संस्कृति विश्व विद्यालय की पवित्र भूमि माँ गंगा की गोद में स्थित और हिमालये की छाया व सप्त ऋषि मुनियों की तपोभुमि जो उत्तराखंड की अध्यात्म नगरी हरिद्वार में हर की पौढ़ी से लगभग 7.2 किलोमीटर की दुरी पर स्थित यह पवित्र स्थल जिसको शांति कुंज या गायत्री परिवार संस्था के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात है और वास्तव में अपने नामसे से भी मेल खाता है,जिसका अर्थ है "शांति का निवास"। मनुष्य के भीतर की खूबसूरती बनाने के लिए बनाया गया है यह विश्व विद्यालय जो पूरी दुनिया में लगभग 80 देशों में शक्ति पीठ के नाम से चल रही यहाँ संस्था परम् पूज्य गुरुदेव ने 70 के दशक से मानव जाति के उद्धार हेतु संवेदनशील प्रगति शील नारी और आने वाले उसके युग की एक परिभाषा भी दी व् अपने और इस योजना के तहत इसको क्रियान्वित भी किया अत इसके फलस्वरूप में आज गायत्री परिवार के सदस्य 15 करोड़ से ज्यादा की हो गई है जिन्होंने इस संस्था को चलाया था 1971 में जिनका नाम
ऋषि स्वर्गीय वैदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा द्वारा स्थापित जो की नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान का एक केंद्र भी बन चूका है। हर की पौड़ी के निकट स्थित, शांति कुंज अपने शांत और आध्यात्मिक वातावरण के लिए दुनिया भर प्रसिद्ध है, जिसे गायत्री तीर्थ स्थल के नाम से भी जाना जाता है। शांति कुंज के प्रांगढ़ मे आपको प्रसिद्ध 'गायत्री मंदिर' और 'सप्तऋषि मंदिर' के साथ साथ यज्ञशाला, शिक्षा मंदिर भी देखने को मिल जाएँगे। आध्यात्मिक और व्यक्तिगत ज्ञान के उत्थान के लिए, ये गायत्री और वैदिक ज्ञान के सिद्धांत को बढ़ावा देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में शांति कुंज विचार क्रांति का केंद्र बन गया है। उनके विभिन्न कार्यक्रमों और पहलों का उद्देश्य समाज में शांति, सद्भाव और धार्मिकता का मूल्य स्थापित करना है। अपने जीवनकाल मे युग ऋषि श्रीराम शर्मा एवं उनकी पत्नी आश्रम मे आने वाले श्रद्धालु से मिला तथा उनकी सेवा करते थे। जिस कारण वे अपनी सेवा में इतने लीन हो चुके थे
जैसे कोई परम् शिव भगत या साधु संत किसी तपस्या में लीन हो गया हो वैसे आज के युग में ऐसा सेवक और श्रद्धालुओ की सेवा करना बहुत कम देखने सुनने को मिलता है जिन्होंने अपना पूरा जीवन काल इसमें ही निछावर कर दिया हो आप कह सकते हो उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी समाधी इसी स्थल पर बना दी गई थी। शान्ति कुँज की प्रसिद्धि का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की आज गायत्री परिवार की 6000 से भी अधिक शाखाएं है जो ये संस्थाए चला रहे है। इसके साथ यहाँ लोग पारम्परिक रीती रिवाज से अपना विवाह करने भी आते है। शांति कुंज एक ऐसा हिन्दू धर्म का पवित्र तीर्थ स्थल भी माना जाता है जहाँ पर संस्कृत में बच्चो को कुटुंब बनाया जाता है जिससे भविष्य में आगे चल कर वह प्रशिक्षण कर सके
और यह गुरुकुल एक समग्र सर्वांग पूर्ण प्रयोगशाला भी कह सकते है आज के समय में आपको गुरुकुल बहुत कम देखने को मिलेंगे उत्तरी भारत में लेकिन अगर आप दक्षिण भारत की तरफ जावोगे तो आपको कई गुरुकुल देखने को मिल जायेंगे जैसे कर्नाटक,केरला,तिरुमला के आदि जगहों में काफी गुरुकुल देखने को मिल जायेंगे जहाँ पर आज संस्कृत में बच्चो का प्रशिक्षण किया जाता है ठीक इस प्रकार ही शांति कुंज गायत्री परिवार में बच्चो से लेकर बड़ो तक का प्रशिक्षण किआ जाता है जिसके फलस्वरूप यहाँ पर इस संस्कृत विद्या को ग्रहण करने हेतु दूर-दूर से आते है विद्यार्थी इस कारण इसको संस्कृत विश्वविद्यालय कहा जाता है इस शांति कुंज के अंदर आपको जीवन जीने साथ साथ आपको कुछ सिखने को मिलता है
प्रवेश कैसे करें
जब आप शांति कुंज में प्रवेश करोगे उससे पहले अपनी यहाँ पर आधार कार्ड या कोई अन्य आईडी कार्ड दिखा कर एंट्री करनी पड़ती है जिसमे आप कितने समय के जा रहे हो या कितने दिन के लिए रहने के लिए आये हो वैसे तो आप यहाँ पर दो से तीन तक रहने व् खाने की सुविधा उपलब्ध है जो निशुल्क है बाकि जानकारी आपको गेट पर मिल जाती है जिसके दो प्रवेश द्वार है गेट नंबर 3 व् गेट नंबर 5
महत्वपूर्ण जानकारी
जैसे आप गेट के अंदर आएंगे तो आपको एक पार्क देखने को मिलेगा जिसको मर्माबिंद चिकित्सा (एक्यूप्रेसर पथ ) और उसका अगर आपको लाभ लेना है पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए जुते -चप्पल व भारी चीजो के साथ ना जाये अतः ये सब उतारकर ही इसका भृमण करें
इसके आगे चलकर मिलगा आपको वनौषधि प्रदर्शनी शांतिकुंज इस वनौषधि में आपको अलग अलग प्रकार की जड़ी बूटियों को देखने को मिलती है यहाँ पर इन छोटे छोटे पोधो को बहुत अच्छे तरीके से रखा गया जिससे किसी भी प्रकार की जड़ी बूटी को ढूंढा जा सकता है और पोधो (जड़ी बूटियों ) के ऊपर एक स्कैन करने का लगा हुआ हर एक पौधे पर जिसके अन्तर्गत आप किसी भी पौधे की जानकारी ले सकते है और आगे आपको हर एक जड़ी बूटी के बारे में दीवार पर लगे अगल अलग पोस्टर (डिस्प्लेये ) के जरिये आपको देखने को मिलेगी
देव संस्कृति दिग्दर्शन इस गर्भगृह के अंदर आपको यहाँ पर होने वाला कार्येक्रम एवं अन्य जानकारी किसी भी प्रकार की संस्कृति का कार्यक्रम हेतु जानकारी मिलती है इसमें जाते ही आपको स्वर्गीय श्री पंडित राम आचार्य जी की पूरी जीवन की कहानी लिखी हुई देखने को मिलती है और ऐसी प्रकार आपको दीवार लगी बी पेंटिंग जरिये देख सकते है ऋषिमुनियों के बारे जानने को व् साधना आंदोलन ,शिक्षा-आंदोलन,स्वास्थय आंदोलन,पर्यावरण आंदोलन ,नारी जागरण -आंदोलन ,नशा एवं कुरीति -उन्मूलन आंदोलन आदि इन सब आंदोलन हेतु यहाँ पर कुटुंब प्रशिक्षण कराया जाता है
देवात्मा हिमालय मंदिर के नाम से एक ऐसा स्थल बनाया गया है भगवान शिव का जिसके अंदर आपको दिखाई देगी गायत्री माता की तस्वीर और उसके साथ यहाँ बनाएं गए हरे और नीले रंग के छोटे छोटे पहाड़ जहाँ आप आराम से बैठ कर ध्यान को केंद्रित (मैडिटेशन )कर सकते हो
यहाँ सुभह 10 बजे से लेकर 11 बजे तक भोजन दिया जाता है जो निशुल्क रहता है और शांति कोई धर्मशाला या होटल नहीं है यह केवल एक साधना स्थल है और यहाँ और यहाँ पर संगीत भी सिखाया जाता है जिसको संगीत सीखना हो
यहाँ पर आपको हर एक कोई साधना के साथ साथ साधारण वस्त्र में देखने को मिलेगा जो इस शांति कुंज का प्रतिक भी माना जाता है गायत्री मंदिर में आपको एक अखंड ज्योत गर्भगृह के अंदर एक दिव्य ज्योत 1926 से जलती आ रही है अभी तक और उसके समीप आपको गायत्री माता की सूंदर मूर्ति दखने को मिलती है
शांति कुन्ज में साधना होती है गायत्री मंत्र की मंदिर के शिविर में 24हज़ार,30माला रोज की गायत्री मंत्र से जाप कराया जाता है और इसके साथ संगीत व् प्रवचन,योग व्याम आदि कार्यकर्म कराये जाते है और यह कार्यकर्म सुबह 4 बजे से लेकर रात के 9 बजे तक प्राथना के साथ इसको समाप्त किया जाता है और ब्रह्म मुहूर्त पर जागरण भी किया जाता है व् ब्रह्मवेला में स्नान ध्यान भी किया जाता है फिर आरती की जाती है उसके बाद ध्यान फिर यज्ञ,प्रणाम ,संस्कार इस प्रकर से पूरी दिन चर्या की जाती है
यहाँ पर आपको एक पुस्तकालय देखने को मिलता है जिसमे आपको श्री पण्डित आचार्य जी की यहाँ पर 3200 किताबे लिखी हुई देखने को मिलेंगी और इन किताबो को आप खरीद भी सकते हो
संस्कार प्रकोष्ठ में आपको सारे संस्कार की जानकरी प्राप्त होती है ऐसे मंडल संस्कार के बारे में ,विवाह संस्कार के वारे में ,वानप्र्स्थ ससंस्कार के बारे हेतु आदि संस्कार
माता गायत्री मंदिर में आपको सप्त ऋषियों की मूर्ति देखने को मिलती है जिसमे सप्त ऋषियों को स्थापित किया जाता है जिसको इस शांति कुंज के अंदर सप्त ऋषियों के नाम से जाना जाता है जिनके नाम ऋषि परशुराम ,चरक ऋषि , ऋषि वाल्मीकि ,ऋषि भगीरथ,ऋषि विश्वामित्र,ऋषि गौतम ,ऋषि याज्ञवल्क्य,वसिष्ठ ऋषि शांति कुंज में आप आकर बहुत कुछ सीखने को मिलता जिसका अनुभव आपको केवल यहाँ आकर ही पता चलता है यहाँ पर आने के लिए आपको हरिद्वार के रेलवे स्टशन पर आना पड़ता है रेलवे स्टेशन से यह स्थान मात्र 6.5 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है रेलवे स्टशन से शांति कुंज आने के लिए आपको साधन मिल जाता है या आप बस के माध्यम से भी आ सकते हो सीधा और जॉली ग्रांट एयर पोर्ट से मात्र 33 किलोमीटर की दुरी स्थित यह पवित्र स्थल