नरसिंह मंदिर- बद्रीनाथ धाम शीतकालीन स्थल
जानकारी
भगवान बद्री विशाल की शीतकालीन गद्दी नरसिंह मंदिर उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थित है। यह मंदिर बद्रीनाथ धाम जाने वाले श्रद्धालुओं के एहम पड़ाव में से एक है। मान्यता के अनुसार बद्रीनाथ धाम जाने से पूर्व इस मंदिर में दर्शन करना जरूरी होता है, जिसके चलते मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिलती है, विशेषकर चार धाम यात्रा के दौरान। भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिम्हा को समप्रित यह मंदिर सप्त बद्री में से एक है। बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित इस नागर शैली में निर्मित मंदिर की सुंदर और भव्यता आपको अपनी और आकर्षित करती है। भगवान नरसिंघ के अतिरिक्त मंदिर प्रांगढ़ में आपको अन्य देवी देवताओ के भी दर्शन कर सकते है।
नरसिंह मंदिर- जोशीमठ
बद्रीनाथ धाम की शीतकालीन गद्दी नरसिंह मंदिर ऋषिकेश से 247 किमी की दूरी पर स्थित है। मुख्य मंदिर के साथ यहाँ अन्य देवी देवताओ के मंदिर भी देखने को मिलते है, जिनमे माँ चंडिका मंदिर, अष्टभुजा गणेशा मंदिर, श्री गौरी शंकर मंदिर प्रमुख है। इसके साथ आपको यहाँ भगवान राम, माता सीता और हनुमान जी के दर्शन करने को मिलते है। नरसिंघ मंदिर में प्रवेश करने पर एक अद्भुत अनुभूति का एहसास होता है जो आपके मन को भगवान के साथ जोड़ने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त माँ चंडिका मंदिर भी एक अनूठी अनुभूति करवाता है, जहाँ आपको माँ चंडिका के विभिन्न स्वरुप देखने को मिलते है। मंदिर प्रांगढ़ में स्थित कल्पवृक्ष का पेड़ भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है जो की 2400 वर्ष से भी अधिक पुराना बताया जाता है।
मंदिर से चारो तरफ का प्राकृतिक सौंदर्य बेहद ही सुन्दर और मन को मोह लेने वाला होता है। मंदिर से दूर पहाड़ की चोटी पर आपको प्रकृति का एक विशेष चित्रण भी देखने को मिलता है, जिसे लोगो द्वारा स्लीपिंग लेडी माउंटेन कहकर बुलाया जाता है। नरसिंघ मंदिर से बद्रीनाथ धाम करीब 42 किमी की दूरी पर है जिसके लिए आपको जोशीमठ से बस और टैक्सी की सेवा आसानी से मिल जाती है। इसके अतिरिक्त जोशीमठ में श्रद्धालुओं को रहने के सुविधा भी मिल जाती है।
बद्रीनाथ धाम की शीतकालीन गद्दी
जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर बद्रीनाथ धाम के मुख्य शीतकालीन गद्दी स्थल में से एक है। प्रत्येक वर्ष जब बद्री विशाल के कपाट भक्तो के लिए दर्शन हेतु बंद किए जाते है उसके बाद बद्री नारायण की डोली उनके सहायक के साथ पांडुकेश्वर और नरसिंह मंदिर के लिए निकलती है। पांडुकेश्वर में जहाँ भगवान उद्धव के साथ कुबेर जी की मूर्ति रखी जाती है तो वहीं बद्री विशाल जी की मूर्ति नरसिंह मंदिर में।
डोली के मंदिर में पधारने से पूर्व मंदिर को फूल और मालाओ से सुन्दर तरह से सजाया जाता है। समस्त ग्रामीण वासियो के साथ अन्य श्रद्धालु भगवान के दर्शन के लिए खड़े रहते है। मंदिर में स्थापित भगवान नरसिम्हा की मूर्ति के लिए अलग-अलग मान्यता है। कुछ मान्यता के अनुसार भगवान की मूर्ति की स्थापना कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपिदा के द्वारा 8वीं शताब्दी में की गई थी तो कुछ के अनुसार यह मूर्ति स्वयंभू है, जिसे किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया गया।
शीतकालीन चार धाम यात्रा
यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की चार धाम यात्रा प्रत्येक वर्ष केवल छह माह के लिए ही आयोजित की जाती है। मई माह में खोले जाने वाले यह कपाट अक्टूबर या नवंबर माह में दर्शन के लिए बंद कर दिए जाते है। कपाट बंद होने के बाद सभी धामों से भगवानो की डोली उनकी निर्धारित शीतकालीन गद्दी के लिए रवाना हो जाती है, जहाँ पर अगले छह माह तक भगवान की पूजा अर्चना की जाती है। जहाँ बद्रीनाथ की डोली पांडुकेश्वर और नरसिंह मंदिर में लायी जाती है तो यमुनोत्री धाम की डोली खरसाली के लिए प्रस्थान करती है। गंगोत्री धाम की डोली मुखबा गांव तो बाबा केदार की पंचमुखी डोली को उखीमठ के ओम्कारेश्वर मंदिर में लाया जाता है।
शीतकाल के दौरान जहाँ मुख्य धाम का मार्ग अत्यधिक बर्फ़बारी के चलते बंद हो जाता है तो वहीं इन शीतकालीन गद्दी में आप बिना किसी परेशानी के दर्शन हेतु जा सकते है। कहते है शीतकाल के दौरान इन मंदिरो में जाकर दर्शन करना उतना ही फलदायी होता है, जितना की मुख्य धाम में जाकर। इसी के चलते राज्य सरकार श्रद्धालुओं को शीतकालीन चार धाम यात्रा पर आने के लिए आमंत्रित कर रही है। इससे न केवल श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे बल्कि स्थानीय लोगो को उनके रोजगार में भी सहायता मिलेगी।
भविष्य से कनेक्शन
जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर कई लोक कथाओ से जुड़ा हुआ है जो इसे भविष्य से जोड़ती है। कुछ ग्रंथो के अनुसार जब कलियुग अपने अंतिम समय पर होगा तो मंदिर स्थित मुख्य मूर्ति का हाथ टूट कर गिर जाएगा। इस घटनाक्रम से बद्रीनाथ धाम के द्वारपाल कहे जाने जय-विजय पर्वत टूट कर नीचे गिर जाएंगे, जिससे बद्रीनाथ धाम का मार्ग सदैव के लिए बंद हो जाएगा। यह घटना कलियुग का अंत और सतयुग के शुरुआत की मानी जाएगी।
कहते है बद्रीनाथ धाम का मार्ग बंद हो जाने के बाद सतयुग में बद्री नारायण की पूजा यहाँ से 21 किमी दूर भविष्य बद्री के मंदिर में की जाएगी। भले ही यह लोक कथा काल्पनिक लगे लेकीन मंदिर स्थित नरसिम्हा की मूर्ति का बायाँ हाथ लगातार छोटा होता जा रहा है जो इस लोक कथा के सच होने का प्रमाण भी देती है।
निवास की सुविधा
नरसिंह मंदिर के निकट रात्री विश्राम के लिए श्रद्धालुओं को विभिन्न तरह के विकल्प मिल जाते है, जिन्हे वह अपनी आवश्यकता अनुसार बुक कर सकते है। इसके अलावा जोशीमठ के मुख्य बाजार में भी रहने हेतु कई तरह के विकल्प उपलब्ध है, जिनमे से प्रमुख आवास की सूची इस प्रकार से है: -
- ओडिसी स्टे जोशीमठ।
- होटल उदय पैलेस जोशीमठ।
- यात्रा होमस्टे।
- जीएमवीएन टूरिस्ट रेस्ट हाउस।
- होटल माउंट व्यू अन्नेक्सी।
- होटल डिवाइन रेजीडेंसी।
- होटल पंचवटी इन्।
- होटल ग्रैंड कैलाश।
- होटल ब्रह्मा कमल।
- होटल स्नो क्रेस्ट।
- बद्रीविल्ले रिसोर्ट।
खाने की व्यवस्था
मंदिर के निकट आपको खाने के कई रेस्टोरेंट और ढाबा मिल जाएंगे, जहाँ आप चाय, पकोड़े के साथ नाश्ता, लंच और डिनर भी कर सकते है। यहाँ उपस्थ्ति कुछ रेस्टोरेंट चाइनीज़ के अतिरिक्त केवल सादा खाना ही मिलता है। अन्य विकल्प के के लिए जोशीमठ के मुख्य बाजार भी जा सकते है जहाँ आपको स्थानीय व्यंजन भी खाने को मिलेंगे। इसके अतिरिक्त स्थानीय दुकानों से आप जोशीमठ के मशहूर राजमा के साथ अन्य पहाड़ी दाल और मसाले भी खरीद सकते है।
श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
- बस से यात्रा करने वाले श्रद्धालु बस स्टंड पर सुबह जल्दी पहुंचे।
- यूटीसी बस सेवा के अतिरिक्त आपको स्टेशन के बहार निजी बस सेवा भी मिल जाती है।
- यात्रा के दौरान अपने साथ उचित मात्रा में कॅश और गर्म कपडे जरूर से रखें।
- राज्य के 65 वर्ष से अधिक आयु के नागरिक आधार कार्ड दिखाकर यूटीसी की बस में निशुल्क यात्रा भी कर सकते है।
- जोशीमठ से मंदिर को जाने वाला मार्ग संकरा और एक तरफ़ा होने के चलते अपनी गाडी निर्धारित स्थान पर खड़ी करें।
- जोशीमठ बाजार स्थित पार्किंग मंदिर से लगभग 2 किमी की दूरी पर है।
- पार्किंग से मंदिर तक आप रिक्शा या पैदल मार्ग का उपयोग करके जा सकते है।
- पैदल मार्ग बुजुर्ग और चलने में समस्या वालो के लिए नहीं है।
- पैदल मार्ग से वापस आते समय आपको कठिनाई का सामना कारण पड़ सकता है।
- प्रसाद की दुकान मंदिर के प्रवेश द्वार पर उपलब्ध है।
- शौचालय की सुविधा मंदिर के बाहर और जोशीमठ बाजार पर उपलब्ध है।
- मंदिर में प्रवेश करने के बाद अपने जुटे निर्धारित स्थान या जहाँ पर प्रसाद लिया है वहाँ पर रख सकते है।
- मंदिर के गर्भ गृह में किसी भी प्रकार की फोटो और वीडियो निकलने पर पाबन्दी है।
नजदीकी आकर्षण
जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर कुछ प्रसिद्ध स्थानों से घिरा हुआ है जहाँ आप मंदिर दर्शन पश्चात जा सकते है: -
- औली।
- तिम्मरसेन महादेव।
- चेनाप वैली।
- भविष्य बद्री।
- विष्णुप्रयाग।
- पांडुकेश्वर।
- तपोवन।
यहां कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से: - जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर ऋषिकेश से 247 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है, जहाँ आप बस और टैक्सी के द्वारा आसानी से आ सकते है। इसके निकटतम स्थित जोशीमठ बस स्टैंड के लिए रोजाना ऋषिकेश बस स्टैंड के साथ देहरादून और हरिद्वार से बस सेवा उपलब्ध रहती है। यह बस सेवा उत्तराखंड परिवहन निगम के साथ जीएमओयू की निजी बस सेवा द्वारा दी जाती है। इसके अतिरिक्त आपको ऋषिकेश एवं अन्य प्रमुख स्थानों से टैक्सी की सेवा भी मिल जाती है। लम्बा सफर होने के चलते बस सेवा सुबह 7 बजे से पहले तक ही उपलब्ध रहती है उसके बाद का सफर आप टैक्सी या कैब की सहायता से कर सकते है।
रेल मार्ग से: - इसके निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का योग नगरी रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से 249 किमी की दूरी पर है। स्टेशन के लिए रोजाना दिल्ली एवं अन्य शहरो से ट्रैन सेवा उपलब्ध रहती है। स्टेशन से मंदिर की यात्रा आप ऋषिकेश बस स्टैंड से बस या टैक्सी की सहायता से कर सकते है। स्टेशन से बस स्टैंड लगभग एक किमी की दूरी पर स्थित है।
हवाई मार्ग से: - मंदिर के सबसे करीब हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो लगभग 264 किमी की दूरी पर स्थित है। देश के प्रमुख शहरो से यह हवाई अड्डा सीधी हवाई सेवा से जुड़ा हुआ है, जिसके आगे की यात्रा आप ऋषिकेश से बस या टैक्सी के द्वारा कर सकते है। एयरपोर्ट से ऋषिकेश की दूरी लगभग 16 किमी की है, जिसे आप एयरपोर्ट पर उपलब्ध टैक्सी सेवा से तय कर सकते है।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम
श्रद्धालुओं के लिए मंदिर वर्ष भरा खुला रहता है लेकिन सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मई का देखा जाता है।
समुद्र तल से ऊँचाई
समुद्र तल से नरसिंह मंदिर करीब 1,875 मीटर (लगभग 6,150 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है।