
- डोबरा चांटी पुल।
यहां कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से : - मसूरी चम्बा रोड के कद्दूखाल में स्थित सुरकंडा देवी का मंदिर देहरादून घंटाघर से लगभग 66 किमी और मसूरी से 47 किमी दूर है। यह मंदिर मसूरी, देहरादून और चम्बा जैसे क्षेत्रों से सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है, जहाँ यात्री बस, टैक्सी, बाइक या स्वयं के वाहन से पहुँच सकते है। मंदिर जाने के लिए यात्री देहरादून के पर्वतीय बस अड्डे या परेड ग्राउंड से गढ़वाल मंडल की बस सेवा का लाभ ले सकते है। इसके अतिरिक्त यात्री लाइब्रेरी चौक मसूरी बस स्टैंड से भी बस सेवा का लाभ ले सकते है। किराये पर ट्व व्हीलर की सुविधा आपको देहरादून और मसूरी के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हो जाएगी। सड़क मार्ग से यात्री केवल कद्दूखाल तक आ सकते है, इसके पश्चात यात्री 2 किमी की पैदल यात्रा या रोपवे की सहायता से मंदिर पहुँच सकते है।
रेल मार्ग से : - मंदिर के निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून में करीब 69 किमी की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से यात्रियों को टैक्सी, ट्व व्हीलर रेंटल सेवा और देहरादून पर्वतीय बस अड्डे से बस की सुविधा आसानी से प्राप्त हो जाती है।
हवाई मार्ग से : - इसके निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो मंदिर से 95 किमी दूर है। एयरपोर्ट से यात्री टैक्सी के माध्यम से मंदिर पहुँच सकते है।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम
वर्ष भर खुले रहने वाले इस मंदिर में श्रद्धालु कभी भी आ सकते है। लेकिन मंदिर आने का सबसे उत्तम समय फरवरी से अप्रैल और अगस्त से दिसंबर का माना जाता है। बरसात और बर्फबारी के दौरान यात्रा मार्ग अवरुद्ध होने के चलते यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
समुद्र तल से ऊँचाई
सुरकंडा देवी का मंदिर समुद्र तल से करीब 2,756 मीटर (9,000 फ़ीट से) अधिक की उचाई पर स्थित है।