पौड़ी गढ़वाल में आर्मी कैंट से विख्यात लैंसडौन से लगभग 36 किमी दूर स्थित है "श्री ताड़केश्वर महादेव मंदिर"। भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर की भक्तो में काफी मान्यता है, जहाँ हर सालो हजारो की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने और मनोकामना लिए आते है। देवदार के घने जंगलो से घिरा यह मंदिर बेहद ही खूबसूरत प्रतीत होता है, विशेषकर सूर्योदय के दौरान। प्रकृति की सुंदरता और शांति के बीच भोलेनाथ की तांडव करती हुई मूर्ति के दर्शन करना भक्तो के लिए एक विशेष अनुभूति का एहसास करवाता है।
पारौणिक काल से जुड़े इस मंदिर से सम्बंधित आपको कई कहानियाँ सुनने को मिले जाएगी। देवदार के घने जंगल से घिरे होने के पीछे भी एक कहानी है। कहते है की शिव को छाया प्रदान करने हेतु माता पार्वती ने अपने आपको सात देवदार के पेड़ में परिवर्तित किया, जो की देखने में ॐ शब्द की आकृति लगती है। बताते है की इन्ही सात देवदार के पेड़ो से इस देवदार के जंगल की उत्पत्ति हुई। मंदिर में भक्त किसी भी तरह का प्रसाद चढ़ा सकते है। लेकिन मंदिर में तीन तरह की चीजे बिलकुल प्रतिबंधित है; पहली कंडार के पत्ते, दूसरा सरसो का तेल और तीसरा असवाल जाती के लोग।
असवाल जाती के लोगो के प्रवेश न करने पर कई कहानी आपको सुनने को मिल जाएगी। कहते है पहले के समय में गांव में असवाल जाती और ताड़कासुर नाम के व्यक्ति के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई, उस कहासुनी का हल निकालने हेतु दोनों के मध्य मल्ल युद्ध निश्चित हुआ। हारने वाले व्यक्ति को गांव छोड़कर जाना तय किया गया। युद्ध से पहले असवाल जाती को लगा की अगर वह इस युद्ध में हार गए तो लोग उनकी जाती का उपहास उड़ाएंगे। इसके लिए युद्ध से पहले असवाल जाती के लोगो ने अपने पूरे शरीर पर सरसो के तेल को लगाया, जिससे की वह पकड़ में ना आ सके और युद्ध जीत जाए। युद्ध के दौरान ताड़कासुर शरीर पर तेल लगे होने के चलते उनको पकड़ने में नाकाम रहा और गहरी खाई में गिर गया।
ताड़कासुर इसके बाद पास ही में शिव को प्रसन्न करने हेतु एक कठोर तप करने लगा और जिससे उसने वरदान प्राप्त किया। इसके बाद ताड़कासुर द्वारा यहाँ पर शिव के मंदिर का निर्माण किया गया। निर्माण के पश्चात ताड़कासुर ने यह श्राप दिया की असवाल जाती के लोगो का मंदिर में प्रवेश करने पर उनके साथ कुछ बुरी घटना घटित होगी। इस भय से असवाल जाती के लोग मंदिर में कभी प्रवेश नहीं करते। युद्ध में सरसो के तेल का प्रयोग करने से नाखुश तड़कसुर द्वारा मंदिर में सरसो के तेल पर प्रतिबंध लगाया गया, जिसके चलते मंदिर में केवल तिल के तेल का ही उपयोग किया जाता है।
भोलेनाथ को समर्पित इस मंदिर में भक्त भगवान शिव की तांडव स्वरूप प्रतिमा के दर्शन कर सकते है। कहते है की पहले इस मूर्ति के स्थान पर शिवलिंग हुआ करता था जो समय के साथ धरती में समा गया, जिसके पश्चात इस मूर्ति की स्थापना की गई। मंदिर के निकट ही भक्त माता पार्वती के भी दर्शन कर सकते है। भक्तो में मंदिर की मान्यता यहाँ टंगी हुई घंटियों से देखी जा सकती है, जिसे लोगो द्वारा मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ाया जाता है। मंदिर भक्तो द्वारा शिवरात्रि का पर्व बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमे काफी संख्या में लोग मंदिर में दर्शन करने आते है। मंदिर के निकट स्थित आश्रम में भक्तो के ठहरने का भी प्रबंध किया जाता है, जिसके लिए भक्तो को पहले से सूचित किया जाना आवश्यक है।
ताड़कासुर नामक राक्षस के नाम से जुड़ा महादेव का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। पारौणिक कथा अनुसार ताड़कासुर नाम का राक्षस भगवान शिव का बहुत ही बड़ा भक्त था। भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु उसने मंदिर वाले स्थान पर कई वर्षो तक कठोर तप किया। उसकी सच्ची भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उसको दर्शन दिए और उससे वरदान मांगने को कहा। ताड़केश्वर को ज्ञात था की भोलेनाथ एक वैरागी है, तो उसने भोलेनाथ से वरदान माँगा की उनके बेटे के अलावा और कोई भी देव, दानव या व्यक्ति उसका वध न कर सके। उसकी भक्ति से प्रसन्न भोलेनाथ ने उसको मुँह माँगा वरदान से कृत किया और अंतर्ध्यान हो गए।
वरदान प्राप्त होते ही ताड़कासुर ने तीनो लोको में कोहराम मचा दिया था, जिसके चलते सभी देवगण सृष्टि के रचयिता यानी ब्रह्म देव से सहायता लेने गए। ब्रह्म देव ने सभी देवो को बताया की इस राक्षस का अंत केवल शिव के पुत्र द्वारा ही किया जा सकता है, इसलिए आप सभी को भोलेनाथ की शरण में जाना चाहिए। सभी देवताओ ने भोलेनाथ की शरण में जाकर उन्हें पूरी स्थिति से अवगत करवाया। इसके पश्चात भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया, जिसके पश्चात कार्तिकेय का जन्म हुआ। आतंक की चरम सिमा लांघ चुके ताड़कासुर का कार्तिकेय ने अंत कर सम्पूर्ण सृष्टि को उसके आतंक से मुक्त करवाया।
मरते समय ताड़कासुर ने भगवान शिव से अपने किये गए कृत के लिए क्षमा मांगी। उसकी याचना को स्वीकार करते हुए भोलेनाथ ने कहा की मेरे नाम के आगे तुम्हरा नाम जोड़कर लोग मुझे पूजेंगे। इसी के चलते ताड़कासुर ने जिस स्थान पर तप किया था उसी स्थान पर भोलेनाथ के मंदिर का निर्माण किया गया, जिसे ताड़केश्वर महादेव के नाम से पहचाने जाने लगा।