कार्तिक स्वामी मंदिर

Location details can not be fetched for a bot.

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple

जानकारी

भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित कार्तिक स्वामी का यह लोकप्रिय मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में कनकचौरी में स्थित है। यह मंदिर दक्षिण भारत के कार्तिक मुरुगन स्वामी के रूप में भी पूजनीय है, जिसके चलते बड़ी संख्या में भक्त यहाँ दक्षिण राज्य से पधारते है। क्रोंच पर्वत पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको दो किमी का सफर पैदल चलकर पूरा करना होता है, जिसके रास्ते में आपको बुरांस के पेड़ और प्रकृति के अद्भुत नज़ारे देखने को मिलते है।

मंदिर के गर्भ ग्रह तक जाने के लिए 80 सीढियाँ बनाई गई है, जो दूर से देखने में बेहद ही आकर्षित लगती है। हड्डियों के रूप में उपस्थित कार्तिकेय की पूजा-अर्चना सुबह और श्याम मंदिर के पुजारी द्वारा की जाती है। इस पूजा में भाग लेने काफी संख्या में ग्राम वासी एवं पर्यटक उपस्थित रहते है। मंदिर से हिमालय और चौखम्बा पर्वत का दिखने वाला नजारा आपको इस जगह से प्रेम करने पर मजबूर कर देगा। इसके साथ ही सूर्योदय और सूर्यास्त का विहंगम नजारा सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

ऐसी मान्यता है की कार्तिक पूर्णिमा को मंदिर में घंटी चढाने से व्यक्ति की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण जो जाती है, शायद इसी आस्था के चलते आपको मंदिर के चारो तरफ सैकड़ो घंटियों टंगी दिखाई देंगी। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाला दो दिन का मेला यहाँ का मुख्य आकर्षण का केंद्र बना रहता है, जिसे लोगो द्वारा काफी धूम धाम से मनाया जाता है। इसके अलावा मई/जून के माह होने वाली कलश यात्रा की भी यहाँ काफी मान्यता है, जिसमे दुर्गम चट्टानों से होकर जाने वाली इस यात्रा में पुरुष द्वारा ही भाग लिए जाता है। इन चट्टानों के श्रोत से 151 कलश जल भरकर यहाँ होने वाले महायज्ञ के दसवे दिन कार्तिकेय का अभिषेक किया जाता है।

इस श्रोत की एक विशेषता है की इस श्रोत से वर्ष भर पानी नहीं निकलता लेकिन इस महायज्ञ के दौरान इस श्रोत से स्वतः पानी की धारा बहने लगती है, जो की अद्भुत और अविस्मरणीय है। ऐसा माना जाता है की साल में आने वाली बैकुंठ चतुर्दशी को मंदिर में कार्तिकेय से मिलने स्वयं माता पार्वती और भगवान शिव आते है।

हजारो वर्षो का इतिहास समेटे इस मंदिर का इतिहास बेहद ही रोचक है। कहा जाता है की जब गणेश और कार्तिकेय में शर्त लगी की उन दोनों में से अधिक श्रेष्ठ कौन है। इस समस्या का समाधान निकालने हेतु भगवान शिव ने कहा जो भी इस ब्रह्माण्ड के सात चक्कर लगाकर सबसे जल्दी हमारे समक्ष आएगा, वही सबसे श्रेष्ठ कहलाया जाएगा। यह बात सुनकर कार्तिकेय अपनी सवारी मयूर पर बैठकर पृथ्वी के चक्कर लगाने लग गए। लेकिन गणेश अपने वाहन मूषक में बैठ कर माता पार्वती और शिव के सात चक्कर लगा कर उनके समक्ष उपस्थित हो गए।

आश्चर्यचकित शिव ने जब गणेश से इसका कारण पूछा तो गणेश कहने लगी की आप दोनों ही मेरी दुनिया और ब्रह्माण्ड हो आपके समक्ष मेरी और कोई दुनिया नहीं है। यह कथन सुनकर शिव मुस्कुराए और कहा तुम सबमे श्रेष्ठ हो इसलिए आज से तुम्हे सब भगवानो से प्रथम पूजा जाएगा और ऐसा न करने पर वह पूजा स्वीकृत नहीं होगी। कार्तिकेय को जब यह बात पता चली तो वह बेहद क्रोधित हो गए और क्रोध में अपने शरीर का सम्पूर्ण मांस निकालकर भगवान शिव को समर्पित कर दिया और अपनी हड्डिया का ढांचा लेकर क्रोंच पर्वत पर आकर तपस्या में लीन हो गए।

भीतर आस-पास के स्थान किमी त्रिज्या

केदारनाथ मंदिर

0 समीक्षाएं

8.85 किमी

कालीमठ मंदिर

0 समीक्षाएं

6.53 किमी

त्रियुगीनारायण मंदिर

0 समीक्षाएं

9.42 किमी

चोपता

0 समीक्षाएं

0.43 किमी

देखिए यात्री क्या कह रहे हैं...