कर्णप्रयाग अलकनंदा नदी के पंच प्रयागों में से एक है। यह स्थान उत्तराखण्ड के चमोली जिले का एक छोटा सा शहर है, जो हिमालये ग्लैशियर से पिघल कर अलकनंदा नदी और पिंडर नदी (यह पिंडारी ग्लैशियर से पिघल के आती है जो बागेश्वर में स्थित है ) और करण प्रयाग में इनका संगम होता है और यही इनका संगम देवप्रयाग के भागीरथी नदी साथ संगम हो जाता है। यह स्थान अपने आप मे कई मान्यताओं को समेटे हुए है। उन्ही मान्यताओ मे से एक मान्यता यह है की, इस स्थान पर अंगराज कर्ण (जिन्हे भगवान सूर्य तथा कुंती पुत्र के नाम से भी जाना जाता है ) ने कई वर्षो तक कठोर तप किया था। अपने कठोर तप के चलते ही अंगराज कर्ण को दिव्य कवच और कुण्डल प्राप्त हुए थे, जिससे उनके शरीर को किसी भी हथियार का भेद पाना नामुमिकन था। पूरे भारत वर्ष मे आपको केवल एक यही स्थान मिलेगा जहाँ कर्ण का मंदिर स्थित है यह मदिर एक शिला पर बनाया गया है जिसे कर्ण शिला के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ-साथ ही आपको इस स्थान पर माँ 'उमा' जिन्हे माता सती
(भगवान शंकर की पहली अर्धांगनी) के नाम से भी जाना जाता है, उनका पुरे विश्व मे एकलौता मंदिर यही पर स्थित है। यह भी मान्यता है पौराणिक मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है की यही वह जगह है जहाँ पर माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने हेतु निर्जला व्रत रखा था और इस मंदिर की स्थापना 8वी शताब्दी के अंतर्गत आदि शंकराचार्य ने किया था हालाकि मूर्ति उससे पहले की बताई जाती है मंदिर एक छोटा भव्ये बनाया गया है और इसके चारो तरफ चोट छोटी घंटियाँ लगाई गई जो एक शांति का प्रतिक है कर्णप्रयाग में आपको इसके आलावा और भी छोटे छोटे मंदिर देखने को मिल जायेंगे , की महाभारत के युद्ध के बाद, सूर्य पुत्र कर्ण के देह को भगवान् कृष्ण ने इसी स्थान पर पंचतत्व मे विलीन किया था। बताया जाता है मरने से पहले कर्ण ने श्री कृष्ण से इच्छा जताई की मेरा अंतिम संसकर ऐसे स्थान पर हो कोई पाप नहीं हुआ हुआ हो भगवान श्री कृष्ण ने यह स्थान खिजा था और आज यह बहुत पवित्र तीर्थ स्थानों में भी गिना जाता है इस स्थान की मान्यता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है की, स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरुओ के साथ इस स्थान पर 18 दिनों तक ध्यान किया था। यह स्थान अन्य प्रसिद्ध स्थान जैसे फूलों की घाटी, बद्रीनाथ और कुमाऊँ क्षेत्र से भी जुड़ता है। कर्णप्रयाग में आपको रहने व खाने के लिए होटल अन्य सुविधा मिल जाएगी
यहाँ आने के लिए आपको पहले ऋषिकेश हरिद्वार या देहरादून आना पड़ेगा ऋषिकेश से मात्र 170 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है आप जहाँ से भी हो अगर आप ट्रेन के माध्यम से आ रहे हो तो सबसे पहले अपंने नजदीकी ट्रेन स्टेशन से जा कर हरिद्वार रिषेकश ,देहरादून किसी एक की टिकट बुक करनी पड़ेगी या ऑनलाइन माध्यम से भी कर सकते हो अगर आप हवाई जहाज जे माध्यम से आ रहे हो तो आपको देहरादून के जॉलीग्रांट एयर पोर्ट पर आना पड़ेगा कर्णप्रयाग से जॉलीग्रांट एयर पोर्ट 183 कोलीमीटर दुरी पर है इन चारो जगहों में से किसी भी स्टेशन पर पहुँच कर आपको यहाँ के लिए टैक्सी कार अन्य वाहनों को सुविधा मिल जाएगी देवप्रयाग के लिए