उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 120 किमी दूर स्थित प्रकृति की गोद में बसा एक सुन्दर सा गाँव है, लाखामंडल। यहाँ स्थित प्राचीन शिव मंदिर पांडव काल के समय का बताया जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में स्थित शिवलिंग ग्रेफाइट का बना हुआ है, जिसमे आप स्वयं की छाया देख सकते हो, वही जल चढ़ाते समय यह शिवलिंग एक चमक बिखेरता है। ऐसी मान्यता है की पांडवो ने अपने अज्ञातवास के समय इस स्थान पर लाखो शिवलिंग स्थापित किये थे, जिस वजह से इस जगह का नाम लाखामंडल (यानी लाख लिंग) पड़ा। इस मंदिर की बनावट हूबहू केदारनाथ मंदिर जैसी है, जहाँ आपको शिव परिवार के साथ भगवान विष्णु, काल भैरव, और कार्तिकेय जी की मुर्तिया भी देखने को मिलेंगी। इतना ही नहीं मंदिर के भीतर आपको पैरो के चिह्न देखने को मिलेंगे, जिसे माँ पार्वती के पदचिह्न माना जाता है। रोजाना श्याम के समय होने वाली आरती भक्तो में आकर्षण के केंद्र बानी रहती है, जिसमे गांव के बच्चो से लेकर बुजुर्ग तक सब शामिल होते है।
ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर की खोज एक गाय की सहायता से हुई थी। जब कुछ वर्ष पूर्व गाँव का एक व्यक्ति जमुनापार से अपनी गाय को घास चराने के लिए इस स्थान पर लाता था, तो उसकी गाय कुछ समय के लिए कही चली जाती थी। कुछ समय बाद जब उस व्यक्ति ने अपनी गाय का पीछा किया तो देखा की गाय का दूध अपने आप एक स्थान पर निकल जाता था। इस बात की सूचना जब उस व्यक्ति ने अपने गांव वालो को दी, तो गाँव वालो ने उस स्थान की साफ़ सफाई की तो उन्हें उस स्थान पर शिवलिंग मिला, जिसके बाद से इस स्थान पर शिवलिंग की पूजा अर्चना स्थानीय पुजारियों द्वारा की जाने लगी।
यह भी कहा जाता है की गाँव में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसको इस मंदिर के द्वारपाल के बीच में स्थिति बड़े शिवलिंग के समक्ष रखा जाता था। यदि उस मृत आत्मा के कर्म अच्छे होते थे तो वह विष्णु लोक को चला जाता था वही बुरे कर्म वाला जीव लोक को प्रस्थान करता था। वही मृत शरीर जिसके अच्छे कर्म किये होते है पुजारी जी के गंगा जल की छींटे मार देने भर से उस मृत शरीर में कुछ पल के प्राण वापस आ जाते है, जिसके पश्चात उस व्यक्ति को गाँव वालो द्वारा दूध भात खिलाया जाता था, उसके उपरान्त वह व्यक्ति बैकुंठ धाम को प्रस्थान कर जाता था। इस परम्परा पर विराम उस समय लगाया गया, जब इस प्रक्रिया के दौरान एक माँ ने अपने बच्चे को गले से लागते हुए उसे अपने साथ घर चलने को कहा।
विद्वानों द्वारा लाखामंडल मंदिर का बायाँ हिस्सा बैकुंठ लोक तथा दाहिना हिस्सा जीव लोक बताया जाता है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ शिवलिंग की पूरी परिकर्मा नहीं होती है, इसके आधे हिस्से से वापस आने पर पूरी परिकर्मा हो जाती है ऐसा बतलाया जाता है।