हनोल महासू देवता यह उत्तराखंड के देहरादून शहर से मात्र 172 कोलोमीटर व जॉलीग्रांट एयर पोर्ट से 198किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पछवा दुन विकासनगर (यमुनोत्री )मार्ग पर स्थित है वैसे तो देव भूमि एक तीर्थ स्थल माना जाता है आपको पहाड़ो में जितने भी मंदिर देखने को मिलेंगे सभी मंदिर अद्भुद मंदिर माने जाते है क्यूंकि यहाँ के लोगो और उनकी आस्था की यह मान्यता है ऐसा ही एक मंदिर जो जौनसार-बावर क्षेत्र के त्यूणी गांव से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर हनोल गांव में महासू देवता का मंदिर स्थित है श्री महासू देवता मंदिर यह मंदिर चार महासू भाइयों देवता का स्थान बतया जाता है चार महासू देवता के बारे में अपने सुना ही होगा यह चार भाई थे महासू एक समूह का नाम दिया गए है और इनमे सबसे बड़े भाई का नाम बोठा महाराज है छोटे भाई -बाशिक, पवासी ,चलदा महाराज जौनसार बावर के लोगो की मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है जो सबसे बड़े भाई बोठा महासू व पवासी मंदिर वह हनोल के यमुना नदी पार हिमाचल में स्थित है और बाशिक मंदिर मैन्द्रत में हनोल से 9 किलोमीटर पहले पड़ता है और जो चालदा महाराज है वह पुरे जौनसार बावर व हिमाचल प्रदेश के जितने भी पहाड़ी मंदिर है वहाँ पे जो स्थान चलदा महाराज का है वह अपना स्थान पे जाते रहते है यानि अभी जैसे अभी हाल ही में समाल्टा थे यहाँ से 67 साल बाद दसाउ गए है 31 अगस्त 2022 में और 2026 में हिमाचल में जायेंगे और फिर उत्तराखंड में 100 साल बाद वापसी होगी ऐसे ये परम्परा ऐसी चलती आ रही है जौनसार बावर में हर साल जगडा भी किया जाता है और यह जागरा बहुत धूम धाम से किया जाता है उस दिन यहाँ लाखो श्रद्धालुओं आते है महसू देवता के दर्शन के लिए जो जौनसार बावर के बहुत खास त्योहारों मे से एक है "पौराणिक मान्यताओं के आधार पर यह मंदिर पाण्डव काल समय का भी बताया जाता है यह पर आपको 2 छोटे छोटे पत्थर भी है जिनको भीम के कंचे बताये जाते है यह कंचे बहुत भारी है अगर कोई इंसान इस पत्थर को सच्चे मन तन से उठाते है तो उठ जाती है अगर कोई व्यक्ति अहंकार से उठाएगा तो नहीं उठ पाएंगे ये कंचे चाहे कितना भी प्रयास करके देख ले यह यहाँ की अनोखी शक्ति है "कुछ लोगो की यह भी मान्यता है जो महासू देवता है वह जम्मू कश्मीर से आये हुए है इनके पीछे की कहानी कुछ ऐसी है हनोल में एक दानव रहता था जो हर दिन इंसानो की बलि लेता था जिससे यहाँ के लोग काफी डरे हुए रहते थे बलि से इस दानव से परेशान होकर एक भाट नाम का एक ब्राह्मण था जिसने महासू देवता को लाया था इस दानव से कुछ लोग ही बचे थे जिसमे से एक ब्राह्मणी थी जिसका नाम केलावती था यह एक दिन नदी किनारे बंटा लेकर जल भरने गई जैसे ही वह जल भरने लगी तभी एक विशाल भुजा दिखा कर उस ब्राह्मणी को निचे बिठा दिया जिसके मुँह से एक आवाज आई महासू तबसे लेकर यह नाम पड़ा और कुछ लोग यह भी कहते है एक दिव्ये वाणी प्रकट हुई महासू जिससे उस ब्रामणी को बोला इस दानव को अगर तुम इस देश का भला चाहती हो तुम अपने पति(भाट) को कश्मीर भेजना पड़ेगा वहाँ एक महासू देवता के नाम से एक दिव्ये सकती है वोही तुम्हारे गांव का उद्धार कर सकता है तब भाट ब्राह्मण महासू को लाये हनोल में और महासू देवता ने उसका वध कर यहाँ के लोगो का उद्धार किया और तबसे लेकर आजतक देवता उसी स्थान पर रहने लगे जो आज हनोल महासू देवता के नाम से विख्यात है इस महासू देवता के प्रति आपको जौनसार के लोगो में बहुत गहरी आस्था देखने को मिलती है और इतना ही नहीं आपको पुरे जौनसार में जितने भी मंदिर देखने को मिलेंगे सबके मंदिर बनाने की जो कला है वह बहुत अलग है जो लोगो को बहुत आकर्षित करती है यहाँ के मंदिर का निर्माण में अधीकतर लकड़ी और पत्थर का उपयोग किया गया है जिस लकड़ी का मंदिर बनाया जाता है वह लकड़ी देवदार की होती है और यह लकड़ी गांव द्वारा दी जाती है इस मंदिर आकर आपको कुछ अलग ही महसूस होने लगेगा शांति ,सुकून आदि यहाँ के लोगो का पहनावा व खान पान बहुत खूबसूरत व आकर्षित है यह मंदिर सालो साल खुला रहता है आप कभी भी इस मंदिर के दर्शन के लिए आ सकते हो इस मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 5905 फ़ीट है आप इस जगह पर साल में कभी भी आ सकते हो लेकिन बरशांत के समय (जुलाई,अगस्त )आपको थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ सकती है