उत्तर का काशी कहे जाने वाला उत्तरकाशी, देहरादून से लगभग 145 किमी की दूरी पर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 108 में स्थित इस जिले में आप सड़क मार्ग द्वारा पहुँच सकते है, जो की राजधानी देहरादून से भलीभाँति जुड़ा हुआ है। करीब 8,016 वर्ग किलोमीटर में फैले उत्तरकाशी की सीमा दक्षिण में चमोली, पश्चिम में देहरादून, दक्षिण में टिहरी गढ़वाल और उत्तर में हिमाचल प्रदेश से लगती है। वही इसकी दक्षिण-पश्चिम सीमा रुद्रप्रयाग से और उत्तर-पूर्व की सीमा तिब्बत, चीन से लगती है। देश विदेश में उत्तरकाशी की ख्याति अपने पर्यटक स्थल और मंदिरो के लिए जाना चाहता है, विशेषकर छोटा चार धाम कहे जाने वाले यमुनोत्री और गंगोत्री।
वर्ष 2011 की जनसँख्या गणना के अनुसार क्षेत्र की कुल जनसँख्या 3 लाख से अधिक की है, जिनमे 50 प्रतिशत से अधिक पुरुष है। साक्षरता दर के मामले में भी उत्तरकाशी का 78 प्रतिशत केंद्र की 59 प्रतिशत से काफी अधिक है। के साथ ही माँ गंगा की उद्गमी स्थल गोमुख भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा है। उत्तर प्रदेश में काशी के समान, उत्तरकाशी में भी भोलेनाथ का सुप्रसिद्ध कशी विश्वनाथ मंदिर मणिकर्णिका घाट के समीप स्थित है, जहाँ अक्सर भक्तो की काफी भीड़ देखी जा सकती है।
उत्तरकाशी जिले की सौंदर्यता को और अधिक बढाती है इसके बीच से कलकल बहने वाली यमुना तथा भागीरथी नदी। अपनी धार्मिक महत्व के साथ यह स्थान अपने पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है, जहाँ आप पर्वतारोहण और ट्रैकिंग का भरपूर आनंद ले सकते है। पर्वतारोहियों के लिए उत्तरकाशी किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ के प्रसिद्ध कालिंदी ट्रेक, डोडीताल ट्रेक, नचिकेता ताल, केदार ताल जैसे प्रमुख ट्रेक ट्रेकर्स की पहली पसंद है। यहाँ का पर्वतारोहण और उसके गुर सीखने वाली संस्थान नेहरू पर्वतारोहण संस्थान भी स्थित है जो पूरे भारत और एशिया में अपनी एक उत्कृष्ट पहचान बना चूका है। प्रत्येक वर्ष काफी संख्या में लोग ट्रेक करने और सिखने इस संस्थान में अपना पंजीकरण करवाते है।
इतनी संख्या में पर्यटन और बाहरी लोगो के समक्ष अपनी प्राकृतिक परमपराओं और संस्कृति को उत्तरकाशी के लोगो ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से संजो के रखा है। यहाँ मुख्य रूप से गढ़वाली, कुमाउनी और पंजाबी जाती के लोग ही रहते है, जो गढ़वाली तथा हिंदी भाषा ही बोलते है। गंगोत्री, यमुनोत्री, कशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा यहाँ कुटेटी देवी, कपिल मुनि आश्रम, भैरव मंदिर, पोखू देवता व अन्य मंदिर भी प्रसिद्ध है। वैसे तो उत्तरकाशी में हर स्थान अपने आप में एक पर्यटन स्थल है, लेकिन मुख्य रूप से हर्षिल वैली, गरतांग गली, दयारा बुग्याल, मनेरी डैम इत्यादि पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है। उत्तरकाशी की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर और खेती पर निर्भर है। जिसके चलते राज्य के अधिकांश व्यक्ति इन क्षेत्रों से जुड़े हुए है।
पर्यटन से जुड़े स्थानीय लोग क्षेत्र में आए पर्यटकों को एक आनंदायक अनुभव करवाने के लिए अग्रषित है। इतनी संख्या में पर्यटन के आगमन हेतु क्षेत्र में बहुसंख्या में होटल और होम स्टे की सुविधा उपलब्ध है। वही पर्यटन के साथ उत्तरकाशी अपने सेबो की बागीचे और डालो के लिए भी काफी पहचाना जाता है। हालाँकि पिछले कुछ समय से प्रकृति के रौद्र रूप का असर उत्तरकाशी के लोगो पर कहर बनाकर टुटा है, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है। प्रत्येक वर्ष होने वाले इस नुकसान से बचने हेतु राज्य के अधिकांश लोग यहाँ से सुरक्षित स्थानों के लिए पलायन करने पर विवश हो चुके है।