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शीतकालीन चार धाम यात्रा

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उत्तराखंड की सबसे पवित्र और प्रसिद्ध चार धाम यात्रा को श्रद्धालु अब शीतकाल में भी कर सकेंगे। उत्तराखंड सरकार अब चारो धामों की शीतकालीन गद्दी को शीतकालीन चार धाम यात्रा के रूप में प्रोत्साहित कर रहे है। इससे न केवल श्रद्धालु शीतकाल में चारो धामों के दर्शन कर सकेंगे बल्कि इससे स्थानीय नागरिको को शीतकाल में रोजगार का अवसर भी प्राप्त होगा। शीतकाल के दौरान भारी बर्फ़बारी के चलते यात्रा का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिसके चलते चारो धामों के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते है। कपाट बंद करने के पश्चात सभी धामों से भगवान की डोली को उनके शीतकालीन प्रवास स्थल पर स्थापित करके अगले छह माह तक पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है।

शीतकालीन चार धाम यात्रा उत्तराखंड

उत्तराखंड की चार धाम यात्रा प्रत्येक वर्ष छह माह के लिए आयोजित की जाती है। कपाट बंद होने के पश्चात सभी धामों की प्रतीकात्मक छवि को उनकी शीतकालीन स्थल पर ले जाया जाता है। यह शीतकालीन स्थल सभी धामों के अलग-अलग स्थानों पर स्थित है। कपाट बंद होने के बाद यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की डोली उनके शीतकालीन स्थल क्रमशः खरसाली, मुखबा, उखीमठ और पांडुकेश्वर पर पूरे रीती रिवाजो के साथ लाया जाता है। सभी धामों के पुजारी जी द्वारा बताया जाता है की जो महत्व चार धाम स्थल पर पूजा करने से मिलता है वही महत्व श्रद्धालुओं को इन शीतकालीन गद्दी में पूजा करके प्राप्त होता है।
 

चार धाम स्थल की तुलना में यह शीतकालीन स्थल कम ऊंचाई वाले क्षेत्र पर स्थित होते है पूरे वर्ष श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते है। इन सभी शीतकालीन गद्दी में आप सड़क मार्ग का उपयोग करके आसानी से पहुँच सकते है। शीतकालीन चार धाम यात्रा के विशेष अवसर प्रदान करता है उन सभी श्रद्धालुओं को जो मुख्य चार धाम यात्रा में भाग न ले पाए या फिर ऐसे श्रद्धालु जो शीतकाल में भी इनके दर्शन करना चाहते है।

शीतकालीन चार धाम मंदिर

चार धाम की यह शीतकालीन गद्दी इन सभी धामों के मुख्य मार्ग पर स्थित है जो श्रद्धालुओं के लिए पूरे वर्ष खुले रहते है। मुख्य चार धाम यात्रा के दौरान भी अक्सर श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते है। इस शीतकालीन चार धाम यात्रा को श्रद्धालु मुख्य चार धाम यात्रा के समान ही दिए गए कर्मानुसार कर सकते है जैसे खरसाली, मुखबा, उखीमठ, और पांडुकेश्वर।

खरसाली

Kharsali winter seat of Yamunotri

उत्तरकाशी स्थित खरसाली, यमुनोत्री धाम की शीतकालीन गद्दी के रूप में पहचाना जाता है। यह छोटा सा गांव यमुनोत्री मार्ग में स्थित है, जो मुख्य मंदिर से केवल छह किमी की दूरी पर है। कपाट बंद होने के बाद माँ यमुना की डोली को भाई शनि देव के मंदिर में लाया जाता है, जहाँ अगले छह माह तक यहाँ उनकी पूजा अर्चना की जाती है। खरसाली एक बेहद ही खूबसूरत गांव में से एक है जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती विशेषकर शीतकाल में। इस दौरान यह पूरा क्षेत्र बर्ग की सफ़ेद चादर से ढक जाता है जो किसी जन्नत से कम नहीं लगता। शीतकाल यात्रा पर आए श्रद्धालुओं के लिए यहाँ रहने और खाने पीने की अच्छी व्यवस्था उपलब्ध है।

मुखबा

Mukhba winter seat of Gangotri

गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के पश्चात माँ गंगा की डोली को उनके शीतकालीन प्रवास मुखबा लेकर आया जाता है। गंगोत्री से मुखबा लगभग 27 किमी की दूरी पर है जहाँ डोली कुछ पड़ाव पर रुकने के पश्चात मुखबा गांव पहुँचती है। मुखबा में माँ गंगा की डोली को माँ गंगा मंदिर में रखा जाता है जिसकी बनावट हूबहू गंगोत्री मंदिर की तरह है। मुखबा में माँ गंगा को समर्पित दो मंदिर है, जिसमे से प्राचीन मंदिर यहाँ के मुख्य आकर्षण में से है। यह मंदिर मुख्य तौर पर देवदार की लकड़ी और पीतल से निर्मित है। शीतकाल यात्रा पर आए श्रद्धालुओं को मुखबा में रहने और खाने की उचित सुविधा नहीं मिलती, जिसके चलते वह यहाँ से 5 किमी दूर हर्षिल में रात्रि निवास करते है।

उखीमठ

Ukhimath Winter seat of Kedarnath image

शीतकाल में कपाट बंद होने के बाद केदारनाथ धाम की पंचमुखी डोली को उखीमठ स्थित ओम्कारेश्वर मंदिर में लाया जाता है। इस दौरान काफी संख्या में श्रद्धालु केदार बाबा के दर्शन करने आते है। केदार बाबा के अतिरिक्त द्वितीय केदार मद्महेश्वर बाबा की डोली भी मद्महेश्वर धाम में लायी जाती है।

पांडुकेश्वर

Narsingh Temple winter seat of Badrinath

शीतकाल कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ धाम की डोली को पांडुकेश्वर के साथ जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर में लाया जाता है। जहाँ पांडुकेश्वर में भगवान उद्धव और कुबेर की मूर्ति को विराजमान किया जाता है जबकि बद्री विशाल की डोली को ज्योतिर्मठ स्थित नरसिंह मंदिर में लाया जाता है।

निवास की सुविधा

शीतकालीन चार धाम यात्रा में आए श्रद्धालुओं को रहने हेतु विभिन्न प्रकार के विकल्प मिल जाते है, जिनमे मुख्यतः होटल्स, होमस्टे, रिसोर्ट, और गेस्टहॉउस है। श्रद्धालु अपनी सुविधा अनुसार ऑनलाइन या वह जाकर बुक कर सकते है। सभी शीतकाल चार धाम में से केवल मुखबा ही एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ यात्रियों को रहने की सीमित सुविधा मिलती है, जिसके चलते यात्री हर्षिल या धराली में अपना आवास बुक करते है।

खाने की सुविधा

सभी चार धामों की शीतलकालीन गद्दी में श्रद्धालुओं के खाने पीन की उचित व्यवस्थान उपलब्ध है। यहाँ उपलब्ध रेस्टोरेंट और ढाबो से श्रद्धालु स्थानीय व्यंजन के साथ अन्य भोजन का लुत्फ़ उठा सकते है। जहाँ खरसाली, उखीमठ और पांडुकेश्वर एवं जोशीमठ में श्रद्धालुओं को कई रेस्टोरेंट मिल जाते है तो दूसरी तरफ मुखबा में यह संख्या काफी सीमित है। इसके चलते यहाँ आए श्रद्धालु हर्षिल में रहकर मुखबा आते है, जो यहाँ से केवल 5 किमी की दूरी पर है।

शीतकालीन चार धाम कैसे पहुंचे?

  • खरसाली 

खरसाली के निकटम मुख्य शहर देहरादून है जो की यहाँ से से 171 किमी की दूरी पर है। देहरादून से खरसाली के लिए बस सेवा यहाँ के पर्वतीय बस डिपो से तो टैक्सी सेवा रिस्पना टैक्सी स्टैंड से। इसके अलावा आप यहाँ निजी टैक्सी लेकर भी आ सकते है। सीधी बस सेवा उपलब्ध न होने की स्थिति आप उत्तरकाशी स्थित बड़कोट तक बस से आ सकते है जहाँ से आगे का सफर स्थानीय टैक्सी के द्वारा तय कर सकते है।

  • मुखबा 

देहरादून से मुखबा लगभग 222 किमी की दूरी पर है, जहाँ आप बस और टैक्सी के द्वारा पहुँच सकते है। बस सेवा आपको देहरादून के पर्वतीय बस स्टैंड से मिलती है, जिसकी सेवा केवल उत्तरकाशी तक ही उपलब्ध होती है इसके आगे की यात्रा आप टैक्सी के द्वारा कर सकते है। उत्तरकाशी से मुखबा लगभग 77 किमी की दूरी पर है।

  • उखीमठ 

उखीमठ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जो ऋषिकेश से 175 किमी की दूरी पर है। यहाँ आने के लिए यात्रियों को ऋषिकेश बस स्टैंड से यूटीसी के साथ निजी बस सेवा का लाभ मिल जाता है। इसके अलावा आप बस स्टैंड के निकट स्थित टैक्सी स्टैंड से यूनियन टैक्सी में सफर करके भी उखीमठ आ सकते है। उखीमठ आने के लिए यात्रियों को सबसे पहले ऋषिकेश आना होगा जो की सड़क और रेल मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है। हालाँकि ऋषिकेश सीधे तौर पर हवाई मार्ग से नहीं जुड़ा है लेकिन इसके निकटतम देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट मात्र 16 किमी की दूरी पर है।

  • पांडुकेश्वर 

बद्री विशाल की शीतकालीन गद्दी पांडुकेश्वर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। इसके निकटम मुख्य शहर ऋषिकेश से पांडुकेश्वर लगभग 264 किमी की दूरी पर है, जिसके लिए आपको स्थानीय बस स्टैंड से बस और टैक्सी की सुविधा मिल जाती है। इसके अतिरिक्त आप यहाँ निजी बस सेवा या कैब के माध्यम से भी पहुँच सकते है। सीधी बस सेवा न मिलने की स्थति में आप बस से जोशीमठ तक आ सकते है जिसके आगे का सफर आप टैक्सी से कर सकते है।

शीतकालीन चार धाम यात्रा के लिए महत्वपूर्ण सुझाव

  • शीतकाल चार धाम यात्रा के लिए किसी भी प्रकार के पंजीयन की आवश्यकता नहीं है।
  • यात्रा के दौरान अपने साथ उचित मात्रा में गर्म कपडे लेकर चलें।
  • जरुरत का सभी सामान साथ लेकर चलें।
  • यात्रा करते समय अपने पास आवश्यकता अनुसार कैश भी लेकर चलें।
  • यदि बस से यात्रा कर रहे है तो बस स्टैंड सुबह जल्दी पहुंचे।
  • शीतकाल के समय यहाँ भरी बर्फ़बारी पड़ती है इसलिए अपनी यात्रा देख कर प्लान करें।
  • होटल बुक करने से पहले सभी आवश्यक जानकारी जरूर से प्राप्त कर लें।
Gangotri Temple image
Front Image of Badrinath Temple
Yamunotri

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

शीतकाल में कपाट बंद होने के बाद यमुनोत्री धाम की डोली को मंदिर से छह किमी दूर उनके मायके खरसाली लाया जाता है, जिसे उनका शीतकाल प्रवास कहा जाता है। यहाँ उनकी मूर्ति को शनि देव के मंदिर में अगले छह माह के लिए रखा जाता है।

हर्षिल के निकट स्थित मुखबा में गंगोत्री धाम की शीतकालीन गद्दी है। यह मुख्य मंदिर से करीब 27 किमी की दूरी पर है।

शीतकाल में केदारनाथ की पंच मुखी डोली को उखीमठ स्थित ओमकारेश्वर मंदिर में रखा जाता है।

शीतकाल में बद्री विशाल की डोली को पांडुकेःवर के साथ जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर में लाया जाता है। पांडुकेश्वर में जहाँ नारायण के सहायक भगवन उद्धव और कुबेर जी की मूर्ति स्थापित की जाती है तो नरसिंह मंदिर में बद्री विशाल की।

चार धाम की शीतकालीन गद्दी में यात्रा पर जाने को शीतकालीन चार धाम यात्रा कहा जाता है। इन शीतकालीन गद्दी में सभी धामों की डोली को छह माह के लिए रखा जाता है और कपाट खुलने के बाद इन्हे पुनः मुख्य मंदिर में ले जाया जाता है। यह स्थान मुख मंदिर से निचले इलाके में होते है जो श्रद्धालुओं के लिए वर्ष भर खुले रहते है।

नहीं, शीतकालीन चार धाम यारा पर जाने वेक श्रद्धालुओं को मुख्य चार धाम यात्रा के समान पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है।

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