नंदा देवी राज जात यात्रा 2026
जानकारी
नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है, जिसका आयोजन 12 वर्षो में एक बार किया जाता है। वर्ष 2026 में प्रस्तावित इस पवित्र यात्रा का इन्तजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से है। अंतिम बार यह यात्रा बाढ़ के कारन 2013 के स्थान पर वर्ष 2014 में आयोजित की गई थी। 280 किमी लम्बी इस धार्मिक यात्रा की गिनती एशिया के सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में होती है। नंदा देवी की यह पवित्र राजजात यात्रा एक अनूठा संगम है जहाँ आपको भक्ति, आस्था, भावना, और रोमांच के साथ पौराणिक कथा देखने और सुनने को मिलती है।
यह राज जात यात्रा माँ नंदा भगवान शिव की अर्धांगनी को समर्पित है। गौरा, उमा, भगवती, पार्वती, अंबिका और हेमवती जैसे विभिन्न नामों से पूजी जाने वाली देवी नंदा की यह पवित्र यात्रा कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों को एकजुट करती है।
यात्रा का शुरुआती स्थान
नंदा देवी की राज जात यात्रा की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले के एक छोटे से गांव नौटी से होती है। लोक जात के नाम से जानी जाने वाली यह यात्रा माँ नंदा को उनके मायके से भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत पर भेजे जाने की यात्रा है। राज जात उत्तराखंड हिमालय की धार्मिक, आध्यात्मिक और शाही साहसिक यात्रा में से एक है, जिसका इंतजार लाखो श्रद्धालुओं को वर्षो से रहता है।
पवित्र नंदा देवी राज जात यात्रा की अगुवाई चौसिंग्या खाडू द्वारा की जाती है, जो यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। इस चौसिंघा खाडू का जन्म 12 वर्षो में केवल एक बार यात्रा प्रारम्भ होने से कुछ समय पहले ही होता है, जो अपने आप में एक विचित्र बात है। वर्ष 2026 में आयोजित होने वाली यात्रा के लिए इस चार सींग वाले खाडू ने यात्रा के पांचवे पड़ाव यानी कोटि गांव में जन्म ले लिया है, जो किसी चमत्कार और दिव्य शक्ति से कम नहीं है। माँ नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान आपको गढ़वाल की समृद्ध परंपरा और लोक नृत्य भी देखने को मिलते है।
नंदा देवी राज जात 2026 यात्रा कार्यक्रम
नंदा देवी राजजात यात्रा को हिमालय का महाकुम्भ भी कहा जाता है, जिसकी 280 किमी लम्बी इस यात्रा को पूर्ण होने में 19 दिन का समय लगता है। नौटी गांव से शुरू होने वाली यह यात्रा होमकुंड में सम्पन्न होती है, इस दौरान मार्ग में कुल 19 स्थानों में पड़ाव डाला जाता है। इन सभी पड़ाव में श्रद्धालुओं के रुकने और खाने पीने की व्यवस्था की जाती है।
वर्ष 2026 में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा अगस्त से सितम्बर माह में संभावित है, जिसका यात्रा कार्यक्रम अभी जारी नहीं किया गया है। इस कार्यक्रम में यात्रा के प्रारम्भ से लेकर उसके संपन्न होने तक की तिथि की जानकारी दी जाएगी। इस यात्रा कार्यक्रम की जानकारी यात्रा से कुछ समय पहले समिति द्वारा जारी की जाएगी।
नंदा देवी राजजात यात्रा का रूट मैप और दूरी
नंदा देवी राजजात की कठिन यात्रा शुरू होती है चमोली के छोटे से गांव नौटी से। लगभग तीन हफ्ते चलने वाली यह 280 किमी की यात्रा अलग अलग गांव, घास के मैदान, जंगलो और पहाड़ो से होते हुए अपने अंतिम पड़ाव तक पहुँचती है, जहाँ आपको प्रकृति के विभिन्न स्वरुप देखने को मिलते है। यात्रा मार्ग अपने रूपकुंड और बेदनी बुग्याल के लिए अधिक प्रसिद्ध है, जहाँ बेदनी बुग्याल दूर तक फैले घास के मैदान के लिए तो वहीं रूपकुंड अपनी खूबसूरती के साथ अपने इतिहास के लिए पहचाना जाता है।
यहाँ स्थित रूपकुंड झील को "कंकाल की झील" और "पातर नचोनिया" जैसे नामो से पहचानी जाती है। कहा जाता है की एक बार एक राज इस स्थान पर कई नर्तकों को लेकर आया था, जिससे क्रोधित होकर माँ नंदा द्वारा की शक्ति से हुई औलो की वर्षा से सभी नर्तकी पत्थर में तब्दील हो गई, जिनके कंकाल आज भी इस झील में देखने को मिलते है।
नंदा देवी राजजात यात्रा अपने निश्चित मार्ग से होकर गुजरती है, जिसके मार्ग में विभिन्न पड़ाव आते है, जो की कुछ इस प्रकार से है: -
से | तक | कुल दूरी |
---|---|---|
नौटी गांव | ईडा बधानी | 10 किमी |
ईडा बधानी | नौटी | 10 किमी |
नौटी | कांसुवा | 10 किमी |
कांसुवा | सेम | 12 किमी |
सेम | कोटि | 10 किमी |
कोटि | भगोती | 12 किमी |
भगोती | कुलसारी | 12 किमी |
कुलसारी | चेपड़ों | 10 किमी |
चेपड़ों | नंद केसरी | 11 किमी |
नंद केसरी | फल्दिया | 8 किमी |
फल्दिया | मुंडोली | 10 किमी |
मुंडोली | वाण | 15 किमी |
वाण | गेरोली पातल | 10 किमी |
गेरोली पातल | बेदनी बुग्याल | 9 किमी |
बेदनी बुग्याल | पातर नाचोनिया | 5 किमी |
पातर नाचोनिया | सिला समुंद्र | 15 किमी |
सिला समुंद्र | चंदनिया घाट | 16 किमी |
चंदनिया घाट | सुतोल | 18 किमी |
सुतोल | घाट | 32 किमी |
घाट | नौटी | 40 किमी |
नौटी गांव |
यात्रा का मुख्य मार्ग
उत्तराखंड के चमोली जिले में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा कई मार्गो से होकर गुजरती है। इस दौरान मार्ग में आने वाले कुछ प्रमुख पड़ाव इस प्रकार से है: -
नौटी गांव | यात्रा का प्रारंभिक स्थान होने के चलते यहाँ पर समस्त रीति रिवाज के साथ पूजन कार्यक्रम किए जाते है। |
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कोटि गांव | यात्रा का यह एहम पड़ाव है जहाँ पुजारी और श्रद्धालुओं द्वारा रात भर भजन कीर्तन किए जाते है। |
बेदनी बुग्याल | मार्ग के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक यह स्थान अपने खूबसूरत दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। |
रूपकुंड झील | कंकाल झील के नाम से पहचाने जाने वाला यह पड़ाव अपने इतिहास और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है। |
होमकुंड | नौटी गांव से शुरू होने वाली यात्रा का यह अंतिम पड़ाव है, जहाँ पर सभी रिवाजो को पूर्ण करने के बाद चौसिंगिया खाडू को छोड़ दिया जाता है, जिसमे सवार माँ नंदा देवी कैलाश पर्वत की और प्रस्थान करती है। |
नंदा देवी राजजात यात्रा की महत्वता
नंदा देवी गढ़वाल के साथ-साथ कुमाऊँ क्षेत्र में भी काफी पूजनीय है, जहाँ इन्हे "राजराजेश्वरी" के नाम से जाना जाता है। कुमाऊँ मंडल को माँ नंदा का मायका कहा जाता है तो गढ़वाल मंडल को माँ नंदा का ससुराल। नंदा देवी राजजात यात्रा की प्रथा सदियों पुरानी है, हालाँकि प्राप्त अभिलेख के अनुसार यह हिमलयान महाकुम्भ वर्ष 1843 से आयोजित किया जा रहा है। यह पवित्र त्यौहार कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र के लोगो को एकजुट करने का काम करता है, जिसमे कुमाऊं और गढ़वाल स्थित माँ नंदा के मंदिरो से उनकी छवि को यात्रा में शामिल हेतु लेकर आया जाता है।
नंदा देवी राजजात यात्रा क्यों मनाई जाती है?
नंदा देवी राज जात यात्रा कई लोक कथाओ से घिरी हुई है, जिनमे प्रमुख कथा इस प्रकार से है: -
राजा दक्ष के यहाँ जन्मी माँ नंदा देवी मात पार्वती का अवतार मानी जाती है, जिनका विवाह भगवान शिव से संपन्न हुआ। विवाह पश्चात माँ नंदा शिव के साथ अपने ससुराल यानि कैलाश पर्वत चली गई। कई वर्षो तक वहाँ रहने के पश्चात एक दिन उन्हें अपने घर की याद आई तो उन्होंने भगवान शिव से अपने मायके जाने की इच्छा जताई। अनुमति देते हुए भगवान शिव ने कहा की 12 दिन बाद वह अपने दूत को तुम्हे वापस लेने भेजेंगे।
मायके में 12 दिन पूर्ण होने के बाद भगवान शिव ने अपने प्रिय चौसिंगिया खाडू को माँ नंदा को वापस लाने भेजा। माँ नंदा को ससुराल भेजने के लिए सभी तयारी हो चुकी थी और चौसिंघ्या खाडू भी माँ नंदा को लेने पधार चुके थे।
विदाई यात्रा के दौरान माँ नंदा के स्वजन भी उनके साथ जुड़ गए, इस दौरान उनसे बिछड़ने के गम के चलते सभी की आँखे नम थी। कुछ ही दूरी पर चलने के पश्चात वर पक्ष से माँ नंदा को लेने आए, जिसमे सबसे आगे भगवान शिव के चौसिंघीया खाडू थे। मार्ग में जिस स्थान पर माँ नंदा ने अपना पड़ाव डाला था उन सभी स्थानों पर आज माँ नंदा के शक्ति मंदिर स्थापित है। इसी मान्यता के चलते प्रत्येक 12 वर्षो में माँ नंदा देवी राज जात यात्रा के द्वारा माँ नंदा देवी को उनके ससुराल भेजा जाता है।
नंदा देवी राजजात यात्रा 12 वर्ष के अंतराल में ही क्यों मनाई जाती है?
माँ नंदा अपने मायके केवल 12 दिन के लिए ही आई थी। ऐसा कहा जाता है की सतयुग का एक दिन आज के कलयुग के पूरे एक वर्ष के बराबर है, जिसके चलते यह यात्रा पूरे 12 वर्षो के बाद आयोजित की जाती है।
नंदा देवी राजजात यात्रा में चौसिंघ्या खाडू की क्या महत्ता है?
चार सींगों वाला भेड़, जिसे "चौसिंघा खाडू" के नाम से जाना जाता है, इस पवित्र यात्रा की अगुवाई करता है, जिसके चलते इस चार सींग वाले खाडू को यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। इस भेड़ को माँ नंदा देवी का पवित्र वाहन माना जाता है, जो पूरी यात्रा का नेतृत्व करता हैं। रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित, खाडू देवी नंदा की श्रृंगार सामग्री धारण करता है। यह एक दुर्लभ चार सींगों वाला भेड़ है, जिसका जन्म राज जात यात्रा शुरू होने से कुछ महीने पहले होता है, जो की 12 वर्षो में केवल एक बार ही होता है। ऐसा माना जाता है की यह भेड़ और कोई नहीं बल्कि शिव का ही एक रूप है, जो माँ नंदा को लेने आते है।
नंदा देवी राज जात यात्रा के शुरुआती बिंदु तक कैसे पहुँचें?
नंदा देवी राजजात यात्रा चमोली जिले के नौटी गाँव से शुरू होती है, जिसे इस यात्रा का यात्रा का आधार शिविर माना जाता है। इस गाँव से डोली को तैयार करके पूरे रीति रिवाजो के साथ यात्रा शुरू की जाती है। यहाँ सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, जिसके लिए सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा। देश की राजधानी दिल्ली से ऋषिकेश सड़क, रेल और हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। नौटी गांव के निकटतम प्रमुख स्थान कर्णप्रयाग है, जहाँ से इस गांव की दूरी केवल 24 किमी की है।
सड़क मार्ग से: - नौटी गांव देहरादून आईएसबीटी से 231 किमी और ऋषिकेश से 191 किमी की दूरी पर स्थित है। नजदीकी स्थानों से ऋषिकेश सड़क मार्ग से बस और टैक्सी की सहायता से पहुँच सकते है । कर्णप्रयाग के लिए ऋषिकेश बस स्टैंड से बस या साझा टैक्सी आसानी से प्राप्त हो जाती है। कर्णप्रयाग से नौटी गांव लगभग 24 किमी दूर है जिसे आप साझा टैक्सी के द्वारा तय कर सकते है। इसके अतिरिक्त यात्री ऋषिकेश से सीधा टैक्सी सेवा से नौटी गांव भी पहुँच सकते है।
रेल मार्ग से: इसके निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश का योग नगरी रेलवे स्टेशन है जो नौटी गांव से 191 किमी दूर है। दिल्ली से ऋषिकेश ट्रैन सूची आप आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर देख सकते है। स्टेशन से यात्री टैक्सी या इसके नजदीक बस अड्डे से बस और साझा टैक्सी की सेवा से नौटी गांव पहुँच सकते है।
हवाई मार्ग से: इसके निकटतम हवाई अड्डा देहरादून जोली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो नौटी गांव से 207 किमी दूर है। देश के प्रमुख शहर जैसे की दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, बैंगलोर और मुंबई से आपको यहाँ के लिए सीधी फ्लाइट सेवा मिलती है। हवाई अड्डे से ऋषिकेश आप टैक्सी की सहायता से आ सकते है, जो मात्र 16 किमी की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से आगे का सफर आप बस या टैक्सी के द्वारा कर सकते है।
नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 ऑनलाइन पंजीकरण
- नंदा देवी की 2026 में होने वाली इस भव्य यात्रा में शामिल होने के लिए ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किए जा सकते है।
- ऑनलाइन आवेदन एक विशेष पोर्टल के द्वारा मंगाए जा सकते है।
- पंजीकरण हेतु श्रद्धालुओं से विवरण और कुछ दतावेज जमा करने को कहा जा सकता है।
रहने हेतु सुविधा
- नंदा देवी राजजात यात्रा गांव, जंगलो, घास के मैदान, और पहाड़ी मार्ग से होते हुए जाती है, जहाँ रहने हेतु कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं है।
- यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं के रात्रि विश्राम हेतु विभिन्न पड़ाव पर रहने के लिए टेंट सुविधा का इंतजाम किया जाता है।
- रहने के साथ यहाँ पर खाने की भी उचित व्यवस्था रहती है।
- इसके अतिरिक्त यात्री अपने साथ स्वयं का टेंट और स्लीपिंग बैग भी ला सकते है।
यात्रा के लिए आवश्यक सामान
- यदि आप भी 12 वर्षो में एक बार आयोजित होने वाली इस पवित्र यात्रा में शामिल होना चाहते है तो अपने साथ यात्रा के लिए जरूरी सामान अवश्य से लेकर चले: -
- गर्म टोपी और दस्ताने।
- पानी की बोतल।
- ट्रेक पोल।
- ट्रैकिंग शूज।
- ट्रेक पैंट।
- स्लीपिंग बैग।
- स्लीपिंग टेंट।
- मेडिकल किट।
- मच्छर दूर भगाने वाली क्रीम।
हिमालयन महाकुम्भ के लिए जरूरी सुझाव
- 280 किमी की यात्रा पूर्ण करने के लिए शारीरिक तंदुरस्ती का होना बेहद आवश्यक है।
- ट्रैकिंग में उपयोग होने वाली आवश्यक वस्तुओ को साथ रखे।
- आवश्यक दवाई जरूर साथ में रखें।
- एटीएम और मोबाइल सिग्नल की कमी के चलते अपने साथ कैश अवश्य से रखे।
- यात्रा के लिए जरूरी दिशानिर्देशों का पालन जरूर से करे।
- यात्रा के शुरुआती मार्ग नौटी गांव में आपको अधिक भीड़ प्राप्त हो सकती है।
- यात्रा से पूर्व आप कर्णप्रयाग में ठहर सकते है।