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बूढ़ा केदारनाथ मंदिर

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जानकारी

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल स्थित बूढ़ा केदार का मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। टिहरी से 86 किमी दूर इस मंदिर की गिनती उत्तराखंड के पांचवे धाम के रूप में की जाती है। देवदार के ऊँचे पेड़ और हर भरे पहाड़  के साथ बाल गंगा और धर्म गंगा नदियों के संगम के समीपत स्थित बूढ़ा केदारनाथ मंदिर की सुंदरता बेहद ही आकर्षक और अलौकिक है। मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग है, जिसके दर्शन करने श्रद्धालु दूर-दूर से आते है। कल कल बहती नदिया और चिड़ियों की चहचाहट इसके शांत वातावरण में मिठास घोल देती है, जो हर किसी को मोहित कर देती है।
 

पांचवा धाम

बूढ़ा केदार अपनी विभिन्न लोककथाओं के लिए पहचाना जाता है, उन्ही में से एक के अनुरूप बूढ़ा केदार को उत्तराखंड का पांचवा धाम कहकर सम्बोधित कहा जाता है। वैसे टिहरी स्थित सेम मुखेम नागराजा के मंदिर को भी स्थानीय निवासी पांचवा धाम कहते है। बात करे बूढ़ा केदार की तो यह एकलौता ऐसा मंदिर है जिसके शिवलिंग की परिक्रमा आप चारो तरफ कर सकते है। मंदिर में आप मुख्य मार्ग से कुछ दूरी पैदल यात्रा तय करते हुए पहुँच सकते है। मार्ग की चढ़ाई खड़ी होने के चलते श्रद्धालुओं को थोड़ी परेशानी हो सकती है। बरसात के दौरान मंदिर  के पैदल मार्ग में फिसलन के चलते अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। मार्ग से और मंदिर से नजर आने वाले नज़ारे बेहद ही भव्य और सुन्दर होते है। मंदिर प्रगाढ़ में घास का मैदान मंदिर की सुंदरता को अत्यधिक बढ़ा देता है।
 

इसके अतिरिक्त मंदिर प्रांगढ़ में आपको पांडवो की पांच शिला दिखाई देंगी, जो प्रत्येक केदार का एहम हिस्सा मानी जाती है। केदारखंड के अनुसार भगवान शिव ने प्रथम बार पांडवो को एक बूढ़े आदमी के रूप में इसी स्थान पर दर्शन दिए थे, जिसके चलते इस स्थान को पांचवा धाम कहा जाने लगा। पहले के समय में केदारनाथ की यात्रा ऋषिकेश मार्ग से ना होकर टिहरी के इसी मार्ग से हुआ करती थी। श्रद्धालु अक्सर केदारनाथ में दर्शन करने से पूर्व बूढ़ा केदार में भोले बाबा के दिव्य शिवलिंग के दर्शन करके ही केदारनाथ की यात्रा को प्रस्थान करते थे।
 

इतिहास

धर्मग्रंथो के अनुसार विशेषकर केदारखंड के 99वें अध्याय में बूढ़ा केदारनाथ मंदिर का विशेष उल्लेख किया गया है। उसमे किए गए वर्णन के अनुसार यह पहला स्थान है, जहाँ भगवान शिव ने पांडवो को प्रथम बार दर्शन दिए थे। कहा जाता है जब महाभारत युद्ध के बाद ब्रह्म हत्या और भ्रात हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान शिव को खोजने लगे, जिसके लिए वह हिमालय की यात्रा पर निकल पड़े।
 

शिव को ढूंढ़ते हुए जब पांडव इस स्थान पर पहुंचे तो उनकी मुलाकात ऋषि बालखिल्य से हुई। बातचीत के उपरांत ऋषि बालखिल्य ने पांडवो को बाल गंगा और धर्म गंगा के समीप एक बूढ़े व्यक्ति से मिलने को कहा जो उनको शिव के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता था। उनसे मिलने जब पांडव बताए गए स्थान पर पहुंचे तो पांडव बूढ़े आदमी के भेष में छिपे भगवान शिव को पहचान ना सके। हालाँकि भेद खुलने से पहले ही शिव अंतर्ध्यान हो गए और इस स्थान पर शिवलिंग का अकार ले लिया। उत्तराखंड के पांचवे और टिहरी के पहले धाम होने के चलते, यहाँ के स्थानीय निवासियों को केदारनाथ में दर्शन करने की अनुमति नहीं है।
 

उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग

बूढ़ा केदार धाम स्थित शिवलिंग बेहद ही खूबसूरत और आकर्षक है। जो भी श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने आते है शिवलिंग की भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते है। शिवलिंग में उकेरी गई पांचो पांडव, द्रौपदी, नंदी, भगवान गणेश, और स्वयं भगवान शिव के चित्र अद्भुत है, जो अन्य किसी शिवलिंग में देखने नहीं मिलते। शिवलिंग की अन्य खासियत की बात करे तो इसमें पानी की बूंदी अपने आप ही गिरती रहती है, जो शिवलिंग पर गिरने के बाद उसी में समा जाती है। इस खासियत के चलते इस शिवलिंग में जलाधारी नहीं है, जिसके चलते यह एकलौता शिवलिंग है जिसके चारो तरफ श्रद्धालु परिक्रमा कर सकते है।
 

बूढ़ा केदार ट्रेक

बूढ़ा केदारनाथ मंदिर में आपको इसके मुख्य मार्ग से कुछ दूरी पैदल चलकर तय करनी होती है, जिसे कोई भी व्यक्ति आसानी से चढ़ सकता है। हालंकि इसकी दूरी अधिक नहीं है लेकिन इसकी खड़ी चढाई होने के चलते यह यात्रियों के लिए कठिनाई पैदा कर देती है। इसके पैदल मार्ग से चारो तरफ़ की हरियाली बेहद ही खूबसूरत और शानदार नजर आती है। इसके पैदल मार्ग को किसी भी व्यक्ति द्वारा आसानी से पूरा कर लिया जाता है, हालाँकि बरसात के समय मार्ग में होने वाली फिसलन थोड़ी समस्या पैदा करती है। मार्ग से नजर आने वाली बाल गंगा और धर्म गंगा नदी बेहद ही खूबसूरत दिखाई पड़ती है।
 

ठहरने हेतु व्यवस्था

मंदिर के निकट रहने के लिए व्यवस्था सीमित है, इसके चलते रात में ठहरने की योजना बनाए यात्रियों को कुछ परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। स्थान के निकट कुछ संख्या में होमस्टे, गेस्ट हाउस के साथ होटल की उपलब्ध है। मंदिर के निकट आवास हेतु मिलने वाले कुछ प्रमुख विकल्प है : -

  • होटल डमरूवाला।
  • रावल इंद्रनाथ गेस्ट हाउस, और
  • गायत्री होम स्टे।

यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव

  • सार्वजानिक परिवहन सेवा की संख्या सीमित होने के चलते यात्रा टैक्सी या स्वयं के वाहन से करें।
  • टिहरी बस स्टैंड से चलने वाली बस सेवा सुबह 6 बजे सुबह 8 बजे की बीच चलती है।
  • मानसून के दौरान यात्रा करने से बचे, इस दौरान आपको भूस्खलन, मार्ग अवरुद्ध, और मंदिर पैदल मार्ग में फिसलन जैसी कुछ समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
  • यात्रा के दौरान अपने साथ जरूरी सामान अवश्य लेकर चले जैसे की दवाई, ट्रैकिंग जूते, रेनकोट, और कैश।
  • मार्ग में फ्यूल स्टेशन की संख्या सीमित होने के चलते अपनी गाडी में उचित मात्रा में फ्यूल रखे।
  • सीमित आवास संख्या के चलते अपने रहने की व्यवस्था पहले से कर ले।
  • मंदिर के गर्भ गृह में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर पाबन्दी है।
  • प्रसाद हेतु कुछ दुकाने आपको मंदिर के मुख्य पैदल मार्ग पर मिल जाएगी।

नजदीकी आकर्षण

यात्री मंदिर के निकट अन्य आकर्षण स्थल पर भी जा सकते है, जैसे की : -

यहां कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग से: टिहरी स्थित बूढ़ा केदारनाथ मंदिर ऋषिकेश से 151 किमी और टिहरी से 86 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में आप सड़क मार्ग से बस और टैक्सी की सहायता से आ सकते है। बस सेवा का लाभ आपको टिहरी बस स्टैंड से प्राप्त हो जाएगी। इसके अतिरिक्त आप यहाँ अपने स्वयं के वाहन, बाइक या टैक्सी बुक करके भी आ सकते है। यात्रा मार्ग की बात करे तो सर्वप्रथम ऋषिकेश पहुँचते हुए वहां से चम्बा फिर टिहरी डैम के रास्ते पीपलडाली पहुंचे, पीपलडाली से बूढ़ा केदार के मार्ग पर चलते हुए आप यहाँ पहुँच सकते है।
 

रेल मार्ग से : इसके निकटतम रेल मार्ग योग नगरी ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से 151 किमी की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से यात्री टैक्सी की सहायता से मंदिर पहुँच सकते है। 
 

हवाई मार्ग से : इसके नजदीकी हवाई अड्डा, देहरादून स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जिसकी दूरी मंदिर से 157 किमी की है। एयरपोर्ट से यात्री टैक्सी की सहायता से मंदिर पहुँच सकते है।

यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम

  • ग्रीष्मकाल (मार्च से जून) : यात्रा के लिए सबसे सुन्दर और अनुकूल समय है। इस दौरान यात्रियों को मार्ग अवरुद्ध और ठण्ड का सामना नहीं करना पड़ता है।
  • मानसून (जुलाई से अगस्त) : यह समय यात्रा के लिए अनुकूल नहीं है इस दौरान मार्ग अवरुद्ध और भूस्खलन जैसी कई समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
  • सर्दी सर्दियाँ (सितम्बर से फरवरी): यह समय भी यात्रा के लिए अनुकूल में से एक है। इस दौरान क्षेत्र के चारो ओर हरियाली भर जाती है। हालाँकि यात्रियों को ठण्ड का भी सामना करना पड़ सकता है।

समुद्र तल से ऊँचाई

बूढ़ा केदारनाथ मंदिर की समुद्र तल से लगभग 2,277 मीटर (7,470 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है।

मौसम का पूर्वानुमान

स्थान

निकट के घूमने के स्थान

KM

जानिए यात्रियों का अनुभव