यमुनोत्री
जानकारी
उत्तराखण्ड के चार धामों में से एक यमुनोत्री वह धाम है जहाँ से श्रद्धालु अपनी चार धाम की यात्रा शुरू करते है। देहरादून से 190 किमी की दूरी पर स्थित यह धाम देवी यमुना को समर्पित है। इस पवित्र तीर्थ स्थान पर आप देहरादून से मसूरी-केम्पटी फॉल होते हुए जानकी चट्टी तक हिमालय की खूसबसुरत वादियों का आनंद लेते हुए आ सकते है। जानकी चट्टी से मंदिर तक की यात्रा श्रद्धुलो को पैदल मार्ग से तय करनी होगी। पैदल यात्रा करते समय आपको प्रकृति की खूबसूरत नज़ारे, कई विहंगम झरने, यमुना नदी और हर भरे खूबसूरत पहाड़ दिखाई देंगे, जिसके लिए यात्रियों को 5 से 6 घंटे का समय लग सकता है। या आप घोड़े खच्चर की सायहता मंदिर में भी जा सकते हो जिससे आप शीघ्र पहुँच सकते हो मंदिर में मंदिर के गर्भ-ग्रह में स्थित यमुना देवी की मूर्ति का
रंग काले मार्बल का है, जिसके दर्शन श्रद्धालु सुबह की आरती के बाद दोपह 12 बजे तक और श्याम की आरती की पश्चात रात 8 बजे तक कर सकते है। चारो तरफ पहाड़ी से घिरे इस मंदिर से बन्दरपूँछ चोंटी का दृश्य बेहद ही विहंगम दिखता है। कहा जाता है की मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वी शताब्दी में करवाया था जिसका जीर्णोद्धार टिहरी रियासत के महाराजा प्रताप शाह ने करवाया था। भक्तो में माँ की मान्यता इतनी गहरी है की हर साल लाखो की संख्या में श्रद्धालु इस पवित्र स्थल पर आते है।
यहाँ स्थित पवित्र सूर्य कुंड और गौरी कुंड एहम है, सूर्य कुंड के गर्म पानी में श्रद्धालु चावल और आलू को पकाते है, जिसे प्रसाद के रूप में मंदिर में चढ़ाया जाता है। वहीं गौरी कुंड में श्रद्धालु स्नान करके अपनी यात्रा के लिए प्रस्थान करते है। पौराणिक कथा अनुसार सूर्य की संज्ञा और छाया नामक दो पत्नियों से यमुना (यमी), यम (यमराज) और शनि प्रकट हुए। इस प्रकार से यमुना शनि और यम की बहन कहलाई जाती है। यमुनोत्री से लगभग 9 कि.मी पहले खरसाली में शनि देव का प्राचीन मंदिर स्थित है जहाँ अमूमन यात्री अपनी यात्रा के दौरान आते है। यमुना की जन्मस्थली चमपासर ग्लेशियर के संज्ञा में स्थित है, जिसके बगल वाली पहाड़ी यमुना के पिता यानी सूर्य देव का स्थल है जिसे लोग कालिंदा पर्वत के नाम से भी जानते है।
यमुनोत्री के कपाट दिवाली के दो दिन बाद आने वाले भाई दूज जिसे यम द्वितीया भी कहते है के उपलक्ष्य पर बंद किये जाते है। माना जाता है है की इस दिन यम अपनी बहन यमी से मिलने जाते है। लोगो में यह भी मान्यता है की इस दिन यमुना के दर्शन वा मथुरा में स्नान करने से नरकी जीवन व यातना से छुटकारा मिल जाता है। और यह भी बताया जाता है जो श्रद्धालु उस दिन स्नान करता है वो अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाता है यमुनोत्री से श्रद्धालु कुछ प्रमुख स्थल जैसे की हनुमान चट्टी, खरसाली, सप्तऋषि कुंड (यमुना क उद्गमी स्थल) पर जा सकते है
साल में मंदिर की यात्रा 6 महीने तक होती है और 6 महीने मंदिर बंद रहता है अप्रैल से लेकर नवंबर तक इस बीच यात्रा कर सकते है लेकिन जुलाई और अगस्त में यात्रा को सावधानी पूर्वक करें पहाड़ो में मानसून इन दो महीने अधिक होता है यमुनोत्री धाम आप दो रास्तो से होकर जा सकते हो पहले देहरादून मसूरी मार्ग से होते हुए दूसरा विकासनगर जुड्डो मार्ग से होते हुए भी आ सकते हो अगर आप ट्रेन से आ रहे हो तो नजदीकी रेलवे स्टेशन पर पहुंचना पड़ेगा जो देहरादून रेलवे स्टेशन है यहाँ से आपको चार धाम के लिए टैक्सी ,कार आदि वाहन मिल जायेंगे या हरिद्वार ,ऋषिकेश से भी होकर जा सकते हो और देहरादून एयर पोर्ट जॉलीग्रांट से होकर आ सकते हो जो 207 की. मी की दुरी पर है यमुनोत्री मंदिर | मंदिर की समुद्र तल से दुरी लगभग 3,293 मीटर (10,804 फ़ीट) है।
यहां कैसे पहुंचे
यमुनोत्री की दूरी देहरादून से लगभग 190 किमी की है। इस स्थान पर आप सड़क मार्ग से पहुँच सकते है, हालाँकि गाड़ियां केवल जानकी चट्टी तक ही जा सकती है, उसके आगे की 5 से 6 किमी की यात्रा आपको पैदल ट्रेक करके पूरी करनी होगी। पैदल न चल सकने वालो के लिए पालकी और टट्टू(छोटा घोडा) की सुविधा भी उपलब्ध है। जानकी चट्टी तक आने के लिए यात्रियों को बस तथा टैक्सी जैसी तमाम सुविधा देहरादून बस अड्डे से प्राप्त हो जाएगी। रेल मार्ग से आने वाले यात्रियों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून में स्थित है, वही निकटतम एयरपोर्ट देहरादून के जॉली ग्रांट में 207 किमी दूर स्थित है। यमुनोत्री में आप हेलीकाप्टर की सेवा लेकर भी आ सकते है, जिसकी सुविधा आपको देहरादून के सहस्त्रधारा में उपलब्ध होगी, हालाँकि उसके लिए पूर्व में रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य है। रेलवे स्टेशन तथा एयरपोर्ट से आगे की यात्रा आप सड़क मार्ग से कर सकते है। यात्रा पूर्व यात्रियों को अपना ऑनलाइन पंजीकरण करवाना अनिवार्य है।
पहुँचने का सबसे अच्छा समय
इस धार्मिक स्थल पर आप कपाट खुलने के दौरान आ सकते है, जो साल में छह माह मई से अक्टूबर/नवंबर तक खुले रहते है। हालाँकि श्रद्धालु के लिए सबसे उपयुक्त समय मई से जून तथा सितम्बर से अक्टूबर का ही माना जाता है। क्यूंकि बरसात के दौरान यात्रा करने में यात्रियों को थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
समुद्र तल से ऊँचाई
समुद्र तल से इस स्थान की ऊँचाई लगभग 3,293 मीटर (10,804 फ़ीट) है।