ब्रिटिश शासन काल के समय भारत के उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी देहरादून शहर में किया गया एक ऐसे संस्था निर्माण जो आज के समय में प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है देहरदून बस अड्डे से 10 किमी की दूरी पर स्थित और लगभग 4.5 हेक्टयर में फैला यह 'वन अनुसन्धान संस्था' F.R.I इसकी स्थापना सन 1906 में हुई थी, जिसे 1991 में विशविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित किया गया। यह संस्था अपने प्रकार की सबसे पुरानी संस्था है, जहाँ दूर दूर से विद्यार्थी पढ़ने और प्रोफेसर शोध करने आते है। ग्रीक और रोमन शैली में बनी इसकी मुख्य बिल्डिंग आकर्षण का केंद्र बिंदु है, साथ ही यहाँ आपको अनेक प्रकार के पेड पौधे दखने को मिल जाएंगे। बिल्डिंग में आपको संघ्रालय भी देखने को मिल जाएँगे जिसके 6 अनुभाग है। रोजाना हजारो की संख्या में लोग यहाँ आते है और यहाँ की ख़ूबसूरती और कारीगरी को देखकर मंत्र्मुघ्द हो जाते है। इस संसथान की खूबसूरती से भारतीय सिनेमा भी अछूता नहीं रहा है, इसी वजह से यहाँ कई बॉलीवुड फिल्मो की शूटिंग हो चुकी है।
1864 के तहत ब्रिटिश सरकार को उस दौरान एक सलाह दी गई जिसमे कई तरह के पद निकाले गए है जिसमे एक पद था इंस्पेक्टर जरनल ऑफ़ फारेस्ट और इस पोस्ट में बनाये गए डाइट्रिच ब्रैंडरिच उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने एक बात को पेश किया जो जंगल के वन विभाग के कर्मचारी उनके लिए एक ट्रेनिंग का रेंजर्स विद्यालय खोल दिया जाये फिर ब्रिटिश सरकार ने खुलवा दिया यह स्कूल देहरादून के पण्डितवारी में साल 1872 को उसके बाद कुछ सालो पश्चात इस स्कूल को ब्रिटिश सरकार ने 1884 में अपने कब्जे में ले लिया था फिर उस विद्यालय उसका नाम बदलकर इम्पीरियल फारेस्ट स्कूल रख दिया गया था इसके चलते ही यह स्कूल उस दौरान स.ई 1900 तक काफी प्रचलित हो चूका था जिस कारण यहाँ पर देश विदेश में विद्यार्थी आते थे पढ़ने हेतु इसके पश्चात इस विद्यालय में शोध कार्य भी किय गए साल 1996 में यह शोध कार्य शुरू कर दिए गए थे जिसके फलस्वरूप इस स्कूल नाम बदलकर इम्पीरियल फारेस्ट रिसर्च कॉलेज रखा दिया गया था ( एफ आर आई ) इस बिल्डिंग की
बनावट(डिज़ाइन )तैयार किया था सी जी ब्लूमफील्ड और इस बिल्डिंग उद्धघाटन वायसराय लार्ड इरविन ने 7 नवम्बर 1929 में इस बिल्डिंग का जिसकेअंतर्गत ऐसे ही साल 1991 को डिम्ज यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ जिस कारण आज भी इस संस्थान में पर देश विदेश से विद्यार्थी पढ़ने हेतु आते है एफ आर आई में आपको यहाँ की सुंदरता के साथ साथ इसके अंदर संग्रहालय देखने को मिलते जिसमे आपको इन संग्रहालय में वानिका प्रजातियों के बीजों के नमूने यानि बीज कई तरह के देखने को मिलते है जैसे गुटेल,भूत,श्योनक ,बांज,बान ओक, मेरेनती,नाग चम्पा और संग्रहालय के अंदर आपको देखने को मिलता है उस समय का,दुपहिया कल्टीवेटर,रोपण यत्र व् सामाजिक वानिका (जिसको सोशल फॉरेस्ट्री ) ने नाम से बनाया गया काफी सूंदर प्रोजेक्ट रखें हुए ,टिम्बर संग्रहालय इस संग्रहालय में आपको एक प्राचीन काष्ठ खण्ड देखने को मिलगा यह 3000 वर्ष से अधिक प्राचीन काष्ठ खण्ड है जो मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर के किसी भवन की नीव से प्राप्त हुआ इसके एक घन घुट का भार 68 पौंड है और लकड़ी के बने अन्य अन्य प्रकार वस्तुएँ ,बैलगाड़ी के पाहिंए जो उस दौरान इनका उपयोग किया जाता था इसके साथ ही आपको यहाँ पर एक 330 वर्ष के सागौन वृक्ष का अनुप्रस्थ काट पराम्बीकुलम( केरला) क्षेत्र से प्राप्त हुआ ऐसे ही आपको संग्रहालय में काफी कुछ देखने को मिलता है |
वन अनुसन्धान संस्था(एफ आर आइ) में इसके चारो तरफ आपको यहाँ हरियाली ही हरियाली और खुले मैदान व् इनके बिच लगे देवदार,आम,अन्य पेडो,जंगल से घीरी यह जगह काफी सूंदर है जिसके चलते यहाँ पर काफी मात्रा में पर्यटक देखने को मिलते है इस जगह पर आप साल में अभी आ सकते हो और इसके समय सुबह 9 बजे से लेकर शाम के 5:30 तक व् सोमवार से रविवार तक खुला रहता है अंदर प्रवेश करने से आपको गेट प्रवेश शुक्ल देना होता है प्रति व्यक्ति और वाहन का शुल्क अलग देना होता है इसके अतिरिक्त अन्य जानकारी गेट पर ही मिल जाती है इस जगह पर आप बच्चो से लेकर बड़ो तक कोई भी आ सकता है और इसके साथ आपको पार्किंग जिसके चारो तरफ सुंदर स्वच्छ मार्ग बनाये गए जिससे पर्यटक कोई भी परेशानी ना उठानी पड़े इसके अंदर आने के दो रास्ते है एक पंडितवारी दूसरा कोलाहगढ़ ओ.एन.जी.सी से भी आ सकते है और पर्यटक इस संस्थान की सिमा तक ही घूमे व् किसी भी प्रकार की गन्दगी न फैलाए