त्रियुगीनारायण मंदिर

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जानकारी

भगवान विष्णु को समर्पित, त्रियुगीनारायण का मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इस प्राचीन मंदिर की दूरी देहरादून से 252 किमी की है, जहां श्रद्धालु सड़क मार्ग से आ सकते है। जग के नारायण कहे जाने वाले भगवान विष्णु का यह मंदिर, भगवान शिव और पार्वती की शादी की लिए काफी विख्यात है। जिस वजह से काफी संख्या में लोग अब इस स्थान पर शादी करने आते है। मंदिर के गर्भ ग्रह में स्थापित भगवान विष्णु की दो फ़ीट ऊँची चाँदी की मूर्ति चुंबकीय आकर्षण पैदा करती है, जिसको देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते है।

हिमालय की पहाड़ो के बीच में स्थित इस मंदिर के चार्टो तरफ हरे भरे पहाड़ और पीछे दूर बर्फ से ढकी चोंटिया एक बेहद ही विहंगम नजारा प्रस्तुत करती है। बताया जाता है की मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य जी द्वारा 8वी शताब्दी के दौरान किया गया, जिसकी वास्तुकला केदारनाथ मंदिर कि तरह है। मंदिर के प्रांगढ़ में स्थित चौकोर रूप में हवन कुंड प्रमुख है। कहा जाता है की इस कुंड की अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और पार्वती ने सात फेरे लिए थे। इतना ही नहीं इस कुंड में जलने वाली आग तीन युगो से जलती हुई आ रही है, जिस वजह से मंदिर का नाम त्रियुगी पढ़ा।

अखंड धुनि नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर के हवन कुंड में अक्सर श्रद्धालु लकड़ी की आहुति देते है और कुंड से निकलने वाली राख को विवाहित जीवन के लिए वरदान माना जाता है। कहा जाता है की हिमावत की पुत्री माता पार्वती जो की माता सती का ही पुनर्जन्म थी, भगवान शिव को अपनी सुंदरता से मोहित करना चाहती थी, लेकिन सफलता हाथ न लगने पर उन्होंने यहाँ से पांच किमी दूर गौरीकुंड में शिव को पाने हेतु कठोर तपस्या की और फलस्वरूप शिव को प्राप्त किया। भक्त त्रियुगीनारायण मंदिर में दर्शन उपरांत गौरीकुंड स्थित माता पार्वती के मंदिर दर्शन करने अवश्य जाते है।

शिव पार्वती की शादी में मुख्य भूमिका भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई रूप में निभाई थे वही ब्रह्मा जी पुजारी के रूप में उपस्थित थे। बताया जाता है की जिस स्थान पर शादी हुई थी उस स्थान को चिन्हित करने के तौर पर एक शिला रखी गई थी जिसे लोग ‘ब्रह्मा शिला’ के नाम से जानते है। यहाँ स्थित रुद्रकुंड, विष्णु कुंड, और ब्रह्म कुंड काफी पवित्र माने जाते है। कहा जाता है की शादी से पहले सभी देवताओ ने इन्ही कुंडो में स्नान किया था। तीनो ही कुंड अपनी एक विशेष पहचान लिए हुए है, रूद्र कुंड नहाने के लिए, विष्णु कुंड पवित्रता के लिए और सरस्वती कुंड तर्पण के लिए प्रयोग में लाए जाते है।

इन तीनो कुंडो में पानी मंदिर स्थित सरस्वती कुंड से प्रवाहित होकर जाता है, जिसकी मान्यता है की यह पानी भगवान विष्णु की नाभि से प्रवाहित होता है। लोगो में ऐसी भी धारण प्रचलित है की इस कुंड में निसंतान स्त्री के स्नान मात्र से उन्हें संतान उत्पत्ति में हो रही बाधा दूर होती है।

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