कर्णप्रयाग

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जानकारी

कर्णप्रयाग अलकनंदा नदी के पंच प्रयागों में से एक है। यह स्थान उत्तराखण्ड के चमोली जिले का एक छोटा सा शहर है, जो की अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर स्थित है। यह स्थान अपने आप मे कई मान्यताओं को समेटे हुए है। उन्ही मान्यताओ मे से एक मान्यता यह है की, इस स्थान पर अंगराज कर्ण (जिन्हे भगवान सूर्य तथा कुंती पुत्र के नाम से भी जाना जाता है ) ने कई वर्षो तक कठोर तप किया था। अपने कठोर तप के चलते ही अंगराज कर्ण को दिव्य कवच और कुण्डल प्राप्त हुए थे, जिससे उनके शरीर को किसी भी हथियार का भेद पाना नामुमिकन था। पूरे भारत वर्ष मे आपको केवल एक यही स्थान मिलेगा जहाँ कर्ण का मंदिर स्थित है। इसके साथ-साथ इस स्थान मे माँ 'उमा' जिन्हे माता सती (भगवन शंकर की पहली अर्धांगनी) के नाम से भी जाना जाता है, उनका पुरे विश्व मे एकलौता मंदिर यही पर स्थित है। यह भी मान्यता है, की महाभारत के युद्ध के बाद, सूर्य पुत्र कर्ण के देह को भगवान् कृष्ण ने इसी स्थान पर पंचतत्व मे विलीन किया था। इस स्थान की मान्यता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है की, स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरुओ के साथ इस स्थान पर १८ दिनों तक ध्यान किया था। यह स्थान अन्य प्रसिद्ध स्थान जैसे फूलों की घाटी, बद्रीनाथ और कुमाऊँ क्षेत्र से भी जुड़ता है।

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