कालीशिला
जानकारी
माता सती को समर्पित कालीशिला का यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के रॉनलेक गांव में स्थित है। कालीमठ के बाद यह मंदिर स्थानीय क्षेत्र के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु यहाँ माँ के दर्शन करने के लिए पधारते है। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 2 किमी की पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है जो की थका देने वाली होती है। माता सती के 51 शक्ति पीठो में शामिल यह मंदिर अध्यात्म की शक्ति का बेहद ही उम्दा उदहारण है। यहाँ पधारते ही मानो शरीर में एक विशेष ऊर्जा का सृजन होने लगता है। मंदिर में श्रद्धालु रॉनलेक के साथ कालीमठ से भी पधार सकते है हालाँकि यात्रियों द्वारा पहले वाले विकल्प को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
कालीशिला
समुद्र तल से 7,000 फ़ीट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित कालीशिला का यह मंदिर बेहद ही नैसर्गिक नज़ारे प्रस्तुत करता है। इसकी चोंटी से श्रद्धालुओं को बर्फ से ढकी हिमालय श्रृंखला के बेहद ही विहंगम नज़ारे देखने को मिलते है, विशेषकर चौखम्बा और केदारनाथ की। माँ काली के भक्त वर्ष भर मंदिर में दर्शन और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पधारते है। रुद्रप्रयाग से 65 और ऋषिकेश से 198 किमी दूर इस मंदिर में श्रद्धालु बस तथा टैक्सी के द्वारा आ सकते है। हालाँकि सीधी परिवहन सेवा से जुड़ा न होने के चलते मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको दो से तीन वाहन बदलने पड़ते है।
मंदिर को कालीशिला क्यों कहा जाता है?
कालीशिला अर्थात एक बड़ी सी शिला (यानी पत्थर) जिसके काले रंग के चलते मंदिर का नाम "काली शिला" पड़ा। कालीमठ के समान ही इस मंदिर में भी काली माँ को समर्पित कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। यहाँ भी माँ काली को श्री यन्त्र के रूप में पूजा जाता है जो की इस विशालकाय काली शिला के नीचे स्थापित बताया जाता है। यह पत्थर पहाड़ के कौने में 45 डिग्री के कौण में स्थापित है, जिससे इसकी परिक्रमा बेहद ही मुश्किल हो जाती है। माँ की भक्ति और शक्ति के चलते कुछ ही व्यक्ति आज तक इस पत्थर की परिक्रमा कर पाए है।
कालीशिला का इतिहास
हिन्दू पौराणिक कथाओ में कालीशिला मंदिर का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। कहते है जब धरती और स्वर्ग लोक में दानवो का अत्याचार बढ़ गया था तो सभी देवगणो ने माँ पार्वती का आह्वान किया था। भक्तो की पुकार से माँ ने इसी स्थानों पर सबको दर्शन दिए थे। कहते है जब माँ को शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज जैसे दैत्यों के अत्याचार के बारे में पता चला तो क्रोध के चलते उन्होंने माँ काली का रूप धारण कर लिया।
माँ काली के उग्र रूप ने अपने 64 यंत्रो की शक्ति से शुम्भ और निशुम्भ का वध हरिद्वार स्थित नील पर्वत पर किया था, जहाँ पर आज के समय में चंडी देवी मंदिर स्थित है। तो वहीँ दूसरी तरफ रक्तबीज नामक दैत्य का संहार उन्होंने कालीमठ पर किया था। कहते है रक्तबीज का वध करने के पश्चात माँ काली के उग्र रूप को शांत करने के लिए स्वयं भगवान शिव उनके कदमो के नीचे लेट गए थे। स्थानीय लोगो के अनुसार कालीशिला ही वह स्थान है, जहाँ पर माता सती ने माँ पार्वती के रूप में दुबारा जन्म लिया था।
निवास की सुविधा
मंदिर के निकट रात्रि निवास के लिए विभिन्न प्रकार के होमस्टे उपलब्ध है, जिन्हे यात्री अपनी आवश्यकतानुसार बुक कर सकते है। यहाँ मौजुद होमस्टे ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा प्रदान नहीं करते, जिसके चलते यात्रियों को फ़ोन के माध्यम से उपलब्धता चेक करके बुक करना होता है। यहाँ उपलब्ध कुछ प्रमुख होमस्टे इस प्रकार से है: -
- सृष्टि होमस्टे।
- कोतवाल होमस्टे।
- नेगी होमस्टे।
- हिमालयन होटल।
- पंवार होमस्टे।
- माउंट हॉलिडे मड हाउस।
- श्री मध्यमहेश्वर होमस्टे।
- चौखम्बा दर्शन होमस्टे।
खाने की व्यवस्था
मंदिर के स्थानीय क्षेत्र में खाने और पीने की व्यवस्था काफी सीमित है। यहाँ आपको मुख्यतः चाय की दूकान मिल जाती है। यहाँ आते समय यात्री अपने साथ कुछ खाने और पीने की वास्तु अवश्य लेकर चलें। हालाँकि खाने की सुविधा आपको स्थानीय होमस्टे पर आसानी से प्राप्त हो जाती है।
श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
- बस से यात्रा करने वाले व्यक्ति सुबह बस स्टैंड जल्दी पहुंचे।
- बस सेवा केवल रुद्रप्रयाग या उखीमठ तक उपलब्ध होती है उससे आगे की यात्रा आप टैक्सी से कर सकते है।
- यात्रा के दौरान अपने साथ उचित मात्रा में कैश रख कर चलें।
- बुकिंग की उपलब्धता चेक कर उसे पहले बुक करें।
- गर्मी के दौरान सुबह और शाम का तापनाम कम होने के चलते अपने साथ गर्म कपडे अवश्य से रखे।
- ट्रेक पर जाने से पहले स्थानीय ग्रामीणों से तेंदुए और अन्य वन्य जीवो के हलचल का अवश्य से पता कर लें।
- ट्रेक के दौरान आरामदायक जुटे जरूर पहने।
- मंदिर पैदल मार्ग में अपने साथ पानी की बोतल अवश्य से रखें।
- नवरात्री के समय आपको यहाँ काफी भीड़ देखने को मिल सकती है।
नजदीकी आकर्षण
कालीशिला के निकट आप यहाँ के अन्य स्थानीय आकर्षण पर भी जा सकते है; जैसे: -
- बिसुड़ी ताल।
- बनियाकुण्ड।
- ओम्कारेश्वर मंदिर।
- कालीमठ।
- त्रियुगीनारायण मंदिर।
- तुंगनाथ।
- देवरिया ताल।
यहां कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से: - रुद्रप्रयाग स्थित कालशिला के निकटतम प्रमुख शहरो में से एक ऋषिकेश से मंदिर लगभग 198 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ आने के लिए आपको ऋषिकेश से बस और टैक्सी की सेवा मिल जाती है जो अधिकतर रुद्रप्रयाग और उखीमठ तक प्राप्त होती है। यहाँ से रॉनलेक तक की यात्रा आप टैक्सी के माध्यम से कर सकते है। कालीशिला मंदिर से आप कालीमठ और रॉनलेक गांव दोनों से ही पहुँच सकते है। हालाँकि मंदिर के मुख स्थल तक पहुंचने के लिए आपको रॉनलेक से 2 किमी और कालीमठ से 8 किमी का ट्रेक करके पहुंचना होता है।
रेल मार्ग से: - इसके निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हरिद्वार स्टेशन जो की क्रमशः 200 किमी और 222 किमी की दूरी पर स्थित है। इनमे से हरिद्वार रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख शहरो से सीधी रेल सेवा से जुड़ा हुआ है। हरिद्वार से मंदिर तक की यात्रा आप सड़क मार्ग से बस या टैक्सी से कर सकते है।
हवाई मार्ग से: - इसके निकटतम हवाई अड्डों में देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है जो मंदिर से 215 किमी दूर स्थित है। एयरपोर्ट से आगे की यात्रा आप यहाँ से 16 किमी दूर ऋषिकेश से बस या टैक्सी से तय कर सकते है।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम
कालीशिला मंदिर श्रद्धालुओं के लिए वर्ष भर खुला रहता है लेकिन यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय फरवरी से मई और सितम्बर से दिसंबर का माना जाता है।
समुद्र तल से ऊँचाई
समुद्र तल से कालीशिला लगभग 2,350 मीटर (7,000 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है।