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सेम मुखेम नागराजा मंदिर

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जानकारी

भगवान श्री कृष्ण को समर्पित सेम मुखेम नागराजा का मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित है। पांचवे धाम के रूप में पहचाने जाने वाला यह मंदिर चारो तरफ हरियाली और ऊँचे पहाड़ो से घिरा है, जिसकी दूरी ऋषिकेश से लगभग 130 किमी की है। मंदिर सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा है, जिसका मार्ग ऋषिकेश चम्बा टिहरी और लंबगांव होते हुए जाता है। यह मंदिर स्थानीय के साथ अन्य क्षेत्रों में भी प्रचलित है, जिसके चलते यहाँ काफी संख्या में श्रद्धालु सेम मुखेम नागराजा जो की श्री कृष्ण का ही एक रूप है के दर्शन हेतु पधारते है। यहाँ का वातावरण और शीतकालीन के दौरान पड़ने वाली बर्फ इस स्थान की खूबसूरती को अत्यधिक बढ़ा देती है।
 

प्रत्येक तीन वर्षो में मंदिर में एक विशाल मेले का आयोजन एक विशेष तिथि 26 नवंबर को किया जाता है। बताते है की इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गंगू रमोला को कालिया नाग के रूप में दर्शन दिए थे। मंदिर अपनी कई परंपरा के लिए जाना जाता है, जिनमे मंदिर में चढ़ाए जाने वाले नाग नागिन के जोड़े से काल सर्प दोष से मुक्ति प्रमुख है। प्रत्येक वर्ष काफी संख्या में श्रद्धालु सेम मुखेम के दर्शन हेतु आते है आते है, जिनमे से अधिक संख्या पौड़ी जिले से आए  श्रद्धालुओं की होती है क्यूंकि सेम मुखेम को उनका इष्ट देवता कहा जाता है।

उत्तराखंड का पांचवा धाम

उत्तराखंड का प्रत्येक जिला अपने यहाँ स्थित प्राचीन धार्मिक स्थल और उनसे जुड़े अनूठे महत्व के लिए पहचाना जाता है। इन धार्मिक स्थलों में सबसे अधिक चार धाम (गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ) विख्यात है जो अपनी महत्ता के लिए पहचाने जाते है। लेकिन इन्ही धामों के अतिरिक्त टिहरी जिले के छोटे से गांव में स्थित सेम मुखेम नागराजा मंदिर भी अपनी विशेष महत्ता के लिए जाना जाता है। अपनी विशेष महत्ता और पौराणिक इतिहास के चलते मंदिर को उत्तराखंड का पांचवे धाम के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है की महाभारत के युद्ध पश्चात भगवान कृष्ण कुछ समय के लिए इस स्थान पर विश्राम हेतू पधारे थे, जिससे जुडी कई लोककथाएँ भी प्रचलित है। हालाँकि राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मंदिर को पांचवे धाम की उपाधि नहीं गई है।

मंदिर ट्रेक

ऋषिकेश से सेम मुखेम की 130 किमी की यात्रा तय करने के बाद आप आ पहुंचते है खम्बा खाल जिसे मंदिर का आधार शिविर माना जाता है। इसी स्थान से सेम मुखेम नागराजा की तीन किमी की खड़ी पैदल यात्रा प्रारम्भ होती है। यह मार्ग घने हरे-भरे जंगलो से होता हुआ जाता है, जहाँ से आपको प्रकृति के अध्भुत नज़ारे देखने को मिलते है। पैदल मार्ग पर चलते हुए साफ मौसम के दौरान आपको दूर बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां भी देखने को मिलती है, जिसके नज़ारे बेहद ही शानदार दिखाई पड़ते है।
 

पैदल मार्ग पर चलते हुए कुछ ही दूरी पर आपको एक शिला दिखाई पड़ती है, जिसपर धागा बंधा हुआ होता है। मान्यता है की इसी स्थान पर राजा गंगू रमोला ने भगवान श्री कृष्ण को भोज करवाया था और खाना परोसने के लिए जिस करछी का उपयोग किया गया था वह शिला के पास आज भी दिखाई पड़ती है। इस स्थान का अब भैरव शिला के नाम से पूजा जाता है।
 

मंदिर की कठिन चढ़ाई के साथ मार्ग में पानी का श्रोत उपलब्ध न होने के चलते यह पैदल यात्रा और कठिन हो जाती है। इसलिए पैदल यात्रा शुरू करने से पूर्व अपने साथ उचित मात्रा में पानी अवश्य से रखे। आपकी शारीरिक क्षमता के अनुसार इस तीन किमी की खड़ी चढाई को एक से दो घंटे में पूर्ण किया जा सकता है। हालाँकि चढाई करने में असमर्थ व्यक्तियों के लिए नीचे खच्चर की सुविधा भी उपलब्ध है, जिसे आप 800 रूपए में एक तरफ और 1400 रूपए के करीब दोनों तरफ की यात्रा के लिए बुक कर सकते है।

डुगडुगी सेम

सेम मुखेम नागराजा के मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है डुगडुगी सेम। स्थानीय लोगो के अनुसार इसी स्थान पर भगवान कृष्ण ने एक राक्षस का वध किया था जिसके प्रकोप से सभी स्थानीय निवासी परेशान थे। इसके अतिरिक्त यह स्थान अपनी एक विचित्र 'शिला' के लिए भी पहचाना जाता है। इस पत्थर के बारे में कहते है की यदि आप पूरी ताकत से इसे हिलाने का प्रयास करेंगे तो यह अपने स्थान से जरा सा भी नहीं हिलता है लेकिन एक अंगुली से हिलाने पर यह शिला हिलने लगती है जो की अपने में अद्भुत और अकल्पनीय है। डुगडुगी सेम का रास्ता एक बुग्याल से होकर के जाता है, जिसकी सुंदरता देखने लायक होती है। वैसे तो यह बुग्याल छोटा सा है लेकिन श्रद्धालु इसे देखकर अत्यंत खुश हो जाते है और अपनी थकान मिटाने हेतु विश्राम के लिए उपयोग करते है।

भगवान कृष्ण के पदचिन्ह।

मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक और शिला है जिसपर कहा जाता है की श्री कृष्ण के पद चिन्हो के निशान है। हालाँकि पहली नजर से देखने पर आपको यह निशान दिखाई नहीं देते है लेकिन ध्यान और श्रद्धा से देखने पर आपको यह निशान पत्थर पर दिखाई पड़ने लगते है।

प्रसाद शॉप

सेम मुखेम मंदिर में अन्य मंदिरो के अतिरिक्त विशेष तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिसे आप आधार शिविर पर उपलब्ध विभिन्न दुकानों से खरीद सकते है। श्रद्धालुओं को प्रसाद की सुविधा केवल मंदिर के प्रारंभिक पैदल मार्ग पर उपलब्ध दुकानों पर ही प्राप्त होगी इसके अतिरिक्त अन्य स्थान पर प्रसाद की दुकान की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। मंदिर में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में आपको अन्य वस्तुओ के साथ एक मोर का पंख और नाग नागिन का जोड़ा भी देखने को मिलता है। ऐसा माना जाता है की इस नाग नागिन के जोड़े को मंदिर में चढाने से नाग सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। इसी मान्यता के चलते कई श्रद्धालु मंदिर में विशेष तौर पर अपने सर्प दोष की मुक्ति के लिए भी पधारते है।

इतिहास और पौराणिक महत्व

सेम मुखेम मंदिर अपने पौराणिक महत्व के लिए अधिक प्रचलित है। कहा जाता है की महाभारत के युद्ध पश्चात भगवान श्री कृष्ण काफी व्याकुल थे और किसी एकांत स्थान की तलाश करते हुए इस स्थान पर पधारे थे। उन्हें इस स्थान की खूबसूरती इतनी पसंद आयी की उन्होंने कुछ समय यहाँ रुकने का विचार बनाया। इसके लिए भगवान कृष्ण स्थानीय राजा के पास कुछ जमीन मांगने पहुंचे। उस दौरान इस क्षेत्र में राजा मांगू रमोला का शासन हुआ करता था जो की कृष्ण भगवान का भक्त था लेकिन राज पाठ के लोभ ने उसे अहंकारी और लालची बना दिया था। राजा के समक्ष भगवान कृष्ण एक ब्राह्मण का वेश धारण करके पहुंचे और उनसे निवास हेतु कुछ भूमि मांगी। अहंकारी राजा ने उन्हें इंकार करते हुए कहा की वह किसी भी ब्राह्मण को अपने क्षेत्र में भूमि नहीं देंगे।
 

यह सुनकर श्री कृष्ण ने राजा को सबक सिखाने के लिए राजा की सभी गाय, भैंस, भेड़, और बकरी को पत्थर में तब्दील कर दिया। यह देखकर गंगू रमोला अचंभित हो गया और विलाप करने लगा। अपनी गलती के पश्चाताप हेतु गंगू रमोला ब्राह्मण से माफ़ी मांगने के लिए उन्हें इधर उधर खोजता रहा। थक हारकर जब राजा को ब्राह्मण की खोज न कर पाया तो एक स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ समय पश्चात राजा के सामने ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण ने सेम मुखेम नागराजा के रूप में गंगू रमोला को दर्शन दिए।
 

विनम्र होकर गंगू रमोला ने भगवान श्री कृष्ण से अपनी गलती की क्षमा मांगी और उन्हें निवास हेतु भूमि प्रदान करी। उस दिन से इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण को सेम मुखेम नागराजा के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद शिला को सेम मुखेम नागराजा के रूप में पूजा जाता है। दर्शन प्राप्त होने के बाद गंगू रमोला ने श्री कृष्ण से सदैव उनके समक्ष रहने की इच्छा जताई, इसके चलते मंदिर के निकट और मंदिर के प्रारंभिक स्थान पर गंगू रमोला की मूर्ति भी स्थापित की गई है।

निवास की सुविधा

सेम मुखेम नागराजा मंदिर के निकट निवास हेतु सीमित संख्या में संसाधन उपलब्ध है। ऐसे में कोई श्रद्धालु मंदिर के निकट रात्रि विश्राम के लिए रुकना चाहता है तो वह नीचे दिए गए विकल्पों को अवश्य से देख सकता है। मंदिर के निकट रात्रि निवास का शुल्क 1,000 से 2,000 रूपए तक है, जिसे आप ऑफलाइन माध्यम से बुक कर सकते है।

  • उत्तराखंड पर्यटन गेस्ट हाउस।
  • सेम सुखनिवास
  • पनवार होम स्टे
  • सिद्धार्थ होम स्टे
  • होटल जगदीश पैलेस
  • ग्रीन वैली होमस्टे
  • श्री होम स्टे
  • प्रिंस होम स्टे

उपलब्ध सुविधाए

ग्रामीण क्षेत्र में स्थित होने के चलते मंदिर के निकट श्रद्धालुओं को सीमित सेवाए मिलती है, जो की कुछ इस प्रकार से है: -

  • खच्चर सेवा।
  • होमस्टे।
  • प्रसाद शॉप।
  • चाय और खाने की दूकान।
  • पार्किंग
  • टैक्सी स्टैंड।

यात्रियों के लिए मत्वपूर्ण सुझाव

  • मंदिर की तीन किमी की चढ़ाई हेतु आरामदायक जूते पहने।
  • अपनी यात्रा अवश्य से प्लान करे क्यूंकि शीतकालीन के दौरान यहाँ काफी बर्फ़बारी पड़ती है।
  • मानसून के दौरान यात्रा करने से बचे, क्यूंकि इस दौरान आपको विभिन्न परेशानी हो सकती है।
  • ट्रेक पर पानी का श्रोत न होने के चलते अपने साथ जरूरी मात्रा में पानी साथ लेकर चले।
  • रात्री विश्राम के लिए मंदिर के निकट उपलब्ध विश्राम ग्रह में रूम शीघ्र से बुक कर ले।
  • एटीएम की सुविधा उपलब्ध न होने के चलते अपने साथ उचित मात्रा में कॅश रखे।
  • अपने वाहन से जाने वाले व्यक्ति गाडी में उचित मात्रा में तेल रखे।
  • पैदल दूरी के लिए यहां आपको खच्चर की सुविधा उपलब्ध रहती है।
  • मंदिर के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करना सख्त मना है।

नजदीकी आकर्षण

सेम मुखेम नागराजा मंदिर के अतिरिक्त आप स्थानीय अन्य प्रसिद्ध स्थल पर भी जा सकते है; जैसे की: -

यहां कैसे पहुंचे

सेम मुखेम नागराजा मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित है। मंदिर टिहरी से 80 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है जहाँ आप बस, टैक्सी या अपने स्वयं के वाहन से जा सकते है।
 

सड़क मार्ग से: - सेम मुखेम नागराजा का मंदिर ऋषिकेश से 130 किमी और देहरादून से 160 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर के लिए सीधी बस सेवा देहरादून पर्वतीय बस अड्डे से रोजाना सुबह 9 बजे प्रस्थान होती है। इसके अतिरिक्त आप टैक्सी (टाटा सूमो, महिंद्रा मैक्स) की सुविधा भी ले सकते है जो आपको खम्भा खाल तक सेवा प्रदान करती है। सड़क मार्ग से मंदिर तक का सफर तय करने में लगभग 5 से 6 घंटे का समय लगता है, जिसके बाद आपको तीन किमी की यात्रा पैदल या खच्चर के द्वारा पूरी करनी होती है।
 

रेल मार्ग से: - मंदिर के निकटतम रेलवे स्टेशन योग नगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से 131 किमी की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन दिल्ली एवं अन्य रेल मार्ग से सीमित संख्या से रेल सेवा प्रदान करता है। रेलवे स्टेशन से ऋषिकेश बस स्टैंड लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित है, जहाँ से आप अपने आगे की यात्रा बस या टैक्सी के द्वारा तय कर सकते है।
 

हवाई मार्ग से: - मंदिर के निकटतम हवाई अड्डों में देहरादून जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो मंदिर से करीब 137 किमी पर स्थित है। यह एयरपोर्ट देश के विभिन्न शहरो से सीधी हवाई सेवा से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से आगे की यात्रा सड़क मार्ग से तय करने के लिए आपको ऋषिकेश पहुंचना होगा जो एयरपोर्ट से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। एयरपोर्ट से ऋषिकेश के लिए टैक्सी की सुविधा आपको आसानी से मिल जाएगी।

यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम

टिहरी स्थित सेम मुखेम नागराजा का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए साल भर खुला रहता है लेकिन मंदिर जाने का सबसे उत्तम समय मार्च से मई और सितम्बर से दिसंबर के बीच का है।

समुद्र तल से ऊँचाई

सेम मुखेम नागराजा मंदिर समुद्र तल से लगभग 2,903 मीटर (लगभग 9,524 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है।

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