मंदिरो के शहर के नाम से विख्यात बागेश्वर, कुमाऊं मंडल का एक अभिन्न अंग है। इसकी दूरी देहरादून से 315 किमी की है, जहाँ आप बस तथा टैक्सी के माध्यम से जा सकते है। ऊँचे हिमशिखर से घिरा खूबसूरत वातावरण का एहसास दिलाने वाला ये शहर सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित है। प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण बागेश्वर अपने प्राचीन मंदिरो के लिए काफी प्रसिद्ध है, जहाँ आपको
मंदिरो के शहर के नाम से विख्यात बागेश्वर, कुमाऊं मंडल का एक अभिन्न अंग है। इसकी दूरी देहरादून से 315 किमी की है, जहाँ आप बस तथा टैक्सी के माध्यम से जा सकते है। ऊँचे हिमशिखर से घिरा खूबसूरत वातावरण का एहसास दिलाने वाला ये शहर सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित है। प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण बागेश्वर अपने प्राचीन मंदिरो के लिए काफी प्रसिद्ध है, जहाँ आपको अनेक प्राचीन मंदिर देखने को मिल जाएंगे। इन मंदिरो में बागनाथ का मंदिर अत्यधिक मान्यता रखता है, जहाँ भक्त काफी संख्या में हर साल दर्शन करने आते है। भीलेश्वर और नीलेश्वर की पहाड़ी से घिरे इस शहर का वर्णन पुराणों में भी किया गया है, जो मुख्य रूप से शिव से सम्बंधित है। एक समय में यहाँ स्थान कुमाऊं मंडल वा तिब्बत के बीच होने वाले व्यापर का केंद्र स्थल था,
जिसको भारत व चीन के युद्ध पश्चात बंद कर दिया गया। मकर सक्रांति को मनाये जाने वाला उत्तरायणी के त्यौहार को पूरे कुमाऊं का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। वही यहाँ मनाये जाने वाले त्योहारों में आज भी स्थानीय लोगो में उनके पूर्वजो द्वारा दी गई परंपरा और रीति रिवाज की छाप देखने को मिलती है, जिनमे बिखौती, हरेला, सिम्हा और घी सक्रांति, कोजागर, हरिताली व्रत जैसे त्यौहार प्रमुख है। इस स्थान से आप पांडुस्थल, बैजनाथ, कौसानी, विजयपुर एवं कांडा जैसे स्थान पर जा सकते है यहाँ ऋषि मार्कण्डेय ने अपनी तपस्या के लिए सरयू नदी के बीच में तपस्या की भगवान शिव की लेकिन लेकिन तपस्या से सरयू नदी का बहावो रूक गया जिस कारण भगवान शिव बाघ के रूप में अवतरित हुए और माता पार्वती गांय के रूप में जिससे बाघ गांय को खा सके और इससे
ऋषि मार्कण्डये का ध्यान भंग हुआ और भगवान शिव ने मार्कण्डये को दर्शन इस कारण बागेश्वर नाम पड़ा इसका वैसे तो लोगो की कई तरह की अपनी अपनी मान्यता है बागेश्वर की कुछ लोगो की यह भी मान्यता है की बाघनाथ मंदिर की उससे पड़ा बागेश्वर का नाम यह मंदिर काफी प्राचीन मंदिरो में से एक है जो एक तीर्थ भी है । पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु बागेश्वर में आपको ट्रैकिंग करने के लिए कई स्थान मिल जाएंगे। बात करें पिंडारी ग्लेशियर की जो उत्तराखण्ड के मुख्य ग्लेशियरो में से एक माना जाता है इसका ट्रैकिंग का रास्ता लगभग 11 किलोमीटर का इसका ट्रेक लोहारखेत से शुरू होता है और इस 11 की मी के रास्ते में रहे भरे मैदान ऊँचे ऊँचे बर्फीले पर्वतारोहण व् गहरे सूंदर वन दिखाई देंगे जो आपके मन को मोह लेंगे यह ट्रेक जानकारी यक्ति के साथ ही करें ,मनस्यारी , नामिक, सुन्दरढूंगा और काफनी जैसे
हिमशिखरों पर ट्रैकिंग करने का अनुभव प्राप्त कर सकते है। इन सबसे विपरीत बागेश्वर की परम्परा वा रीती रिवाज आज भी प्रसिद्ध है, जहाँ स्थानीय लोग बिखौती, हरेला, सिम्हा और घी सक्रांति, कोजागर, हरिताली व्रत जैसे त्यौहार मनाते आज भी बड़े ही धूम धाम से मनाते है। देखा जाये पुरे उत्तराखण्ड में कुमाऊं मंडल और गढ़वाल मंडल के त्यौहार उत्तराखण्ड खंड की एक अलग पहचान है इस शहर में घूमने के लिए आप कभी आ सकते है लेकिन जुलाई अगस्त में सावधानी के साथ ही यात्रा को करें