नैना देवी मंदिर
जानकारी
नैनीताल का माँ नैना देवी मंदिर यहाँ के प्रमुख धार्मिल स्थल और अत्यंत पूजनीय शक्ति पीठो में से एक है। माँ नैना देवी को समर्पित यह मंदिर यहाँ की प्रसिद्ध नैनी झील के बगल में स्थित है। हर साल लाखो की संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने और माँ से अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु आते है। ऐसा बताया जाता है की यह वही स्थान है, जहाँ पर माता सती के नयन गिरे थे जब भगवान शिव माता सती के जले शरीर को लेकर जा रहे थे, इसी के चलते मंदिर को नैना देवी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की भव्यता और इसका इतिहास नैनीताल की सुंदरता को अत्यधिक बढ़ा देता है।
शक्ति पीठ
वैसे तो उत्तराखंड में कई शक्ति पीठ मौजूद है लेकिन नैनीताल स्थित माँ नैना देवी मंदिर कुछ विशेष है। नैनी झील किनारे स्थित इस मंदिर का निर्माण 15 वीं शताब्दी का बताया जाता है, जिसमे मूर्ति की स्थापना मोती राम शाह द्वारा वर्ष 1842 में की गई थी। राजधानी दिल्ली से 331 किमी दूर यह मंदिर नैनीताल के मुख्य स्थलों से एक है, जहाँ आप सड़क मार्ग से बस और टैक्सी का उपयोग करके आ सकते है। नैनीताल उत्तराखंड के प्रमुख हिल स्टेशन में से एक है, जहाँ हजारो की संख्या में श्रद्धालु रोजाना घूमने आते है, जिसके चलते मंदिर में रोजाना काफी संख्या में लोग दर्शन करने आते है। नैनीताल बस स्टैंड से केवल 2 किमी दूर मंदिर में आप ऑटो या रिक्शा की सहायता से आसानी से पहुँच सकते है। झील के किनारे स्थित मंदिर से चारो तरफ की सुंदरता देखते ही बनती है, विशेषकर रात के समय।
मंदिर गर्भ गृह
मंदिर प्रांगढ़ में कदम रखते ही आपको यहाँ विशालकाय पीपल का वृक्ष देखने को मिलता है, जिसके छाँव में कई लोगो बैठे नजर आते है। थोड़ी आगे दाए तरफ भगवान हनुमान मंदिर है, जिसके आगे आपको कई भक्त प्राथना के साथ हनुमान चालीसा पढ़ते हुए नजर आएंगे। इसके अतिरिक्त मंदिर प्रांगढ़ में झील की किनारे आपको एक शिवलिंग भी है, जिसमे लोग जल अर्पण करके भोलेनाथ के जयकारे लागते हुए दिखाई पड़ते है। मंदिर के गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर लगाई गई तीन विशाल घंटियाँ से उत्पन्न होने वाला मधुर संगीत आपके हृदय और कानो को एक बेहद ही सुन्दर एहसास प्रदान करता है। मुख्य मंदिर में प्रवेश करने पर आपको मध्य में माँ नैना देवी के दो नेत्र स्थापित दिखाई देंगे, जिनके इर्द गिर्द भगवान गणेश और माँ काली की मूर्ति स्थापित है। सफ़ेद और लाल रंग में रंगा माँ नैना देवी का यह मंदिर दूर से देखने पर बड़ा ही सुन्दर और भव्य प्रतीत होता है। मंदिर में मुख्य रूप से नारियल, लाल चुनरी, श्रृंगार दान, के साथ अन्य वस्तुए मुख्य रूप से चढाई जाती है। इन वस्तुओ को आप मंदिर के बाहर दूकान से खरीद सकते है।
खुलने और बंद होने का समय
माँ नैना देवी का मंदिर रोजाना भक्तो के लिए सुबह 6 बजे खोला जाता है और रात दस बजे बंद किया जाता है। इस दौरन भक्त मंदिर में होने वाली आरती और माता को लगाए जाने भोग में शामिल हो सकते है।
पौराणिक कथा
शक्ति पीठ से पहचाने जाने वाला माँ नैना देवी मंदिर का पौराणिक इतिहास काफी पुराना है। ऐसा बताया जाता है की जब सती ने भगवान शिव के साथ विवाह किया तो उनके पिता राजा दक्ष इस विवाह से खुश नहीं थे क्यूंकि शिव उन्हें नापसंद थे। एक दिन राजा दक्ष ने अपने निवास पर बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी परिचित व्यक्तियों को निमंत्रण भेजा सिवाय अपनी पुत्री और दामाद को। यज्ञ की खबर पता चलने पर सती ने भगवान शिव से इसमें शामिल होने की इच्छा जताई। निमंत्रण न मिलने की बात कहकर शिव ने जाने से मना कर दिया। लेकिन पिता मोह के चलते सती ने अकेले जाने की जिद की जिसे शिव ठुकरा न सके और इजाजत दे दी। सती को यज्ञ में उपस्थित पाकर राजा दक्ष अपना आपा खो बैठे और भरी सभा में सबके समक्ष शिव की घोर निंदा कर दी।
इस अपमान से व्यथित सती ने अपने प्राणो की आहुति देने के लिए यज्ञ में प्रज्वलित अग्नि में कूद गई। सूचना पाकर भगवान शिव यज्ञ स्थान पर पहुंचे और सती के जले हुए शरीर को उठाकर वहां से चल दिए। क्रोध और पीड़ा से भरे शिव ने अपना उग्र तांडव करना शुरू कर दिया, जिससे सभी देव और मानव भयभीत हो उठे। संसार को भगवान शिव के इस तांडव से बचाने हेतु सभी देवो ने भगवान विष्णु से गुहार लगाई। दुनिया को शिव के तांडव से बचाने के लिए विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती को 51 अंगो में विभाजित कर दिया। माता सती के यह अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे जिन्हे आज शक्ति पीठो के रूप में पूजा जाता है। ऐसा बताया जाता है जहाँ पर आज माँ नैना देवी का मंदिर स्थापित है वहाँ पर माता सती के दोनों नेत्र गिरे थे जिसके चलते ही मंदिर का नाम नैना देवी पड़ा।
इतिहास
मंदिर का इतिहास कुषाण वंश के समय का बताया जाता है, जिसका निर्माण 15 वीं शताब्दी में हुआ था। हालाँकि मंदिर में माँ नैना देवी की मूर्ति की स्थापना स्वगीय मोती राम शाह द्वारा सन 1842 में की गई थी। 1880 में आयी विनाशकर भूस्खलन से मंदिर को काफी मात्रा में क्षति पहुंची थी जिसका जीर्णोद्धार स्थानीय लोगो द्वारा वर्ष 1883 में किया गया था, जिसके बाद से समय समय में आवश्यकतानुसार मंदिर का निर्माण किया गया है।
त्यौहार और उत्सव
शक्ति पीठ होने के नाते मंदिर में सभी त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाए जाते है विशेषकर नवरात्री। इस दौरान मंदिर प्रांगढ़ भक्तो से खचा खच भरा हुआ रहता है जो अलग ही भक्तिमय माहौल पैदा करता है। इसके अतिरिक्त मंदिर में प्रत्येक वर्ष नंदा अष्टमी का त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर में पूरे 8 दिन के मेले का आयोजन भी किया जाता है, जिसमे हजारो की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन हेतु पधारते है। इस महोत्सव का अंतिम दिन विशेष माना जाता है क्यूंकि इस दौरान आपको माँ नंदा एवं सुनंदा की पालकी को विसर्जित किया जाता है। नंदा अष्टमी महोत्सव का भव्य आयोजन वर्ष 1926 से निरंतर आयोजित होता आ रहा है, जिसकी शुरुआत स्वर्गीय मोती राम शाह द्वारा की गई थी।
निवास की सुविधा
रात्री ठहरने हेतु आपको नैनीताल में विभिन्न तरह के विकल्प मिल जाएंगे, जिन्हे आप ऑनलाइन या ऑफलाइन माध्यम से बुक कर सकते है। मंदिर की निकट उपलब्ध निवास इस प्रकार से है: -
- सुमन रीजेंसी
- होटल मधुबन
- होटल सिटी इन
- एफएलबी रिसॉर्ट्स रॉयस विला
- सीज़न्स होटल्स बाय एक्सपीरियंस
- होटल चन्नी राजा
- द ग्रैंड होटल
यात्रियों के लिए मत्वपूर्ण सुझाव
- अंतिम समय में होने वाली परेशानी से बचने के लिए अपने निवास की सुविधा पहले से बुक करके रख ले।
- नवरात्रो और नंदा अष्टमी के दौरान मंदिर में भारी भीड़ होती है। अतः अपनी यात्रा देख कर प्लान करे।
- मानसून के दौरान यात्रा करने से बचे अन्यथा मार्ग में विभिन्न परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
- मंदिर के प्रवेश द्वार के निकट ही निशुल्क जूता स्टैंड की सेवा उपलब्ध है।
- मंदिर में चढाने हेतु प्रसाद आप मंदिर के बाहर दूकान से खरीद सकते है।
- मंदिर के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करना सख्त मना है।
- देहरादून से नैनीताल हेली सेवा का किराया 2,500 रूपए है।
- मंदिर में प्रवेश हेतु किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है।
नजदीकी आकर्षण
माँ नैना देवी मंदिर में दर्शन करने के बाद आप इसके निकट अन्य लोकप्रिय पर्यटक स्थल पर भी जा सकते है, जैसे की: -
- नैनी झील।
- नैनीताल चिड़ियाघर।
- टिफ़िन टॉप।
- कैंची धाम।
- सेंट फ्रांसिस कैथोलिक चर्च।
- गरुड़ ताल।
- भीमताल लेक।
- सरियातल।
- खुर्पाताल।
- नैना पीक।
- किलबरी।
- नैनताल राज भवन।
यहां कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग से: - नैनीताल स्थित नैना देवी का मंदिर दिल्ली से लगभग 331 किमी और देहरादून से 286 किमी की दूरी पर स्थित है। नैनीताल बस स्टैंड से केवल 2 किमी दूर मंदिर में आप ऑटो या रिक्शा के द्वारा जा सकते है। दिल्ली और देहरादून आईएसबीटी से नैनीताल की सीधी बस सेवा रोजाना उपलब्ध रहती है।
रेल मार्ग से: - मंदिर के निकटतम स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है जो लगभग 37 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्टेशन दिल्ली से रोजाना और हफ्ते में चलने वाली कई रेल सेवा से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से आगे की यात्रा आप बस या यहाँ उपलब्ध टैक्सी के द्वारा पूरी कर सकते है।
हवाई मार्ग से: - मंदिर के निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर एयरपोर्ट है, जो की यहाँ से 70 किमी की दूरी पर है। दिल्ली और जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से आपको यहाँ के लिए सीमित संख्या में हवाई मिलती है। यहाँ से आगे का सफर आप बस या टैक्सी के द्वारा कर सकते है। इसके अलावा आप देहरादून से नैनीताल हेली सेवा का लाभ ले सकते है जो की निजी हेली सेवा हेरिटेज एविएशन द्वारा उठा सकते है, जो दिन भर में दो बार उपलब्ध रहती है।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा मौसम
नैना देवी मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय सितम्बर से मई का माना जाता है इस दौरान यहाँ का मौसम घूमने के लिए उत्कृष्ट माना जाता है। आप यहाँ नवरात्री के साथ नंदा अष्टमी के अवसर पर आ सकते है हालाँकि इस दौरान आपको यहाँ अत्यधिक भीड़ देखने को मिलती है।
समुद्र तल से ऊँचाई
माँ नैना देवी मंदिर समुद्र तल से करीब 1,938 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो की करीब 6,358 फ़ीट है।